जीवन में तीन मंत्र आनंद में वचन मत दीजिए,
क्रोध में उत्तर मत दीजिए, दुख में निर्णय मत लीजिए।
दुख भोगने वाला आगे चलकर सुखी हो सकता है,
लेकिन दुख देने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता।
जरूरत से ज्यादा वक्त और इज्जत देने से
लोग आप को गिरा हुआ समझने लगते हैं।
झुको केवल उतना ही जितना सही हो,
बेवजह झुकना केवल दूसरों के अहम को बढ़ावा देता है।
मैदान में हारा हुआ फिर से जीत सकता है,
परंतु मन से हारा हुआ कभी जीत नहीं सकता,
आपका आत्म विश्वास ही सर्वश्रेष्ठ पूंजी है।
संतुलित दिमाग जैसी कोई सादगी नहीं है,
संतोष जैसा कोई सुख नहीं है,
लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं है,
और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है।
व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है,
ऊचे स्थान पर बैठ जाने से ही
उच्च नहीं हो सकता।
आचार्य चाणक्य