दिनांक : 18.03.2022
समय : रात 9:30
प्रिय सखी,
होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
मंगल मूर्ति, सिद्धि विनायक, लंबोदर, एकदंत, विघ्नहर्ता की कृपा हम सभी पर बनी रहे। इस रंग-बिरंगे त्योहार की रंगीनियत ही इसकी खूबसूरती है।
'आपके लिए खूबसूरती की क्या परिभाषा है।" भई! होली पर इसका उत्तर रंग-बिरंगा ही होना चाहिए।
सखी, खूबसूरती तो देखने वाले कि आंखों में होती है। सावन के अंधे को तो हरा ही हरा नजर आना है। भई! अंधा क्या चाहे दो आंखे। चाहत हो तो बंदा खूबसूरती ढूंढ ही लेता है। ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते है। अब इसे राई का पहाड़ क्यों बनाना।
किसी का दिल गधी पर आया तो परी क्या चीज है। जिंदगी अपनी, फैंसला अपना। नहीं तो लोग बोलेंगे, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना! अब कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। लोग तो ये भी कहते हैं कि दूसरे की बीबी और अपने बच्चों से खूबसूरत कोई नहीं लगता। अब आप उसको ये तो कह नहीं सकते कि उसकी आंखें हैं या बटन। भई! जब प्रभु ने आँखे दीं हैं, तो कहीं ना कहीं तो चार तो होंगी ही। आंखों ही आंखों में इशारे भी होंगे, फिर चाहे किसी भी समस्या से दो चार क्यों ना होना पड़े। चार लोग क्या कहेंगे ये क्यों सोचना? चार बातें ही तो बनायेगे, बनाने दो।
सखी, जाते जाते होली का गीत सुन लीजिए-
आज बिरज में होली रे रसिया,
आज बिरज में होली रे रसिया,
होली रे रसिया, बरजोरी रे रसिया।
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
केसर रंग में बोरी रे रसिया।
बाजत ताल मृदंग झांझ ढप,
और मजीरन की जोरी रे रसिया।
फेंक गुलाल हाथ पिचकारी,
मारत भर भर पिचकारी रे रसिया।
इतने आये कुंवरे कन्हैया,
उतसों कुंवरि किसोरी रे रसिया।
नंदग्राम के जुरे हैं सखा सब,
बरसाने की गोरी रे रसिया।
दौड़ मिल फाग परस्पर खेलें।
कहि कहि होरी होरी रे रसिया॥
आपको होली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं॥
शुभरात्रि सखी।
गीता