दिनांक : 05.2.2022
समय : शाम 5 बजे
प्रिय डायरी,
गर्मियों की सुगबुगाहट के उपरांत अब उसकी तेज आवाजे भी सुनाई देने लगी हैं। सामने पार्क में कराटे करते छोटे छोटे बच्चे चिल्ला रहे है - य्याहे ....य्याहे ....य्याहे ....
सुबह शाम सर्दी है और दिन में नार्मल। सर्दी की ये जादू वाली झप्पी हमे बहुत पसंद आ रही है। क्या है ना कि हम ऐसे प्राणी है जिसे सर्दी में बहुत सर्दी लगती है और गर्मी में बहुत गर्मी, पता नहीं क्यूँ? तो ये वाला मौसम हमारे मिजाज के अनुकूल है।
वैसे ये मौसम काफी बचत वाला मौसम है। पंखे और एसी बन्द हैं, ब्लोअर का मौसम है नहीं, गीजर भी कम चलता है क्योंकि, बच्चों के प्रैक्टिकल चल रहे हैं तो बिना नहाए भाग जाते हैं, बड़े चलाते नहीं, कहीं बूढ़े न समझ लिए जाए। कुल मिलाकर, घर में बिजली की और गाड़ी में पेट्रोल की बचत हो रही है। पता नहीं कब तक? क्योंकि दिल्ली किसी भी सिचुएशन में नार्मल बिहैव नहीं करती। या तो भयंकर गर्मी या भंयकर सर्दी, भारी बरसात और वोटिंग हो जाये तो एकतरफा वोट, चाहे स्टेट हो या सेन्टर (सेन्टर भी दिल्ली में ही बैठा है ना)।
मुद्दे से भटकना हमारी आदत बनता जा रहा है।
इस बार दोनों जगह डायरी लेखन में पुरस्कार मिल गया है। बिल्कुल नेता टाइप!! दो सीटों पर लड़े थे कि अगर करहल से हारे तो जसवंत नगर की सीट से तो जीत ही जायेंगे! पर दोनों जगह जीत गए। चचा ना सुन रहे हों कहीं!!!! 🤓
डायरी जी भई! एक नावेल शुरू किया है, 'द साइलेंट वारियर', पर अभी तक पाठक हैं कुल चार। भई ये जो बाकि 151 फॉलोवर हैं, हमे फूल बना रहे हैं। इनकी नींद कैसे खोली जाए, कुछ बताओ, समझये में नहीं आ रहा है।
आपकी जादुई सखी,
गीता भदौरिया