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स्मार्टफोन, कंप्यूटर और फेसबुक के साइड इफेक्ट

30 दिसम्बर 2015

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 शायद तकनीक को ज्यादा इस्तेमाल करने वाले दंपति ऐसा महसूस कर रहे होंगे कि व्हाट्सऐप और फेसबुक ने उनके बीच दूरियां बढ़ा दी है। अपने अपने नेटवर्क में व्यस्त रहना और आपस में संवाद कम करना ही तकनीक का सबसे बड़ा नुकसान है। आजकल कपल्स के बीच तकनीक के चलते जो दूरी आ गई है वो आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है।रात को एक ही बिस्तर पर सोते हुए दो व्यक्ति आपस में बातचीत न करके अपने अपने ग्रुप में व्यस्त रहते हैं। लगातार आते नोटिफिकेशन और ग्रुप चैट में दंपत्ति भूल गए हैं कि निजी जीवन में इसका बुरा असर पड़ता है। बच्चे उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं क्योंकि आप दिन भर अपने मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। पति पत्नी आपस में प्यार के दो मीठे बोल के लिए तरस रहे हैं लेकिन वो सोशल नेटवर्किंग बेवसाइट पर उतने ही सक्रिय हैं।


प्राइवेसी की ऐसी की तैसी :

आप जब गूगल या याहू पर काम कर रहे होते हैं तो शायद जानते भी नहीं कि आपकी जासूसी हो रही है। आने वाले दिनों में आप जब हर काम कंप्यूटर के जरिए करेंगे तो आपकी हर हरकत पर कोई न कोई नजर रख रहा होगा। आप क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं और क्या करना चाहते हैं, निजी जीवन की प्राइवेसी भी सुरक्षित नहीं रह पाएगी।ऑनलाइन रहते ह‌ुए कुछ भी निजी करना असंभव होगा और आपकी जिंदगी खुली किताब की तरह सार्वजनिक रहेगी। क्या आप प्राइवेसी की कीमत पर तकनीक की ऐसी क्रांति पसंद करेंगे। शायद बिलकुल नहीं।आप अपनी पारिवारिक, सामाजिक और दफ्तर की प्राइवेसी को तकनीक के बढ़ते असर के चलते बचा कर नहीं रख पाएंगे। फेसबुक की बानगी ही देख लीजिए, आप घूमने जा रहे हैं तो फोटो शेयर करते हैं, कुछ खाया तो फोटो शेयर, कुछ देखा तो फोटो शेयर। आपकी जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं जो फेसबुक पर न जा रहा हो।नौ से पांच तक द्फ्तर और उसके बाद घर बार और बच्चे। लेकिन ये शेड्यूल बदल गया है। अब दफ्तर नौ से रात बारह बजे तक भी चल रहा है। दफ्तर में बैठा बॉस जब चाहे मेल या व्हाट्सएप के जरिए आप को नया काम सौंप सकता है। आप के पास लैपटॉप है और घर बैठकर भी आपको दफ्तर का काम करना पड़ेगा। ये जिंदगी तो आपने नहीं सोची होगी।हालांकि इस सिस्टम से नौकरी में पैसा तो अच्छा मिलेगा लेकिन पारिवारिक सुकून खत्म हो जाएगा। वाइस चैटिंग, मेल और वीडियो कॉन्फ्रैसिंग के दौर में आदमी दफ्तर से दूर होकर भी दूर नहीं रह गया है और इसका सबसे ज्यादा असर उसकी क्रिएटिविटी और पारिवारिक स्तर पर पड़ेगा।


