शिक्षा मानवीय विकास का आधार है । वास्तव में यह उस हस्तांतरित ज्ञान के रूप में है जिससे आगे की पीढियां जीवन को सार्थक रूप में जीने की कला से साक्षात करती हैं । शिक्षा परिचित कराती है नवीन पीढ़ियों को उस ज्ञान से जो मानवीय सभ्यताओं ने अपने अब तक कि यात्रा में अर्जित किया है । शिक्षा अपने व्यवहारिक रूप में मानव को उस कौशल से सुसज्जित करती है जिसके द्वारा वो अर्थोपार्जन कर अपनी जीवन रूपी गाड़ी में ईंधन संग्रहित करता है , तो अपने आदर्श रूप में वो मानव को उसके अस्तित्व से साक्षात्कार करवाती है ।
वैदिक काल मे जब लेखन कला अस्तित्व में नही थी तो शिक्षा का माध्यम वाणी मात्र थी जिसके द्वारा अर्जित ज्ञान को गुरु अपने शिष्य को कंठस्थ करवाते थे । दूसरी तीसरी सदी में लेखन कला के उद्भव के पश्चात इन शिक्षाओं का संकलन पांडुलिपि के रूप में संकलित हुआ । जिसने आने वाली सभ्यताओं को न केवल आलोकित किया बल्कि वर्तमान की 21 वी सदी ने विकास के जिस चरम उत्कर्ष को स्पर्श किया है उसमें शिक्षा का यह समृद्ध हस्तांतरण एक महती भूमिका के रूप में है ।
शिक्षा की जरूरत माली के उस देखरेख की भांति ही है जिसके द्वारा वो उपवन के हर लता गुल्म को परिष्करण देकर एक सुंदर , सुसज्जित , सभ्य स्वरूप में परिवर्तित कर देता है , इस उपवन की महक से न केवल उपवनवासी सराबोर होते हैं बल्कि ये आस पास के लोगों के लिए भी आकर्षण की एक पुष्ट वजह बनती हैं । शिक्षा इसी उपवन रूपी समाज का निर्माण करती है । साथ ही यह व्यक्ति के आंतरिक शक्तियों से उसका साक्षात करवाती है और अंततः उसे उपवन के रूप में एक समाज , एक राष्ट्र एक देश के सर्वांगीण विकास का सिपाही बनाती है ~