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त्याग--(अन्तिम भाग)

14 नवम्बर 2021

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उस दिन उसने पहली बार अपने बाबा का गुस्सा देखा था उसने,
गुस्से से कैसे कांप रहे थे, बाबा!
छोटे ठाकुर के हाथ में मेरा हाथ देखकर, शायद उनको इस सब की उम्मीद नहीं थी और सच भी तो है,उस दिन उनकी बेटी ने उनके स्वाभिमान को ठेस जो पहुंचाई थी।
उन्होंने किस तरह छोटे ठाकुर के हाथ से मेरा हाथ छुड़ा कर, झोपड़ी के अंदर ले गए और पूछा_____
क्या ये सब सच है?और हां अगर ये सच है तो तुझे आज के बाद छोटे ठाकुर को भूलना होगा, मुझे वचन दे कि तू आज के बाद छोटे ठाकुर से नहीं मिलेगी।
और उन्होंने मुझसे उस दिन छोटे ठाकुर से ना मिलने का वचन ले लिया और साथ में गांव छोड़ ने का फैसला भी और किस तरह तूफान और बारिश में निकल पड़े,मैं , अम्मा और बाबा।
और उस दिन के तूफान ने कई दिलों को तबाह किया था, बाबा बहुत गुस्से में थे,उस रात तूफान में बाबा हम लोगों को ले तो गए लेकिन इतनी तेज बारिश और तूफान में नाव बेकाबू होकर डूब गई और बाबा और अम्मा की लाशे बाद में मिली, और मैं दूसरे दिन बेशुध होकर पड़ी थी, नदी किनारे_____
तभी पुरोहित बाबा अपने रोज़ के नियमानुसार नदी पे स्नान करने आए और मुझे देखा और पास आकर मेरी नब्ज टटोली तो मैं सिर्फ़ बेहोश थी।
पुरोहित बाबा ने आस-पास के लोगों को आवाज देकर बुलाया और मुझे मंदिर के पास झोपड़ी में ले गये और पुरोहितन अम्मा से फौरन मेंरे कपड़े बदलने को कहा और तुरंत मेरा इलाज अपनी जड़ी-बूटियों द्वारा करने लगे, क्योंकि पुरोहित के साथ-साथ वो जाने -माने वैध भी थे और होश में आते ही मैंने पहले अपने बाबा और अम्मा के बारे में पूछा तो गांव के सारे लोगों ने उन्हें ढूंढने में मदद की और मिली भी तो अम्मा-बाबा की लाशे।
और फिर पुरोहित बाबा ने ही अम्मा और बाबा का अंतिम संस्कार किया, और मुझे अनाथ के सर पे हाथ रखा और मैं पुरोहित बाबा और पुरोहितन अम्मा के साथ रहने लगी और लोगों की सेवा करने लगी, बाबा ने अपनी सारी वैध -विद्या सिखा दी तो मैं भी उनके साथ दूर्लभ जड़ी-बूटियों को खोजने जाने लगी, फिर मैंने सोचा क्यों ना इन जड़ी-बूटियों को मंदिर के पीछे जो जमीन है वहां उगाया जाए और गांव के सरपंच जी की इजाजत से मैंने ऐसा किया, मंदिर के तालाब से घड़ों में पानी भरकर पौधों को सींचती , मुझे ऐसे देख कर गांव के लोग भी मदद करने लगे और देखते ही देखते मन्दिर के चारों तरफ हरियाली ही हरियाली छा गई,आठ सालों में।
तभी पुरोहित बाबा ने आवाज दी, बेटी जरा कम्बल तो दें, बारिश की वजह से ठंड लग रही है,
अभी लाई बाबा, साध्वी ने कहा।।
चित्रलेखा बहुत परेशान थी और विचलित भी कि अब न इंद्राणी को पांचवां महीना लग गया था और उसे साध्वी के पास ले जाना था लेकिन समस्या ये थी कि उसके साथ किसको भेजा जाए,कुछ भी समझ नहीं पा रही थी, चित्रलेखा।
लेकिन इस बार दुर्गेश , इंद्राणी,काकी और चित्रलेखा सभी गये।इस बार धानी ने चित्रलेखा और काकी के पैर छुए, इन्द्राणी ये सब देखकर थोड़ी ससंकित हुई लेकिन किसी से कुछ पूछा नहीं और फिर धानी ने इंद्राणी की नब्ज टटोली और कुछ जड़ी-बूटियां देकर कहा इन्हें समय से लेते रहना और सब ठीक है ,हां और अगली बार मैं आऊंगी ,आपकी जांच करने आपके घर, अब आपके दिन आराम करने के हैं,सफर करना आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है।
