(मौलिक रचना (c):महावीर जोशी,लेखाकार,पुलासर)
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(1) मेरे पास
इतनी दौलत है की
मैं दे सकता हूँ दहेज़
किसी भी वर्ग की बेटी को
मगर क्या तुम
इतने भी सामर्थ्यवान नहीं की
मिटा सको
इस दहेज़ कू-प्रथा को
(2) मेरे पास
इतनी सहनशीलता है की
मैं सह सकता हूँ
अनेकों कष्ट पीड़ा और वेदनाएं
मगर क्या तुम
इतने भी प्रभावशाली नहीं की
रोक सको भ्रूण हत्या
जीव हत्या
और गर्भपात को
(3) मेरे पास
इतनी श्रद्धा है की
मैं मानता हूँ
ईश्वर के अनंत स्वरूप को
मगर क्या तुम
इतने भी आस्थावान नहीं की
मंदिर और देवालयों में
आरती के समय
श्रद्धा विहीन मानवों के अभाव मे
बजाने पड़े
विधुत चलित वाद्य यंत्र
ढोल शंख और मृदंग
(4) मेरे पास
लिखी है मानव सभ्यता की
जीर्ण-शीर्ण होती पोथी मे
बहुत सी बासी
और ऊबाऊ प्रथाऐं
जो की निभा रहा हुँ
असहज अवस्थाओं मे
मगर आज के भौतिक युग मे
क्या तुम इतने भी
शिक्षित,अकलवान नही की
मिटा सको
बहुत सी कु-प्रथाओ को
जिनका अब कोई
मोल ही नही
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रचना: #महावीर_जोशी_लेखाकार,
पुलासर,सरदारशहर राजस्थान