डिजिटल मुद्रा~
भारतीय इतिहास में मुद्राओं की एक विशिष्ट भूमिका रही है । प्राचीन कालीन शासकों की उपाधि और राजनीतिक विस्तार के साथ साथ मुद्राएं आर्थिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति की गवाही देती आयी हैं । मुद्रा से तातपर्य विनिमय के सुविधाजनक बनाने के माध्यमके रुप से है । यानी एक ऐसी सुविधा जिसमें गेँहू के बदले कपास देने की मजबूरी ना हो । इन अर्थो में मुद्रा का उदगम और प्रचलन आर्थिक क्षेत्र में एक क्रांति की भांति ही रही है । लगभग ढाई हजार से अधिक रहा मुद्रा का यह इतिहास आज डिजिटल मुद्रा के रूप में एक नए युग मे प्रवेश कर रहा है । भरतीय रिज़र्व बैंक द्वारा डिजिटल रुपये की उद्घोषणा ने डिजिटल हो रही अर्थव्यवस्था को एक और मजबूत कदम की ओर बढ़ा दिया है ।
डिजिटल मुद्रा का निहितार्थ आभासी दुनिया मे मुद्रा के भी आभासी स्वरूप लेने से हैं । सूचना क्रांति के निर्बाध विस्तार और सफलता ने आज विनिमय के इतने सुविधाजनक रूप से हमें अवगत कराया है । डिजिटल विनिमय इसका सबसे प्रारम्भिक रूप था । हालांकि इसका इतिहास बहुत अधिक पुराना नही है और इसका सर्वाधिक विस्तार विमुद्रिकरण के बाद और कोरोना काल मे हुआ । हालिया समय मे पूरे देश का आधे से अधिक लेनदेन ऑनलाइन यानी डिजिटल रूप में ही हो रहा है ।
यहां सवाल ये है कि डिजिटल मुद्रा का ये नया रूप आखिर किस रूप में विशिष्ट होगा ? तो इसका जवाब ये है कि यह वाउचर के रूप में एक बार के उपयोग के लिए ही उपभोक्ता के मोबाईल में संरक्षित रहेगा । साथ ही इसमें बैंकों के मध्य निपटान प्रणाली की जरूरत नही होगी और ये पूरी तरीके से कैशलेस और कॉन्टैक्टलेश व्यवस्था होगी । यह चले आ रहे ऑनलाइन ट्रांसेक्शन की तुलना में अधिक रियल टाइम में और बेहद कम लागत से संपादित होने वाला विनिमय होगा ।
ध्यान देने की बात ये है कि डिजिटल मुद्रा की यह शुरुआत ऐसे दौर में लायी गयी है जब क्रिप्टोकरेन्सि के रूप में एक अवैधानिक डिजिटल मुद्रा प्रचलित होती जा रही है । क्रिप्टोकरेन्सि के जोख़िम से निजात पाना आवश्यक है । भारतीय अर्थव्यवस्था में शुरू हुए नव प्रवर्तनो के दृष्टिगत डिजिटल मुद्रा के इस श्रीगणेश को लोकप्रिय करने और इसकी सफलता के लिए अभी और सार्थक तकीनीकी और प्रशासकीय प्रयत्नों की दरकार है , इसकी सफल उपादेयता ही इस शुरुआत को एक क्रांतिकारी आर्थिक कदम के रूप में स्थापित करेगी ~