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सुकून~

9 अक्टूबर 2022

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वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, 
दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।

इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।

जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर उलझन संवर जाती है , मुरझाया सा मन हो चाहे बदन, कोई बागो बहार हो या गुलिश्तां ए चमन, आहिस्ता आहिस्ता मानो सब निखर जाती है । 
ये वो शय है जिसको पाने की कोशिशो क़वायद में ही सारी जूतम पैजार है , जिसको अपने आंगन में उतार लाने की कोशिश में ही सारे के सारे बेज़ार हैं । 
पर सुकून , इसके उच्चारण भर से एक गहरी सांस जो निकल पड़ती हैं अंतरतम से मानो दुनिवाई मर्ज़ों की कब्जियत का उपचार हो गया हो । 
कई मायनों में मुझे सुकून रात का पर्याय जान पड़ता हैं । दिन भर की तपिश से गुजर कर ना सिर्फ सूरज बल्कि हर मनस जिस आरामगाह को खोज रहा होता है वो रात की गर्भ से ही निकलती है । ये सुकून ही तो है जो आश्वस्त करती है पसीने से लथपथ संघर्ष को ,कि जीवन संघर्ष के बीच जो पड़ाव पड़ता है उसमें ठहर कर ही अगाध ऊर्जा संग्रहित की जाती है ।

सुकून में ही सधते है वो तमाम हुनर और करतब , जिन्हें देखकर फटी हुई आंखों से इंसानी कौम कुदरती करिश्में का नाम देती है । सुरों में बेसुध छलकता संगीत हो या कि एहसासों के समंदर में डूबते अल्फ़ाज़ , बस बोल पड़ने को आतुर कैनवास पर कोई चित्र हो या कि जिंदगी की शतरंज की बिसात पर शह और मात देने वाली कोई आखिरी चाल । ये सारे अदुनियवाई करिश्में जन्म लेते हैं सुकून की कोख से ही । तब जब मस्तिष्क सुकून की पनाह में सबसे अधिक क्रियाशील और रचनात्मक हो उठता है ।

एक प्रेमी जिसे अपने प्रेमिका के जुल्फों की छांव में गोद मे सर रखकर खोजता है तो प्रेमिका इसे प्रेमी के कंधे पर सर रखकर । पुरसुकुनियत का ये अलहदा एहसास ही प्रेम को इतना जरूरी बनाता है इंसानों के लिए ।

ये सुकून साधना में लगा हर साधक चाह रहा होता है , ये सुकून मांग रहा होता है प्रेम का वो साधक भी जब वो भीगता है किसी के एहसासों में , एहसास किसी के सांसों के आरोह और अवरोह में डूबने का , धड़कनों की तेज होती आवाज़ को नियंत्रित करते कुछ स्वरों में जो सुकून होता है वो और कहां मिले भला । शायद इसलिए इन चंद गुनगुनाते लफ़्ज़ों में वो दुनियावी आतप से सुकून पा रहा होता है ,  इन्ही लम्हों में मानो वो इबादत कर रहा होता है उस परम तत्व से जिससे उसके जीवन तार  आबद्ध हैं , यकीन ना हो तो यकीन करिये , , आप भी सुकून की चादर की आगोश में स्वयं को सिमटते हुए पाएंगे ,,,महसूस करिये पुरसुकुनियत से सराबोर इस तरन्नुम को,,,

  हमको मिली है आज ये घड़ियां नसीब से ,जी भर के देख लीजिए हमको करीब से । फिर आपके नसीब में ये रात हो ना हो ~

  
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बेहद उम्दा लिखा है आपने बहुत प्रशंसनीय लेखन किया मन को प्रभावित कर गया कृपया मेरी कहानी 'बहू की विदाई' और शापित संतान के हर भाग पर अपना लाइक 👍 और व्यू दे दें 😊🙏

8 अगस्त 2023

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

22 अगस्त 2023

जी

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut hi shandaar prastuti aapk bahutttttttt hi shandaar likhte ho bahut accha lgta hai aapka likha padhkr

