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व्यसन !

25 अक्टूबर 2022

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व्यसन (बुरी लत)

पृथ्वी पर जीवन के आविर्भाव के वैज्ञानिक और आध्यत्मिक दोनों ही दृष्टिकोण हैं । इसमें एक बात तो तय है कि एक जीव मात्र से जीवन के निर्माण तक का सफर मनुष्यता की सबसे महान उपलब्धियों में से है । जाहिर है कि सृष्टि के निर्माण से लेकर सभ्यता के विकास तक की यात्रा को मनुष्य ने अनुशासन और अपनी जिजीविषा से तय किया है । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अनुशासन और इस जिजीविषा का पतन मनुष्य की चेतना के पतन का कारक भी बनता है । यह प्रक्रिया चिरन्तन रूप में व्यसन या बुरी लत के रूप में जानी जाती रही है ।

जैसे प्रकाश सदैव से अंधकार से लड़ता आया है , रात और दिन का चक्र एक निष्णात सच्चाई है , उत्थान और पतन एक क्रमिक वास्तविकता है । ठीक उसी प्रकार  मानवीय चेतना पर व्यसन का प्रहार एक अहर्निश प्रक्रिया रही है । प्राचीन काल से ही मद, मदिरा और द्यूत क्रीड़ा जैसे व्यसन हमारी पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक आख्यानों का एक प्रमुख हिस्सा रहे हैं । महाभारत जैसे महायुद्ध का कारण ही द्यूत क्रीड़ा का व्यसन था जो पांडवो में विद्यमान था और जिसका दोहन शकुनि ने बखूबी किया । ठीक वैसे ही इस प्रकार के व्यसनों का दुष्प्रभाव आज कल के युवाओं पर पड़ता है और इसका दोहन कर अनुचित लाभ उठाया जाता रहा है ।

यद्यपि प्राचीन काल में व्यसनों के बीज दिखाई पड़ते हैं लेकिन आज के समय में वो बीज जैसे विष वृक्ष बन चुका है । तम्बाकू, पान, गुटखा ,सुपारी से मदान्ध होने का सफर जो शुरू होता है तो  शराब, गांजा, ड्रग्स ,हेरोइन तक कब पहुँचता है उसका इल्म भी भुक्तभोगियों तक को नही होता है । पंजाब जैसा हंसता खेलता प्रदेश ऐसे व्यसनों से जैसे रुग्णप्राय ही हो चला है । ऐसे में जिस उम्र में तरुणों से देश की नाव को मंझधार पर कराने की उम्मीद की जाती है उन्हें रिहैबिलिटेशन संस्थानों में बेचारगी की अवस्था मे देखकर देश और समाज की आत्मा चीत्कार कर उठती है ।

इन प्रत्यक्ष जहर पुटिकाओं से इतर भी कुछ व्यसन आज के मनुष्य की ऊर्जा के पतन के लिए जिम्मेदार हैं। बाजार और तकनीकें मानवीय भावनाओं का इस्तेमाल अपने मुनाफे के लिए गैरजिम्मेदाराना तरीके से करती हैं , इंटरनेट, स्मार्टफोन के माध्यम से मानवीय चेतना को मानो अप्रत्यक्ष रूप से बाजार और मुनाफे के लिए ग़ुलाम बनाया जा रहा है । समाज के सबसे संवेदनशील बालक और तरुण वर्ग इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं । कंटेंट के नाम पर ,इंटरनेट और सोशल मीडिया में जैसे एक पूरा महाजाल बुना पड़ा है और इसमें फंसकर न सिर्फ बहुमूल्य ऊर्जा और समय का विनाश हो रहा है बल्कि इसका गहरा मनोवैज्ञानिक पहलू है जिससे युवा पीढ़ी अपने आधारभूत मूल्यों से भटकती जा रही है । हर बार की तरह ये टकराव दो पीढियों के विश्वासों के मध्य कम बल्कि स्पष्ट रूप से सही और गलत के बीच हो रहा नजर आता है ।