दिमाग को कर दिया कुंद :- हम उस वक्त बहुत खुश होते हैं जब हमे किसी समस्या का हल मिल जाता है। तकनीक ने हाथों हाथ हर चीज का हल हमारे सामने परोस दिया है कि हमारा दिमाग निष्क्रिय हो रहा है। पहले हम अपने दिमाग पर जोर डालकर समस्याओं का हल निकालते थे, आजकल ट्रबलशूटर ने काम आसान भले ही कर दिया है लेकिन इससे हमारे दिमाग को जंग लग रहा है।कुछ भी नया खोजना है तो सर्च इंजन। कहीं समस्या आई तो सर्च इंजन। हमारा दिमाग अपनी सामान्य परेशानियों को भी तकनीक के जरिए हल करने लगा है। एडवांस तकनीक ने हमारी बुद्धिमत्ता को चुनौती दी है और बुद्धि हारने की कगार पर है। केलकुलेटर हो या कंप्यूटर, स्पैल चैकर हो या हो या जीपीएस डिवाइस। ये चुटकियों में हमारी जिज्ञासाओं को शांत करते हैं और दिमाग को खुलकर काम करने की इजाजत तक नहीं देते।आपसी संवाद की कमीयाद कीजिए कि आप अपने दोस्तों से आखिरी बार कब मिले थे। मां बाप से कब बात की थी और पड़ोसी� के घर कब गए थे। ये तकनीक का बढ़ता असर है कि जिगरी दोस्तों से भी चैटिंग के जरिए बात की जा रही है। वो जमाना दूर नहीं जब अगल बगल बैठ कर भी हम व्हाट्सऐप या चैटिंग के जरिए बात करेंगे।आज हम बस में हो या ट्रेन में। प्लेन में हो या किसी पर्यटन स्थल पर। हमारे हाथ हर जगह पर अपने मोबाइल पर खेलते दिखेंगे। क्यों हम कहीं जाते या सफर करते समय लोगों से बातचीत नहीं कर रहे। रिश्तों की गर्माहट खत्म होती जा रही है और तकनीकी खालीपन बढ़ता जा रहा है।वो दिन दूर नहीं जब विश्व को एक ग्लोबल विलेज बनाने वाली तकनीक आपको निपट अकेला बना देगी। आप तकनीक के इतने आदी हो जाएंगे कि आप मौखिक संवाद के लिए तरस जाएगे।


बेलगाम बच्चे :- कुछ साल पहले बच्चे 10 साल की उम्र तक बेहद मासूम हुआ करते थे। लुका छिपी, घर घर और गुड़िया गुड्डे का ब्याह रचाते बच्चे, कैरम, लूडो और पजल में उलझते बच्चे, पार्क और गलियों में दोस्तों के साथ धमा चौकड़ी करते बच्चे। लेकिन टीवी, कंप्यूटर और मोबाइल ने बच्चों का मासूम बचपन छीन लिया है। आजकल� दो दो साल के बच्चों के हाथ में मोबाइल है। टीवी पर अजीबोगरीब विज्ञापन देखकर बच्चे जिज्ञासा शांत करते हैं। बच्चे एक्टिव तो हुए हैं लेकिन इस एक्टिवनेस ने उनका बचपन छीन लिया है। इटंरनेट पर चोरी छिपे वो उन चीजों को खोज रहे हैं जो उन्हें वयस्क होने पर खोजने या समझने की जरूरत है। वो समय से पहले ही मेच्योर हो गए हैं।दस दस साल के बच्चे मोबाइल और कंप्यूटर पर पोर्न देखते पकड़े जाते हैं। उनका व्यवहार उग्र और असहनीय होता जा रहा है। घरेलू खेल खेलने की बजाय बच्चे ऑनलाइन गेम में रम रहे हैं। वो पार्क जाने की बजाय मोबाइल पर गेम खेलना पसंद कर रहे हैं। उनके दोस्त कम हो रहे हैं। मां बाप फेसबुक पर बच्चों की अति सक्रियता से इतने परेशान हैं कि उनकी जासूसी कर रहे हैं। आने वाले दिनों में तकनीक के अपडेट होने पर जाहिर तौर पर बच्चों की परवरिश मां बाप के लिए एक बड़ी चुनौती बनने वाली है।


