तुम्हें बनना होगा कैकेयी (भाग-1 प्रथम)
(कविता : स्त्री मन की वेदना महसूस करने का प्रयास)
स्त्री
नही है पर्याप्त
सिर्फ तुम्हारे लिये
एक स्त्री होना
क्या सोचा था तुमने ?
14 वर्ष वनवास भोगने के बाद
तुम अयोध्या की
महारानी बन कर
राजसुख भोगोगी ?
नही
नही माता सीता
तुम्हारे भाग्य मे लिखा था
अभी
एक ओर वनवास
पांचाल नरेश
द्रुपद की पुत्री
द्रोपदी
क्या सोचा था तुमने?
विश्व के सर्वश्रेष्ट
धनुर्धर वीर योद्धा
अर्जुन को वर कर
तुम
हस्तिनापुर की
महारानी बन जाओगी ?
नही
तुम्हे भोगना था अभी
कुरुवंश के महान सूरमाओं
आर्याव्रत के वीर योद्धाओं
और धर्म गुरुओं की सभा मे
दुसाशन के क्रुर हाथों
चीर हरण का
दुःख द्वन्द और अपमान
स्त्री
क्या सोचा था तुमने
स्त्री पुरुष समानता के
अधिकार मे
तुम स्वच्छंद जीवन
यापन कर पाओगी ?
नही
तुम्हे होना पडता है
आज भी
वहसी दरिन्दों के हाथों
हवस का शिकार
मगर सावधान
एक और युगांतर के बाद
देवकी के
अष्ठम गर्भ अवतार
भगवान विष्णु
फिर से सोंप देगें
तुम्हे मानव सभ्यता के बीज
मगर हाँ
बनना तुम
इस बार फिर से कैकेयी
मांगना
फिर से दो वरदान
प्रथम
प्रसव पीड़ा कोख की वेदना
हो पुरुष के हिस्से मे
या फिर
किसी पुरुष को
नहीं फूंकने देना प्राण
पत्थर में
पाषाण बनी
पडी रहना
अहिल्या बन कर
धरती पर
युग आदि से
युग युगांतर तक
..........................( शेष अगले भाग-2 मे)
बदलाव जारी
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रचना : महावीर जोशी लेखाकार पूलासर (सरदारशहर) राजस्थान