9 अक्टूबर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

10 अक्टूबर 2022

जी बहुत शुक्रिया 😊💐💐

Vijay

Vijay

बहुत सुकून मिला इस सुकून से रूबरू होकर, जारी रहिए आप👏👏❤️

9 अक्टूबर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

10 अक्टूबर 2022

बहुत बहुत शुक्रिया 💐💐

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रचनाएँ
स्वयं से स्वयं तक~
5.0
स्वयं से की गयी बातचीत और ईमानदार साक्षत्कारों के कुछ चुनिंदा अंश इस पुस्तक में संग्रहित हैं ।
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7 अक्टूबर 2022
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एक जंगल उसके जेहन में अक्सर घूमता है । बियावान , भयानक, दुर्दम्य जंगल । सिंह , भालू, अजगर , हाथियों से भरा जंगल । बड़े बड़े वृक्ष ,इतने बड़े और घने कि सूरज की रोशनी तक जमीन से ना मिल पाये ।घास इतनी विशाल

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सुकून~

9 अक्टूबर 2022
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वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ, दम ले ले घड़ी भर ये छैया पायेगा कहा ।इस नग़मे में नायक को जीवन के सफर में दौड़ते हुए सुकून की छांव की इत्तला दी जा रही है ।जी हां सुकून !! जो पसर जाए तो मानो हर

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अनदेखी अनजाना~

10 अक्टूबर 2022
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उसे इंतेज़ार रहता है उस इक हसीन लम्हे का । वो लम्हा जो शायद जिंदगी के मायनों से मिला दे , जिंदगी का मतलब बता दें या फिर जिंदगी के उन गुत्थियों को सुलझा दे जिनसे मुंह मोड़ लिया है उसने । अपनी ही दुनिया म

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व्यसन (बुरी लत)पृथ्वी पर जीवन के आविर्भाव के वैज्ञानिक और आध्यत्मिक दोनों ही दृष्टिकोण हैं । इसमें एक बात तो तय है कि एक जीव मात्र से जीवन के निर्माण तक का सफर मनुष्यता की सबसे महान उपलब्धियों में से

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डिजिटल मुद्रा~भारतीय इतिहास में मुद्राओं की एक विशिष्ट भूमिका रही है । प्राचीन कालीन शासकों की उपाधि और राजनीतिक विस्तार के साथ साथ मुद्राएं आर्थिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति की गवाही देती आयी हैं ।

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आज़ादी की क़वायद के दौर में और उसके बाद की सर्वप्रमुख उपलब्धियों में से एक भारतीय संविधान का निर्माण करना और उसका लागू होना रहा है । संविधान का 'चौथा भाग' नीति निर्देशक सिद्धान्तों के रूप में राज्

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निजीकरण~एक घटित हुई सच्ची कहानी स्मरण हो आती है गांव के उस सबसे बड़े परिवार की जिसकी धनाढ्यता बहुत विख्यात थी । फिर ऐसा हुआ कि संसाधनों की अतिशयता ने उस बड़े संयुक्त परिवार के लोगों को निठल्ला बना

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शिक्षा मानवीय विकास का आधार है । वास्तव में यह उस हस्तांतरित ज्ञान के रूप में है जिससे आगे की पीढियां जीवन को सार्थक रूप में जीने की कला से साक्षात करती हैं । शिक्षा परिचित कराती है नवीन पीढ़ियों को उस

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सरकार और न्यायापालिका

30 नवम्बर 2022
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सरकार और न्यायपालिका ~किसी भी परिवेश ,समाज के संचालन के लिए व्यवस्था एक अनिवार्य तत्व है । व्यवस्था के इस निर्वहन की जिम्मेवारी शाश्वत रूप से राज्य की ही रही है । वर्तमान समय में संवैधानिक व्यवस्था के

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विश्व एड्स टीका दिवस~

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ईश्वर ने जीवन का अनमोल उपहार मानव जाति को दिया है । जीवन एक प्रवाह है , इसकी गत्यात्मकता में ही इसकी सुंदरता का वास है । भारतीय मनीषियों ने भी जीवन के स्वरूप को समझने के क्रम में अगाध चिंतन किया है ।

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