गली मे भौंकते
कुत्ते को
खानी पडती है
कभी लाठी
तो कभी पत्थर
और
आखिर
उन्हीं हाथों से
रोटी मिल ही जाती है
भिखारी को
बार बार
दहलिज से दुत्कारने के बाद
आखिरकार
उन्ही हाथों से
भीख मिल ही जाती है
चोरी कर भाग रहे चौर के
पकडे जाने पर उसकी
जम कर पिटाई होना
लाजिमी ही है
मगर बहते खून को देखकर
उन्ही हाथों को
मरहम पट्टी करने की
दया / संवेदना हो ही जाती है
उग्रता उदंडता
मस्तिष्क मगज की
मनोवृति है और
ईश्वर साक्षात नही
तो भी
हर एक की
आत्मा मे
अमूर्तिमान है
ईश्वर
सब की आत्मा मे
मन मे
विद्यमान है
ईश्वर ही
करुणानिधि
करुणानिधान है
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
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रचना : महावीर जोशी पुलासर (सरदारशहर)