ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक,
चाँदनी चार क़दम, धूप चली मीलों तक /
प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर,
ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक /
प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली,
कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक /
घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी,
ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक /
माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी,
मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक /
मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा,
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक /
हम तुम्हारे हैं ‘कुँअर’ उसने कहा था इक दिन,
मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक /