वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ,
दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।
इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।
जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर उलझन संवर जाती है , मुरझाया सा मन हो चाहे बदन, कोई बागो बहार हो या गुलिश्तां ए चमन, आहिस्ता आहिस्ता मानो सब निखर जाती है ।
ये वो शय है जिसको पाने की कोशिशो क़वायद में ही सारी जूतम पैजार है , जिसको अपने आंगन में उतार लाने की कोशिश में ही सारे के सारे बेज़ार हैं ।
पर सुकून , इसके उच्चारण भर से एक गहरी सांस जो निकल पड़ती हैं अंतरतम से मानो दुनिवाई मर्ज़ों की कब्जियत का उपचार हो गया हो ।
कई मायनों में मुझे सुकून रात का पर्याय जान पड़ता हैं । दिन भर की तपिश से गुजर कर ना सिर्फ सूरज बल्कि हर मनस जिस आरामगाह को खोज रहा होता है वो रात की गर्भ से ही निकलती है । ये सुकून ही तो है जो आश्वस्त करती है पसीने से लथपथ संघर्ष को ,कि जीवन संघर्ष के बीच जो पड़ाव पड़ता है उसमें ठहर कर ही अगाध ऊर्जा संग्रहित की जाती है ।
सुकून में ही सधते है वो तमाम हुनर और करतब , जिन्हें देखकर फटी हुई आंखों से इंसानी कौम कुदरती करिश्में का नाम देती है । सुरों में बेसुध छलकता संगीत हो या कि एहसासों के समंदर में डूबते अल्फ़ाज़ , बस बोल पड़ने को आतुर कैनवास पर कोई चित्र हो या कि जिंदगी की शतरंज की बिसात पर शह और मात देने वाली कोई आखिरी चाल । ये सारे अदुनियवाई करिश्में जन्म लेते हैं सुकून की कोख से ही । तब जब मस्तिष्क सुकून की पनाह में सबसे अधिक क्रियाशील और रचनात्मक हो उठता है ।
एक प्रेमी जिसे अपने प्रेमिका के जुल्फों की छांव में गोद मे सर रखकर खोजता है तो प्रेमिका इसे प्रेमी के कंधे पर सर रखकर । पुरसुकुनियत का ये अलहदा एहसास ही प्रेम को इतना जरूरी बनाता है इंसानों के लिए ।
ये सुकून साधना में लगा हर साधक चाह रहा होता है , ये सुकून मांग रहा होता है प्रेम का वो साधक भी जब वो भीगता है किसी के एहसासों में , एहसास किसी के सांसों के आरोह और अवरोह में डूबने का , धड़कनों की तेज होती आवाज़ को नियंत्रित करते कुछ स्वरों में जो सुकून होता है वो और कहां मिले भला । शायद इसलिए इन चंद गुनगुनाते लफ़्ज़ों में वो दुनियावी आतप से सुकून पा रहा होता है , इन्ही लम्हों में मानो वो इबादत कर रहा होता है उस परम तत्व से जिससे उसके जीवन तार आबद्ध हैं , यकीन ना हो तो यकीन करिये , , आप भी सुकून की चादर की आगोश में स्वयं को सिमटते हुए पाएंगे ,,,महसूस करिये पुरसुकुनियत से सराबोर इस तरन्नुम को,,,
हमको मिली है आज ये घड़ियां नसीब से ,जी भर के देख लीजिए हमको करीब से । फिर आपके नसीब में ये रात हो ना हो ~