shabd-logo

निजीकरण का विचार~

8 नवम्बर 2022

38 बार देखा गया 38
निजीकरण~

एक घटित हुई सच्ची कहानी स्मरण हो  आती है गांव के उस सबसे बड़े परिवार की जिसकी धनाढ्यता बहुत विख्यात थी । फिर ऐसा हुआ कि संसाधनों की अतिशयता ने उस बड़े संयुक्त परिवार के लोगों को निठल्ला बना दिया , "मैं नही तू कर" की तर्ज़ पर पीढ़ी दर पीढ़ी उनका ह्रास होता गया और पांच सौ एकड़ की भौमिक संपत्ति कुछेक दशकों में ही बिक गयी । दूसरी तरफ एक शरणार्थी बनिया जिसने एक गुमटी लगाकर उसी गांव के चौराहे पर अपना व्यवसाय शुरू किया था और जो लाभ और हानि के बेसिक नियमों को बेहतरी से जानता था, उसने एक एक पैसा जोड़कर और कड़ी मेहनत से एक के बाद एक बड़े बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान स्थापित कर लिए और न केवल उस गांव बल्कि पूरे क्षेत्र में सबसे बड़े साहूकार के रूप में स्वयं को स्थापित कर लिया । आज भी बड़ी राशि की जरूरत पड़ने पर क्षेत्र के लोग उस मारवाड़ी से ही गुहार लगाते हैं ,जो ऊंचे ब्याज दर पर उधार उपलब्ध करवाता है । 

यहां उल्लेखनीय है कि जहां गांव का बड़ा परिवार रूढ़िवादी व्यवस्था के निर्वहन से समाप्त होता गया जो निंदनीय है । वहीं वह व्यापारी जिस तरह से स्वयं को संपन्नता के ऊंचे शिखर पर ले गया वो प्रशंसनीय है । लेकिन संपन्नता और विपन्नता से इतर , " अर्श से फर्श " और "फर्श से अर्श" तक के सफर  से अलग यह सवाल सबसे बड़ा है कि इन दोनों परिवारों ने समाज को क्या दिया, अपने आस पास को कितना सम्पन्न किया उन्हें कितना सुधारा ? स्वयं की संपन्नता से इतर अपने आस पास ,पड़ोस और समाज की संपन्नता अपने लोगों की संपन्नता और विकास ही वो मूल्य हैं जो किसी परिवेश को दीर्घगामी बनाते हैं । 

इस पूरी परिघटना को आप निजीकरण से जोड़कर देख सकते हैं , और अपनी अंतिम परिणति में निजीकरण शोषण और लाभ मात्र का ही प्रतीक बनकर ना राह जाये , सभी के कल्याण को आत्मसात करती हमारी व्यवस्था और सरकारों ने "कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसबलिटी " के रूप में अपना कुछ अनुदान समाज हित मे करने के लिए चेताया है । जो वर्तमान में 2 प्रतिशत तक है । यद्यपि टाटा जैसे संस्थान इसमें कही आगे हैं ।


 इस क्रम में देखा जाये तो निजीकरण का ध्वन्यात्मक अर्थ संसाधनों को समेटने से नियोजित होता हैं । तथा ये संकीर्णता का परिचायक है । बावजूद इसके निजीकरण  एक उपकरण के रूप में आर्थिक नजरिये से एक " हिट थ्योरी" के रूप में उपयोगी रहा है । 1991 के आर्थिक संकट के बाद लाया गया यह विचार उदारीकरण और वैशवीकरण जैसे विचारों के साथ निहित था । जिसका उद्देश्य ये था कि विकास का समेकित उद्देश्य इस पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने जैसा है , यद्यपि ऐसा हुआ नहीं और आज उदारीकरण की वह प्रक्रिया और उसपर पुनः विचार कर उसे नए परिष्कृत रूप में लाने की कवायदें जारी हैं । निजीकरण के वर्तमान प्रासंगिकता को भी इन्हीं मायनों में समझने की जरूरतें हैं । 

यह कहा जा सकता है कि आजादी के बाद की हमारी व्यवस्था और सरकारें जिस लाभ और कल्याण की सोच को साथ लेकर चली थी हालांकि उसमें सुधार की गुंजाइशें हैं और बदलती परिस्थितियों में निजीकरण को अंगीकृत करना हमारे तमाम सेक्टर( रेलवे , हवाई, परिवहन, अन्य सरकारी आदि ) के रुग्ण हुए चेहरे को कान्तिमान बनाएगा , बावजूद इसके नीति नियंताओं को इस प्रक्रिया को उस अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर ही क्रियान्वित करना चाहिए जो निजीकरण की चकाचौंध से अपनी आंखों को सुरक्षित रखने के लिए काला चश्मा तक नही खरीद सकता । शिक्षा , खाद्य और अन्य ऐसी तमाम बेसिक जरूरतों को तब तक सरकारी नियंत्रण में रखा जाना चाहिए जब तक झुके हुए ,दबे हुए ये लोग सबके साथ कंधे से कंधा मिलाकर ना चलने लगे । निजीकरण के सभी लाभों का तभी सार्थक औचित्य फलित होगा ~
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👍🙏

