आदमी आदमीयत और आराधना
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कबूतर और कमेड़ी ??
और वो भी
घर की मुंडेर पर ??
हो ही नहीं सकता
बहुत बड़ा अपशकुन है
कबूतर सुनसान चाहता है
और कमेड़ी घर का बंटवारा
गधे की पूजा सिर्फ
शीतला अष्टमी के दिन ही होती है
वर्ना
गाँव की अखुरड़ी पर
लेट कर रेंकते गधो को
अकाल पड़ने का सूचक
मान लिया जाता है
बहुत कुछ इसी तरह
जानवरों के प्रती
विविध विविध
भ्रान्तियाँ
ओर
जीवों का भक्षण
ये है आदमी
और
उसकी आदमीयत
सब कुछ स्वार्थ के वशीभूत
ईश्वर की आराधना
प्रार्थना
ओर याचना की
हे प्रभु
मुझे उत्तम स्वास्थ्य
सुख शान्ती
परिवार का सुख
धन ओर वैभव की प्राप्ति देना
मगर
नही देखा किसी को
ये प्रार्थना करते की
हे प्रभु
मेरे घर के पेड़ों पर बने
पक्षियो के घोसले टूटे पड़े है
उन्हें ठीक कर देना
गाँव की गलियों में घूमते
आवारा पशु
और
जानवरों के लिए
आवास और खाने की
व्यवस्था करना
सर्द और गर्म दिन रातों में
ठिठुरते,तापते
कुत्तों ओर जीवों के लिए
बहुत अच्छी सुविधाएं प्रदान करना
बीच सड़क पर घूमते
वाहनों की टक्कर से हुए
अपाहिज पशुओं के लिए
अच्छा हॉस्पिटल बनवा देना
कोई नहीं करता
कभी नहीं करता ये सब
याचना और प्रार्थना
मंदिर में ईश्वर से
मैंने तो नहीं देखा
किसी को भी कभी भी
किसी भी आदमी को
आदमी .......
आदमी का वैदिक जीवन
चार आश्रमों में बांटा गया
ब्रह्मचर्य,
गृहस्थ,
वानप्रस्थ
और
संन्यास
बहुत कठिन है
ब्रह्मचर्य आश्रम
ब्रह्चर्य का पालन
ब्रह्म को चरना
या
ब्रह्म की चर्चा में ही रत रहना
इंद्रियों का संयम रखना,
काम,सुख,भोग,अर्थ में जकड़ा
आदमी
जीवनपर्यंत
वेद विरुद्ध कर्म करते
नहीं छूट पाता
गृहस्थ की जंजीरो से
नहीं जान पाता
शेष बचे दो आश्रम
वानप्रस्थ
और
संन्यास के
नियम त्याग
और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग
फिर भी
चाहता है
आदमी
पुनर्जन्म में
फिर से आदमी बनना
पता नहीं
किस पुण्य कर्म
तप, भक्ति
दया,साधना
और किस
आदमीयत के भरोसे पर
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रचना : महावीर जोशी,पूलासर,सरदारशहर (चुरू) राजस्थान
....................... क्रमशः बदलाव जारी