और सब घर आ गये......
आज कुछ ज्यादा ही मरीज थे और उन्हें देखते-देखते दोपहर हो गई और फिर बाबा के लिए खाना बनाना था, ज्यादा देर होने से उसने साथ में शाम का खाना भी बना भी बना कर रख दिया, बाबा को खाना खिला और खुद भी खाना खाकर निकल पड़ी, इंद्राणी की जांच करने, चित्रलेखा की हवेली____
पहुंचते-पहुंचते धानी को शाम हो गई और नदी का रास्ता वापस कैसे आएगी,जाना भी जरूरी है, इंद्राणी को छठा महीना लग गया है, उसकी जांच करनी भी जरूरी है,अगर देर हो गई तो वहीं गांव के मन्दिर में रूक जाऊंगी लेकिन हवेली में कभी नहीं ,यही सब विचार उसके मन में चल रहे थे कि तभी नाविक ने कहा ...........
दीदी गांव आ गया और सम्भाल कर उतरिएगा__
ठीक है भइया,कितने रुपए हुए, धानी बोली
आप से क्या रुपए लेना दीदी? आप तो सारे गांव की सेवा करतीं हैं, आपने इतने लोगों को ठीक किया है.....
अरे भाई ऐसे करोंगे तो कमाई कैसे होगी, धानी बोली
अच्छा ठीक है,जब वापस आइएगा तो तब ले लूंगा, नाविक बोला।
कितना कुछ बदल गया है,आठ सालों में, सबकुछ और साथ में मेरी जिंदगी भी, चलो हवेली भी आ गई।धानी को हवेली पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया, उसने दरवाजे पर दस्तक दी, तो एक नौकरानी ने आकर दरवाज़ा खोला और पूछा किससे मिलना है?
बड़ी ठाकुराइन है, उनसे मिलना था , धानी बोली
हां, अंदर आइए।
बड़ी ठाकुराइन देखिए, कोई आया है
सुन यहां बैठक में भेज दें, चित्रलेखा बोली।
ठीक है ठकुराइन भेजती हूं
धानी बैठक में पहुंचीं तुरंत चित्रलेखा के पैर छुए और बोली जल्दी से छोटी ठाकुराइन को बुला लीजिए, मुझे वापस जल्दी जाना है, नहीं तो नांव की आखिरी फेरी भी निकल जाएगी।
कोई बात नहीं,हम अभी जानकी को नदी किनारे भेजकर नाविक से तुम्हारे गांव ख़बर पहुंचवा देते हैं कि आज तुम हमारे साथ रूक रही हो , चित्रलेखा बोली।
नहीं, बड़ी ठाकुराइन आप छोटी ठाकुराइन को बुला दीजिए, मैं उनकी जांच करके वापस चली जाऊंगी, धानी बोली।
क्यो? धानी हमें माफी मांगने का भी मौका नहीं दोगी और चित्रलेखा रो पड़ी, उसकी आंखों में पाश्चाताप के आंसू थे।
धानी चित्रलेखा के आगे विवश हो गई,उस रात वो हवेली में रुकी, इंद्राणी की जांच की, थोड़ी देर चित्रलेखा और काकी से बातें करने के बाद.......
चित्रलेखा बोली चलो खाना खा लो, तुम्हारे लिए अलग से खाना बनवाया है, बिना प्याज, लहसुन और मसालों का_____
सारी हवेली में लालटेन की रोशनी थी, धीमी-धीमी सी और सब बैठकर खाना खाने ही वाले थे कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई____
नौकरानी ने दरवाजा खोला तो दुर्गेश आ गया था, चित्रलेखा ने पूछा ,जानकी कौन आया है?
छोटे ठाकुर आए हैं, मालकिन
अच्छा ठीक है,
चित्रलेखा बोली, उनसे कह दो हाथ-पैर धोकर खाना खाने आ जाए।
ठीक है मां, अभी आता हूं, दुर्गेश बोला।
दुर्गेश जैसे ही खाना खाने पहुंचा, धानी को देखकर थोड़ा विचलित हो गया।
सब चुपचाप खाना खा रहे थे,सब जगह खामोशी छाई थी, कोई किसी से बात नहीं कर रहा था, अजीब सा माहौल था,सब उलझन में थे कि किससे क्या बोले,बस सब सोच रहे थे कि खाना जल्दी खत्म हो।
खाना ख़त्म होते ही चित्रलेखा ने कहा, धानी ,तुम मेहमानों वाले कमरे में सो जाओ,जानकी तुम्हें ले जाएंगी।
ठीक है, बड़ी ठाकुराइन, धानी बोली।
और सब अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।
