दिनांक : 20.03.2022
समय : दोपहर 3 बजे।
प्रिय सखी,
आज का दिन बड़ा ही शुभ और व्यस्तता से भरा था। आज हमारे निदेशक, जो कि साउथ इंडिया से हैं, के बेटे का जन्मदिन था। उस के उपलक्ष्य में पूजा का आयोजन भी किया गया था।
सखी, एक ही देश मे रहते हुए , हमारे देश में कितनी विविधताएँ है। उत्तर भारत में पूजा में पंडितजी जजमान से ही सभी यज्ञ, आहुति और भगवान को चढ़ावा करवाते हैं। पर दक्षिण भारत में पूजा का आयोजन पूर्णत: पुजारी जी ही करते है। यजमान का उसमे कोई रोल नहीं, बाद में पुजारी जी को दी जाने वाली दक्षिणा को छोड़ कर।
जो मुख्य विभिन्नतायें हैं, केवल वही बताती हूँ। भगवान की कोई मूर्ति या फोटो नहीं रखी। पूजा की शुरुआत में जल, फूल, सिंदूर या चन्दन भगवान को अर्पण ना कर खुद के सिर, माथे, गर्दन पर लगाया। हवन में हम लोग आम की लकड़ी प्रयोग करते है पर उन्होंने नारियल के सूखे, अर्धगोलाकार खोल का प्रयोग किया। ऐसे 7 अर्धगोलाकार खोल को उल्टा करके सर्कल बना कर रखा, जिससे वे जल्दी अग्नि पकड़ लें। मुझे भी ये प्रयोग अच्छा लगा। क्योंकि नारियल तो पवित्र फल होता है। शायद नारियल प्रयोग करने का कारण ये भी है कि नारियल साउथ इंडिया में बहुतायत में होता है। पूजा की बत्ती बनाने, रखने और जलाने में भी बहुत अंतर है, जो लिख कर नहीं बताया जा सकता।
सखी, इस तरह की विविधताओं से हम बहुत कुछ सीखते है, वर्ना कुएं के मेंढक की तरह एक छोटे कुएं को ही दुनिया मान कर ताउम्र जीते रहते है।
तुम्हारी सखी,
गीता भदौरिया