23 अगस्त 2023

10
रचनाएँ
स्वयं से स्वयं तक~
5.0
स्वयं से की गयी बातचीत और ईमानदार साक्षत्कारों के कुछ चुनिंदा अंश इस पुस्तक में संग्रहित हैं ।
1

एक जंगल~

7 अक्टूबर 2022
4
3
3

एक जंगल उसके जेहन में अक्सर घूमता है । बियावान , भयानक, दुर्दम्य जंगल । सिंह , भालू, अजगर , हाथियों से भरा जंगल । बड़े बड़े वृक्ष ,इतने बड़े और घने कि सूरज की रोशनी तक जमीन से ना मिल पाये ।घास इतनी विशाल

2

सुकून~

9 अक्टूबर 2022
5
5
6

वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर

3

अनदेखी अनजाना~

10 अक्टूबर 2022
4
5
3

उसे इंतेज़ार रहता है उस इक हसीन लम्हे का । वो लम्हा जो शायद जिंदगी के मायनों से मिला दे , जिंदगी का मतलब बता दें या फिर जिंदगी के उन गुत्थियों को सुलझा दे जिनसे मुंह मोड़ लिया है उसने । अपनी ही दुनिया म

4

व्यसन !

25 अक्टूबर 2022
7
3
3

व्यसन (बुरी लत)पृथ्वी पर जीवन के आविर्भाव के वैज्ञानिक और आध्यत्मिक दोनों ही दृष्टिकोण हैं । इसमें एक बात तो तय है कि एक जीव मात्र से जीवन के निर्माण तक का सफर मनुष्यता की सबसे महान उपलब्धियों में से

5

डिजिटल मुद्रा~

2 नवम्बर 2022
1
4
2

डिजिटल मुद्रा~भारतीय इतिहास में मुद्राओं की एक विशिष्ट भूमिका रही है । प्राचीन कालीन शासकों की उपाधि और राजनीतिक विस्तार के साथ साथ मुद्राएं आर्थिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति की गवाही देती आयी हैं ।

6

समान सिविल संहिता~

6 नवम्बर 2022
1
4
3

आज़ादी की क़वायद के दौर में और उसके बाद की सर्वप्रमुख उपलब्धियों में से एक भारतीय संविधान का निर्माण करना और उसका लागू होना रहा है । संविधान का 'चौथा भाग' नीति निर्देशक सिद्धान्तों के रूप में राज्

7

निजीकरण का विचार~

8 नवम्बर 2022
1
3
1

निजीकरण~एक घटित हुई सच्ची कहानी स्मरण हो आती है गांव के उस सबसे बड़े परिवार की जिसकी धनाढ्यता बहुत विख्यात थी । फिर ऐसा हुआ कि संसाधनों की अतिशयता ने उस बड़े संयुक्त परिवार के लोगों को निठल्ला बना

8

शिक्षा मानवीयता का आधार~

11 नवम्बर 2022
3
3
2

शिक्षा मानवीय विकास का आधार है । वास्तव में यह उस हस्तांतरित ज्ञान के रूप में है जिससे आगे की पीढियां जीवन को सार्थक रूप में जीने की कला से साक्षात करती हैं । शिक्षा परिचित कराती है नवीन पीढ़ियों को उस

9

सरकार और न्यायापालिका

30 नवम्बर 2022
2
3
0

सरकार और न्यायपालिका ~किसी भी परिवेश ,समाज के संचालन के लिए व्यवस्था एक अनिवार्य तत्व है । व्यवस्था के इस निर्वहन की जिम्मेवारी शाश्वत रूप से राज्य की ही रही है । वर्तमान समय में संवैधानिक व्यवस्था के

10

विश्व एड्स टीका दिवस~

18 मई 2023
3
2
0

ईश्वर ने जीवन का अनमोल उपहार मानव जाति को दिया है । जीवन एक प्रवाह है , इसकी गत्यात्मकता में ही इसकी सुंदरता का वास है । भारतीय मनीषियों ने भी जीवन के स्वरूप को समझने के क्रम में अगाध चिंतन किया है ।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए