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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”

14 नवम्बर 2015

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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”

वरना गरीब तो सङको से थैलीयाँ तक उठा लेते है ! 


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“समुद्र बड़ा होकर भी,

अपनी हद में रहता है,

जबकि इन्सान छोटा होकर भी

अपनी हद भूल जाता है…!!!” 


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कितनी आसानी से कह दिया तुमने,

की बस अब तुम मुझे भूल जाओ !

साफ साफ लफ्जो मे कह दिया होता,

की बहुत जी लिये, अब तुम मर जाओ ! 


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क्यूँ मुश्किलों में साथ देते हैं दोस्त

क्यूँ गम को बाँट लेते हैं दोस्त,

न रिश्ता खून का न रिवाज से बंधा है,

फिर भी ज़िन्दगी भर साथ देते हैं दोस्त 


.........................................................................................................................................................................................


मैने बहुत से ईन्सान देखे हैं, जिनके बदन पर लिबास नही होता,

और बहुत से लिबास देखे हैं, जिनके अंदर ईन्सान नही होता।

कोई हालात नहीं समझता, कोई जज़्बात नहीं समझता,

ये तो बस अपनी अपनी समझ की बात है…,

कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है तो कोई पूरी किताब नहीं समझता! 


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जो मुस्कुरा रहा है, उसे दर्द ने पाला होगा,

जो चल रहा है, उसके पाँव में छाला होगा,

बिना संघर्ष के इन्सान चमक नही सकता, यारों

जो जलेगा, उसी दिये में तो उजाला होगा…। 


............................................................................................................................................................................................


हाथ में उसको कलम का आना अच्छा लगता है

उसको भी स्कूल को जाना अच्छा लगता है

बड़ा कर दिया मजबूरी ने वक्त से पहले वरना

सर पर किसको बोझ उठाना अच्छा लगता है !! 


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रिमझिम तो है मगर सावन गायब है,

बच्चे तो हैं मगर बचपन गायब है..!!

क्या हो गयी है तासीर ज़माने की यारों

अपने तो हैं मगर अपनापन गायब है ! 


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