पसरी है गहरी खामोशी, सन्नाटा भी सोया है,
क्योंकि रातभर आसमां, शोलों के आंसू रोया है।
धुँआ-धुँआ है जिंदगी, चहुंओर शोलों का गुबार छाया है,
किसके बहकावे में आकर यूक्रेन तू, पत्थर से टकराया है।
जिस नेटो-यूएस की खातिर कीव-खारकीव गवांया है,
उनसे सिवा आश्वासन के, क्या ब्रम्हास्त्र तूने पाया है!
नहीं युद्ध कभी सेना के बल, मैदानों में जीते जाते हैं,
बंद कमरों में मीटिंग टेबल पर, नेता ही सुलझाते हैं।
वाह! बद्दप्पन की महिमा क्या ही सबने दिखलाई है,
मत फूलों दूसरे के दमपर, सीख यही सिखलाई है।।
- गीता भदौरिया