ऐसे में युवा भारत और युवाओं के भरोसे देखे जा रहे स्वर्णिम भविष्य की संकल्पना कैसे साकार रूप लेगी ! इस सवाल का मौजूं जवाब खोजकर उसपर अमल करना आज की आवश्यकता है । योग , मैडिटेशन , शारीरिक व्यायाम ,खेलकूद, अध्यात्म और अध्ययन  के क्षेत्रों में युवा ऊर्जा का निवेश करने की जरूरत है । ओलम्पिक , राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में बेहतर हो रहे प्रदर्शनों को और बेहतरी की ओर ले जाने की दरकार है । लब्बोलुबाब यही है कि व्यसनों के शमन से ही नवभारत का आगमन होगा । सवा अरब की भारतीय आबादी स्वऊर्जा के ऊर्ध्वगमन से इक्कीसवीं सदी को भारत के नाम करेगी ~
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👍🙏🙏

23 अगस्त 2023

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen prastuti lajwab likha hai bahut khub 👌

27 अक्टूबर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

28 अक्टूबर 2022

बहुत शुक्रिया 😊💐

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रचनाएँ
स्वयं से स्वयं तक~
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स्वयं से की गयी बातचीत और ईमानदार साक्षत्कारों के कुछ चुनिंदा अंश इस पुस्तक में संग्रहित हैं ।
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एक जंगल~

7 अक्टूबर 2022
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एक जंगल उसके जेहन में अक्सर घूमता है । बियावान , भयानक, दुर्दम्य जंगल । सिंह , भालू, अजगर , हाथियों से भरा जंगल । बड़े बड़े वृक्ष ,इतने बड़े और घने कि सूरज की रोशनी तक जमीन से ना मिल पाये ।घास इतनी विशाल

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सुकून~

9 अक्टूबर 2022
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वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर

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अनदेखी अनजाना~

10 अक्टूबर 2022
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उसे इंतेज़ार रहता है उस इक हसीन लम्हे का । वो लम्हा जो शायद जिंदगी के मायनों से मिला दे , जिंदगी का मतलब बता दें या फिर जिंदगी के उन गुत्थियों को सुलझा दे जिनसे मुंह मोड़ लिया है उसने । अपनी ही दुनिया म

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डिजिटल मुद्रा~

2 नवम्बर 2022
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डिजिटल मुद्रा~भारतीय इतिहास में मुद्राओं की एक विशिष्ट भूमिका रही है । प्राचीन कालीन शासकों की उपाधि और राजनीतिक विस्तार के साथ साथ मुद्राएं आर्थिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति की गवाही देती आयी हैं ।

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समान सिविल संहिता~

6 नवम्बर 2022
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आज़ादी की क़वायद के दौर में और उसके बाद की सर्वप्रमुख उपलब्धियों में से एक भारतीय संविधान का निर्माण करना और उसका लागू होना रहा है । संविधान का 'चौथा भाग' नीति निर्देशक सिद्धान्तों के रूप में राज्

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निजीकरण का विचार~

8 नवम्बर 2022
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निजीकरण~एक घटित हुई सच्ची कहानी स्मरण हो आती है गांव के उस सबसे बड़े परिवार की जिसकी धनाढ्यता बहुत विख्यात थी । फिर ऐसा हुआ कि संसाधनों की अतिशयता ने उस बड़े संयुक्त परिवार के लोगों को निठल्ला बना

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शिक्षा मानवीयता का आधार~

11 नवम्बर 2022
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शिक्षा मानवीय विकास का आधार है । वास्तव में यह उस हस्तांतरित ज्ञान के रूप में है जिससे आगे की पीढियां जीवन को सार्थक रूप में जीने की कला से साक्षात करती हैं । शिक्षा परिचित कराती है नवीन पीढ़ियों को उस

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सरकार और न्यायापालिका

30 नवम्बर 2022
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सरकार और न्यायपालिका ~किसी भी परिवेश ,समाज के संचालन के लिए व्यवस्था एक अनिवार्य तत्व है । व्यवस्था के इस निर्वहन की जिम्मेवारी शाश्वत रूप से राज्य की ही रही है । वर्तमान समय में संवैधानिक व्यवस्था के

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विश्व एड्स टीका दिवस~

18 मई 2023
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ईश्वर ने जीवन का अनमोल उपहार मानव जाति को दिया है । जीवन एक प्रवाह है , इसकी गत्यात्मकता में ही इसकी सुंदरता का वास है । भारतीय मनीषियों ने भी जीवन के स्वरूप को समझने के क्रम में अगाध चिंतन किया है ।

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