ज़िन्दगी ने किया एक मज़ाक,उस नन्हें नादान के साथ,राहें दर्द देती रहीं उसे,फिर भी वह चुप था| वो हसीं रिश्ता माँ-बेटे का,जिससे वह हमेशा वंचित रहा,ममता के लिए वो तड़पता रहा,फिर भी वह चुप था| पिता तो करते थे प्यार उसे,ले आये नयी
यूँ तो बिसार ही चुके हो अब तुम मुझे!देख आया हूँ मैं भी वादों के वो उजरे से पुल,जर्जर सी हो चुकी इरादों के तिनके,टूट सी चुकी वो झूलती टहनियों सी शाखें,यूँ ही भूल जाना चाहता है अब मेरा ये मन भी तुझे!पर इक ध