धानी को आज सब अजीब-अजीब सा लग रहा था,काश ये सब बातें बड़ी ठाकुराइन पहले समझ लेती तो उसके अम्मा-बाबा आज उसके साथ होते, ये ही सब सोच रही थी कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी, दरवाजा किसी ने धीरे से खटखटाया, धानी ने दरवाजा खोला तो सामने दुर्गेश था, धानी ने दरवाजा बंद करना चाहा तो, दुर्गेश ने कहा, धानी मुझे कुछ बात करनी है तुमसे,बस आखिरी बार, फिर आज के बाद मैं कभी तुमसे बात करने की कोशिश नहीं करूंगा,बस एक बार_____
धानी दरवाज़े से अलग हट गई, दुर्गेश अंदर आया,
दुर्गेश बोला, धानी ये लो तुम्हारी कुछ चीजें मेरे पास थी,वो ही वापस करने आया हूं,
जो देना है या कहना है जल्दी कहो, कहीं छोटी ठाकुराइन को कुछ पता चल गया तो, मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगी, धानी बोली।
इतनी नफ़रत करती हो मुझसे, दुर्गेश बोला।
हां,करती हूं, तुमसे प्यार करके मुझे क्या मिला, सिवाय दु:ख के,उस दिन मैं तुम्हारे साथ ना होती तो ना बाबा को इतना गुस्सा आता और आज मेरे अम्मा-बाबा मेरे साथ होते, और धानी बोलते-बोलते रोने लगी।
तुम्हें,क्या लगता है,तुम ही बस दु:खी हो, तुम्हारे मरने की खबर से मेरे दिल पर क्या बीती, दुर्गेश बोला।
हां, तभी तो तुमने तुरंत शादी कर ली, धानी बोली।
धानी, वो एक वादा था, पिता जी के एक दोस्त थे बीमार थे, उनकी पत्नी पहले ही स्वर्गवासी हो गई थी, तो उन्होंने मरते वक्त पिताजी से वादा लिया था कि उनकी बेटी को वो अपनी बहु बनायेंगे, पिता जी ना नहीं बोल पाये और उनके मरने के बाद साधारण तरीके से मंदिर में शादी करके इंद्राणी को हम लोग ब्याह लाए, दुर्गेश बोला।
अब भी मुझे माफ़ नहीं करोगी, मेरी गलती क्या है?
और दुर्गेश की आंखों से भी आंसू बहने लगे।
दोनों ही फूट-फूट कर रो रहे थे,आठ सालों का गुबार जो दोनों के मन में भरा था वो आज जाके निकला था।
दुर्गेश ने कहा,देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं ये छोटा सा बक्सा इसमें देखो क्या-क्या है।
धानी ने बक्सा खोला तो उसमें उसके बचपन की छोटी सी पायल,एक रिबन जिससे वो बाल बांधती थी,स्याही की दवात जो उससे गिर कर फैल गई थी, छोटे-छोटे घोंघे और सीपी जो उन दोनों ने मिलकर नहर के किनारे खोजें थे, धानी ये सब देख कर खुश हो गई , उसके मन के सारे गिले-शिकवे दूर हो गए।
धानी ने कहा, छोटे ठाकुर तुम जाओ, मैं नहीं चाहती कि कोई हमें साथ में देखें और गलत मतलब निकाले।
दुर्गेश ने कहा अब मैं जाता हूं, दुर्गेश चला गया और धानी सो गई,
सुबह सबसे विदा लेकर चल पड़ी, नदी के किनारे वहीं कल वाला नाविक मिला,वो बोला, दीदी आप कल लौटीं नहीं थी, लेकिन हमने आपके बाबा तक खबर पहुंचा दी थी।
ठीक है, धन्यवाद धानी ने कहा,
और नाव में बैठ,चल पड़ी, अपने गांव की ओर__
धानी,इस बार हवेली गई, बिना किसी शंका और झिझक के, उसके मन की सारी उलझने जो सुलझ गई थी,वो
अब खुद को मुक्त महसूस कर रही थी।
उसने इंद्राणी की जांच की और कहा कि अब आपको मेरी जड़ी-बूटियों की जरूरत नहीं है,बस आप अब खान-पान का ख्याल रखिए,हल्का खाना खाए और हरी शाक-सब्जियां ज्यादा खाएं और सुबह-सुबह की ताज़ी हवा में टहले बस, क्योंकि सातवां महीना लग गया है,अब आपको अपना ज्यादा ख्याल रखना होगा।
और अब मैं चलतीं हूं, छोटी ठाकुराइन, धानी बोली।
आप मुझे छोटी ठाकुराइन क्यो कहती हैं, मैं तो आपसे छोटी हूं, इंद्राणी बोली।
