एक जंगल उसके जेहन में अक्सर घूमता है । बियावान , भयानक, दुर्दम्य जंगल । सिंह , भालू, अजगर , हाथियों से भरा जंगल । बड़े बड़े वृक्ष ,इतने बड़े और घने कि सूरज की रोशनी तक जमीन से ना मिल पाये ।घास इतनी विशाल कि छोटे मोटे वृक्ष समा जाए उसकी आगोश में । ये जंगल उसके जेहन में इस कदर बसता आया है कि कहीं गहरे जुड़ गया है वो इससे । अक्सर जब वो खुद को नितांत पाता है इस जंगल को ओढ़ लेता है स्वयं पर , कुछ ऐसे कि नथुनों से श्वास लेना दूभर लगने लगे , दम फूलने लगे और धड़कने आहिस्ता आहिस्ता बुझने सी लगे । अस्पताल के आई सी यु वार्ड में स्क्रीन पर चलती लाइफ लाइन की तरह जब सब कुछ एकरेखीय होने लगता है , उसे सब साफ और स्पष्ट नजर आने लगता है । तब वो देख पाता है उस अब तक दहाड़ते रहे सिंह की विवशता जब वो बूढ़ा होकर दयनीय सा हो जाता है , जब उसके नख शिख और पंजे भोथरे होते जाते हैं । उस विशाल हाथी की चिंघाड़ती गर्जना में छिपे उस करुणा को माप लेता है वो , जिसमे उसके विशाल भारी भरकम अस्तित्व को ढोते रहने का एक अभिशाप छिपा होता है , अजगर ,भालू , गिद्ध और ऐसे जाने कितने चराचर , जीव , जानवर जो वास्तव में अभिशप्त है मानो कुछ ऐसी ही विशेषताओं/विवशताओं के साथ जीने को ,जिनके लिए उन्हें जाना जाता है ,जिससे उनकी पहचान वाबस्ता है ~