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उड़ ले पंख पसार

28 जनवरी 2015

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उड़ ले पंख पसार रे पंखी ! उड़ ले पंख पसार, खुद को तु पहचान रे पंछी ! तुझमें शक्ति अपार । जमीं में इतनी शक्ति कहाँ तेरे पंखों की गति रोक सके, नाप गगन की तू ऊँचाई गति न तेरी कभी रुके । मेरी यही है चाह रे पंखी ! हिम्मत कभी न हार, खुद को तू पहचान रे पंछी ! तुझमें शक्ति अपार । लाचार और न उड़ सकनेवाले तुझको कभी न ये उड़ने देंगे, अपार शक्ति हो जिन पंखों में उनकी गति ये क्या रोकेंगे ? दिव्य शक्ति पहचान रे पंखी ! गति ले धुँआधार, खुद को तू पहचान रे पंछी ! तुझमें शक्ति अपार । भले तेरी छोटी–सी सत्ता आँख न किसी की आती है, छोटी–सी इस जान क आगे विशालता भी शरमाती है । विंदु से सिंधु नाप रे पंखी ! प्रभु का कर आभार, खुद को तू पहचान रे पंछी ! तुझमें शक्ति अपार.... तुझमें शक्ति अपार....

पुरुषोत्तम पोखरेल की अन्य किताबें

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आँधी में दीये कब जलते हैं ?

28 जनवरी 2015
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आँधी में दिये कब जलते हैं आँधी में दीये कब जलते हैं ? लेकिन जिन दीयों में प्राण तत्व हो, जीवन मंत्र औ अमरत्व हो, वसुधा के प्रति अपनत्व हो, हृदय में जिसके विशालत्व हो, वे दीये भला कब बुझते हैं? आँधी–तूफां लौ बढ़ाते मूसल–बर्षा में भी मुस्काने बुझने का तो नाम न लेते, ज्योति विखेरे राह दिखाते घने तम स

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उड़ ले पंख पसार

28 जनवरी 2015
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उड़ ले पंख पसार रे पंखी ! उड़ ले पंख पसार, खुद को तु पहचान रे पंछी ! तुझमें शक्ति अपार । जमीं में इतनी शक्ति कहाँ तेरे पंखों की गति रोक सके, नाप गगन की तू ऊँचाई गति न तेरी कभी रुके । मेरी यही है चाह रे पंखी ! हिम्मत कभी न हार, खुद को तू पहचान रे पंछी ! तुझमें शक्ति अपार । लाचार और न उड़ सकनेवाले

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