दिनाँक : 07.03.2022
समय : रात 11: 00 बजे
प्रिय सखी,
जाग रही हो ना!
सही है, उल्लूक प्रदेश के हम जैसे लेखक और कवि रातों को जागकर ही लेखन करते हैं क्योंकि दिन में तो बहुत काम होता है। क्या कहा? लेखन भी काम है? अच्छा तो बताओ, कितना जोड़ लिया? 😂
अब जो नींद में हैं, सुबह दिमाग लगाएंगे कि लक्ष्मीजी किस उल्लू पर सवार होकर निकल गई। आज कल कुछ पर बहुत मेहरबान हैं। कुछ की जगह अपना-अपना नाम सोच लेना। लिखने का खतरा हम मोल नहीं ले रहे है, क्यों फालतू में अपना दिमाग खराब करें। 😎
दिमाग से याद आया, कि 😏
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है🤔
कि जब दिमाग है हमारे पास,
तो ख्याल दिल में क्यों आता है?????🤣
शायद इसलिए की दिल सेफ है जिसे चुराया और कभी कभी तोड़ा जा सकता है। पर दिमाग को तो खाया, चाटा, खराब, ठंडा, गर्म और उसका दही जमाया जा सकता है और मन करे तो उसमें गोबर और भूसा भी भरा जा सकता है। 😜 मोटे हो गए हो तो पतला होने के लिए दिमाग से पैदल हो जाओ।😝
अब आपके दिमाग में ज्यादा खिचड़ी पकनी शुरू हो गई हो तो बता दें कि दिमाग ज्यादा मत चलाना नहीं तो ये सड़ भी जाता है। 😛 हो सकता है, सड़ भी गया हो तो सुबह फ्रेश माइंड से दुबारा मेरी डायरी पढ़ लेना, क्योंकि दिमाग नाम की भी कोई चीज़ होती है!
इसलिये, हमेशा दिमाग से काम लो, उसको चलाओ, ज्यादा दौड़ाओ मत, नहीं तो दिमाग चल जाता है और लोग पागल घोषित कर देते हैं। 💆💆🙆
आखिर मैं बस यही कहना चाहूंगी कि वक्त कीमती होता है, इसलिए हमेशा दूसरों का बर्बाद करें। 💃🏃
आपकी दिमाग से पैदल सखी,
गीता भदौरिया