आजकल हम सभी एक मुखौटा लगाकर घुम रहें हैं.... सच्ची खुशी और अच्छी मुस्कुराहट लगभग भुल ही चुके हैं...।
आज से सालों पहले लोग जब एक दूसरे के घर जातें थें... मिलने के लिए... त्यौहारों पर... खैरियत पुछने तो दोनों पक्षों में अलग ही खुशी होती थी....। इंतज़ार करते थें एक दूसरे से मिलने का...।
आज अगर किसी को पता चलें की कोई आ रहा हैं तो सिर पर टेंशन की लकीर छप जातीं हैं....। भले ही स्वागत झूठी मुस्कान के साथ करेंगे लेकिन दिल ही दिल में जल्द चले जाने की दुआ भी मांगते रहेंगे...। ऐसा आजकल आम हो गया हैं.... किसी को किसी का आना जाना बोझ लगने लगा हैं...।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सच्ची मुस्कुराहट के लिए जीते हैं....।
आखिर ये सच्ची मुस्कुराहट होतीं क्या हैं.....मेरी नज़र में सच्ची मुस्कुराहट क्या हैं.... उसके लिए एक छोटा सा किस्सा आप सभी को बता रहीं हूँ....।
बात हैं जनवरी माह की..... मैं अपने परिवार के साथ किसी मौके की वजह से एंटरटेनमेंट पार्क गई थी....। हम सभी दोपहर को घर से निकले थे...। शाम तक बच्चों के साथ पार्क में रहें... फिर पार्क से बाहर आकर कुछ नाश्ता करने का प्रोग्राम बनाया....। अब सभी बच्चों का अलग अलग मैनु था.... इसलिए हर कोई अपने बच्चो को लेकर अलग स्टाल पर चले गए.... जो पास पास ही लगे हुए थे....। मेरी छोटी बेटी को और मेरी ननद की बेटी को पास्ता खाने थें.... तो मैं उन दोनों को लेकर पास्ता और मैगी के स्टाल पर आई...। मैनें दोनों के लिए दो प्लेट पास्ता आर्डर की....। मैं बाहर का कुछ भी नहीं खाती हूँ तो दोनों बच्चों को बिठाकर मैं उनके साथ बैठकर यहाँ वहाँ नजरें घुमा रहीं थी.... तभी मेरी नज़र सामने से सड़क पार करते हुए आ रहें दो छोटे से बच्चों पर गई...। मैने देखा शाम का वक्त था और सड़क बहुत व्यस्त थी जिस वजह से वो बार बार दो कदम बढ़ते फिर पीछे चले जाते...। ऐसा दो तीन बार हुआ...। मैने ये भी नोटिस किया की इस बीच बहुत से लोग उस तरफ़ से आ रहें थे पर कोई भी उनकी मदद नहीं कर रहा था...। बच्चें बहुत छोटे थे.... मुश्किल से चार पांच साल के होंगे...। एक लड़की थी जो थोड़ी बड़ी लग रहीं थी... एक लड़का था.. वो लड़की से छोटा लग रहा था...। दोनों ने एक दूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ रखा था...। उस तरफ से आ रहें लोगों का उनकी मदद ना करने का कारण शायद उनका व्यक्तित्व या पहनावा हो सकता था.... वो दोनों बच्चे फटे़ पुराने मैले कपड़ों में थें....।
कुछ देर तक उनकों ऐसे देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपने बच्चों को बताकर उनकी मदद करने के लिए सड़क के उस पार चलीं गई.... और दोनों बच्चों को संभालते हुए अपनी तरफ ले आई...।
तब तक मेरे बच्चों का नाश्ता हो गया था...। मैं उन दोनों के पैसे देने लगी....। तभी मेरी छोटी गुड़िया का गुब्बारा लेना था तो मैने उसे वो भी दिलवाया...। मैंने देखा वो दोनों बच्चे वहाँ खा रहे हर शख्स की तरफ़ एक लालसा भरी नजरों से देख रहे थे...। मैने उनसे पुछा:- तुम्हें कुछ खाना हैं...?
उन्होंने हां में सिर हिलाया...।
स्टाल वाले को एक प्लेट मैगी बनाने को कहा.... क्योंकि वो बहुत छोटे थे... शायद दो प्लेट खा भी नहीं पाते...।
मैने दोनों बच्चों को स्टूल पर बिठाया और स्टाल वाले भईया को उनके पैसे देने लगीं....। तभी एक बारह तेरह साल की एक बच्ची मेरे पास आई और बोलीं:- आंटी आप रहने दिजिए.... इनके पैसे हम दे देंगे...। हमने देखा आप कैसे अपने बच्चों को छोड़कर उनकी सड़क पार करने में मदद करने गई थी.... आप ने हमें बहुत कुछ सिखाया हैं... अब हमारा भी तो कुछ फर्ज बनता हैं ना...।
मैं उस बच्ची की बात सुनकर बहुत हैरान हो गई...। मैने पुछा:- तुम्हारे साथ और कौन हैं..?
उसने इशारा करके अपनी बड़ी बहन से मिलवाया...।
मैने बहुत समझाया लेकिन वो दोनों बच्चियाँ नहीं मानी.... और उन दोनों बच्चों के पैसे उन्होंने ही दिए...। नाश्ता खाते वक्त उन दोनों छोटे बच्चों के चेहरे पर जो खुशी जो मुस्कुराहट थी.... वो हैं सच्ची मुस्कुराहट.....उन दोनों छोटे बच्चों को खिलाकर उन बच्चियों के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थी... वो हैं सच्ची मुस्कुराहट....।
मेरी नजरों में तो ये ही सच्चा सुकून और सच्ची मुस्कुराहट हैं.... जब आपकी वजह से कोई मुस्कुराए...।
आपकी नजरों में सच्ची मुस्कुराहट क्या हैं.... कंमेट में जरूर बताइयेगा...। 🤗
जय श्री राम....।