एक बात कहूं धानी जी, पिछली बार आप आई थी तो आपके और छोटे ठाकुर के बीच की बातें मैंने सुन ली थीं,माफ कीजिए मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन जब आपने मां और काकी के पहली बार मिलने पर पैर छुए थे तो मुझे थोड़ी शंका हुई कि शायद आप पहले से सबको जानती है और फिर छोटे ठाकुर उस दिन आपको घर में देखकर थोड़ा विचलित हो गये थे तो मुझे ये सब देखकर अच्छा नहीं लगा, फिर सबके सोने के बाद छोटे ठाकुर कमरे से बाहर आए तो मैं भी उनके पीछे-पीछे आई तो देखा वो आपके कमरे के पास रूक गए और आपके दरवाजे पर दस्तक दी और शायद आप दरवाजा नहीं खोलना चाहती थीं लेकिन बाद में आपने दरवाजा खोला वो अंदर गये तो मैं खुद को नहीं रोक पाई आपकी बातें सुनने से लेकिन आप लोगों की बातें सुनने के बाद मेंरे मन से सारी शंकाएं दूर हो गई।
धानी जी मेरा तो मायके मे कोई नहीं है,क्या आप मेरी बड़ी बहन बनेगी?
और इन्द्राणी की आंखों में आंसू आ गये तो धानी ने उसे गले लगा लिया और दोनों एक-दूसरे के गले लगकर रोई,
उनकी ये सब बातें दुर्गेश ने भी सुन ली और उन लोगों के पास जाकर इंद्राणी से बोला, मुझे माफ़ कर दो इन्दू , मैंने तुमसे बहुत कुछ छुपाया।
आप मुझसे माफ़ी ना मांगे छोटे ठाकुर,वो तो आपका अतीत था और जो होना था वो तो हो गया, इंद्राणी बोली।
फिर धानी बोली,अब मैं चलतीं हूं, बाबा की तबियत ठीक नहीं रहती, वो मेरा इन्तजार कर रहे होंगे।
धानी गांव पहुंची तो देखा, बाबा लेटे हैं
क्या हुआ बाबा? तबियत ठीक नहीं है, ऐसे क्यो लेटे हैं
पता नहीं बेटी,आज तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब लग रही है, जड़ी-बूटियां भी ली लेकिन आराम नहीं लगा, लगता है भगवान का बुलावा आ गया है।
ऐसा मत कहो बाबा, आपके सिवा मेरा कौन है, धानी बोली।
लेकिन बेटी बहुत ठंड लग रही है,
धानी ने बाबा के माथे को छुआ तो, बहुत गर्म था, उन्हें बहुत तेज बुखार था
बाबा, आपको मैं कुछ जड़ी-बूटियां देती हूं, शायद कुछ आराम लगे
नहीं, बेटा अब कोई भी दवा असर नहीं करेंगी,
इसी तरह दो हफ्ते गुज़र गए लेकिन बाबा की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ और एक दिन बाबा धानी को छोड़कर चले गए।
धानी खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थी, उसके जीने का बहाना जो चला गया था , बाबा की तेरहवीं में चित्रलेखा और दुर्गेश आए, धानी को दिलासा देकर चले गए लेकिन जिसके ऊपर बीतती है वहीं जानता है, इधर धानी अपने आपको सम्भालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अब भी उसका मन किसी काम में नहीं लगता था, वो ज्यादा मरीजों को भी नहीं देखती थी और ना खाना बनाती, कोई कुछ खिला देता तो उसे खाए ही दिनभर बनी रहती, अंदर से उसके जीने की इच्छा मर गई थी।
वो धीरे-धीरे अंदर से बीमार हो रही थी,उधर इंद्राणी का आठवां महीना खत्म होने को था लेकिन धानी जांच करने नहीं पहुंचीं थी।
चित्रलेखा ने दुर्गेश को भेजा धानी को लाने, दुर्गेश पहुंचा तो देखा कि धानी की हालत कुछ ज्यादा ठीक नहीं है लेकिन धानी ने कहा वो ठीक है और साथ में चलेगी इंद्राणी की जांच करने और वो चल पड़ी और फिर से वही नाविक मिला।
आइए दीदी बड़े दिनों बाद आई,नाविक बोला।
हां,तेरा नाम क्या है रे? धानी ने पूछा।
मेरा नाम श्याम है नाविक बोला।
ऐसे ही बातें करते-करते गांव आ गया, और धानी हवेली पहुंची, इंद्राणी की जांच की और कहा एक-दो दिन बाद नौवां महीना लगने वाला है अब खास ख्याल रखना होगा, धीरे-धीरे चला करो, कोई भी भारी काम नहीं करना है, अब मैं चलती हूं,इस बार मैं तीन-चार बार आऊंगी जांच करने और धानी वापस आ गई।
उधर इंद्राणी को नौवां महीना लग गया था, धानी हफ्ते में एक बार जरूर जांच करने आती,इसी तरह दो हफ्ते गुज़र गये उधर धानी की तबियत भी बहुत खराब थी बहुत तेज बुखार था उसे और हवेली भी जाना था लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसे किसी ने सोचा भी नहीं होगा, बारिश का मौसम था और बादल छाए थे।
शाम का समय था,इंद्राणी सीढ़ियों से गिर गई और उसे चोट आई और प्रसव-पीडा होने लगी,
चित्रलेखा ने तुरंत नाविक द्वारा धानी तक खबर पहुंचाई, नाविक ने खबर पहुंचाई ,शाम होने को थी धानी जैसे ही नदी किनारे पहुंची, वैसे ही बारिश होने लगी, नाविक ने कहा दीदी अभी नहीं जाते, बारिश आ गई है और आपकी तबियत भी ठीक नहीं है।
मेरा जाना बहुत जरूरी है, किसी को मेरी मदद की जरूरत है
लेकिन दीदी ऐसे मौसम में कैसे जाएगी? श्याम बोला
मैं जा रही हूं,तेरी छोटी वाली डोंगी दें दे, मैं खुद ही खेकर चली जाऊंगी
और धानी डोंगी लेकर चली गई, और उसने साथ में सारी जड़ी-बूटियां उस छोटे से बक्से में रख ली जो दुर्गेश ने दिया था।
और बारिश धीरे-धीरे तेज होने लगी, और हवा बहुत तेज थी, धानी डोंगी को खे नहीं पा रही थी ,आधी दूर से ज्यादा पार कर आईं थीं डोंगी में पानी भरने लगा, क्योंकि, बारिश बहुत तेज थी, धानी ने बक्से को साड़ी के पल्लू की मदद से कमर में बांधा और तैरकर जाने की सोची, और निकल पड़ी, उसकी हालत बहुत खराब थी, ऊपर से तबियत भी ठीक नहीं थी, वो तैर नहीं पा रही थी लेकिन उसने हार नहीं मानी, जैसे-तैसे वो अपनी मंजिल तक पहुंच गई, गिरते-पडते अंधेरे और भरी बरसात में हवेली पहुंची।
दरवाजा खटखटाया और दरवाजा खुलते ही अंदर आकर गिर पड़ी, जानकी ने तुरंत चित्रलेखा को आवाज लगाई, चित्रलेखा के आते ही धानी ने कहा, मेरी कमर जो बक्सा है, उसमें कुछ जड़ी-बूटियां है, उन्हें निकाल कर खिला दें और कुछ पेट में मल दें छोटी ठाकुराइन को आराम लग जाएगा।
पहले तुम अपने कपड़े बदल लो, तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं लग रही है, चित्रलेखा बोली।
आप मेरी चिन्ता ना करें,मरीज का ख्याल रखना बहुत जरूरी है, धानी बोली चित्रलेखा ने वहीं किया,जैसा धानी ने कहा,जानकी ने सहारा देकर जैसे ही धानी को बिस्तर में लिटाया, धानी हिचकियां लेने लगी, इतने में दुर्गेश धानी के पास आया, धानी की ऐसी हालत देखकर रोने लगा, धानी बात भी नहीं कर पा रही थी, उसे सांस लेने में बहुत परेशानी हो रही थी।उधर इंद्राणी को धानी की जड़ी बूटियों से आराम लग गया और प्रसव-पीडा कम हो गई और प्रसव आसानी से हो गया,इतने में चित्रलेखा ख़बर लेकर आई कि बेटी हुई है और धानी ने ये खबर सुनकर अपनी आंखें मूंद ली और हमेशा के लिए सो गई,धानी का ये त्याग चित्रलेखा कभी भी भूल नहीं पाई ।।

समाप्त....
सरोज वर्मा...


Jyoti

Jyoti

अच्छा समापन

11 दिसम्बर 2021

4
रचनाएँ
त्याग
4.5
एक ऐसी लड़की की कहानी जिसने अपने पिता का मान रखने के लिए अपने प्यार को ठुकरा दिया और साध्वी बनकर समाज के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी ।।

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