बढ़ेगी बेरोजगारी :- 

तकनीक क्रांति के चलते कुछ ही सालों बाद हमारे उपकरण इतने हावी हो जाएंगे कि मानवीय बेरोजगारी बढ़ जाएगी। सारा काम मशीनें ही करने लगेंगी तो सोचिए इंसान क्या करेगा। आज भी गौर करें तो सस्ती और सुलभ मशीनों के चलते बेरोजगारी बढ़ी है। इसी तरह तकनीक अपडेट होती रही तो सारा काम रोबोट ही करेंगे और कामगार इंसान भूखों मरेंगे।जापान और चीन जैसे देशों में रोबोट तकनीक का उपयोग इतने धड़ल्ले से हो रहा है कि पूछिए मत। सामान उठाने के लिए मजदूर नहीं रोबोट चाहिए। घर की सफाई रोबोट करेगा, दुकान पर सेल्समैन भी रोबोट होगा। ऐसे में इंसान क्या काम करके अपना पेट भरेगा, सोचने की बात है।हाल ही में मेन्यूफेक्चरिंग फील्ड से जुड़े एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वे में कहा गया कि लगातार अपडेट होती तकनीक का सबसे बुरा असर मैन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री पर पड़ा है जहां तकनीक के चलते 40 फीसदी कामगार बेरोजगार हो चुके हैं। पैकिंग और लोडिंग के क्षेत्र में मशीनों ने लोगों के पेट पर इस तक डाका डाला है कि यहां मजदूर नही दिखते, दिखती हैं तो बस मशीनें।

डिजिटल डाटा की चुनौती :- आप खुश होते होंगे कि चलो कागज पत्तर और फाइले संभालने का झंझत खत्म हुआ, डाटा बैंक का जमाना जो है, पैन ड्राइव या हार्ड डिस्क में सेव कर लो। लेकिन कभी सोचा है कि कभी डाटा बैंक करप्ट हुआ तो क्या होगा। फिजिकल फाइलिंग के न होने से आपको मेहनत भले ही कम करनी पड़े लेकिन डिजिटल बैंक का अपना खतरा भी है। इसके लीक होने, करप्ट होने और चोरी होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।आने वाले दौर में जब सब कुछ डाटा बैंक में सेव किया जाएगा तो डाटा स्टीलिंग के केस बनेंगे। डाटा सूचनाओं को ऑथराइज तो कर दिया जाएगा लेकिन कॉपी और डुप्लीकेशन की संभावना दुगनी हो जाएगी।इसे इस तरह देखिए, आपने साल भर की मेहनत से काम किया और जरूरी कामकाज को एक पैन ड्राइव में सेव कर लिया। एक पेन ड्राइव को कॉपी करते ही आपकी साल भर की मेहनत चोरी की ली जाएगी।


तकनीक संबंधित बीमारियां और ई कचरा :- जैसे जैसे तकनीक का दायरा बढ़ेगा, उससे संबंधित बीमारियां भी जन्म लेंगी। अभी हाल ही में कराई गई रिसर्च में कहा गया है कि वाई फाई के ज्यादा इस्तेमाल से कैंसर का खतरा है। दूसरी एक रिसर्च कह रही है कि चार्ज हो रहे मोबाइल पर बात करने से रेडिएशन निकलता है जिससे कैंसर का खतरा है। ज्यादा देर पर लैपटाप पर काम करने से आंखों की रेटिना पर गलत असर पड़ता है और ज्यादा मोबाइल यूज करने पर कानों को खतरा बढ़ता है।ये कुछ ही उदाहरण हैं जो तकनीक के बढ़ते खतरे से आगाह कर रहे हैं। अब सोचिए कि इलेक्ट्रोनिक कचरे का क्या होगा जो दिनों दिन बढता जा रहा है। नए नए अपडेट गैजेट आने से दिनों दिनों ई कचरे का पहाड़खड़ा हो रहा है और पर्यावरण में कार्बन की मात्रा में बदलाव हो रहा है। सोचिए वो दिन जब आपको इस कचरे से निजात पाने में दिक्कत होगी और ये कचरा आपके घर तक पहुंच जाएगा।



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ये गंदगी तो महल वालो ने फैलाई है “साहिब”वरना गरीब तो सङको से थैलीयाँ तक उठा लेते है ! -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------“समुद्र बड़ा होकर भी,अपनी हद में रहता है,जबकि इन्सान छोटा होकर

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ओशो के दस विचार, जो लोगों में आत्मविश्वास भरते हैं :-

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जब देश में एक चपरासी के लिए योग्यता तय है , तो नेताओं के लिए योग्यता निर्धारित होनी चाहिए या नहीं …?

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       ये ऐप उन लोगों के लिए सेहत की चाबी साबित हो सकता है जो अक्सर पानी पीना भूल जाते हैं। कितना और कब पानी पिएं, इस बात की चिंता इस ऐप पर छोड़ दीजिए। प्लांट नैनी एक ऐप है जो आपको आपकी जरूरत के अनुसार पानी पीने के लिए रिमाइंडर देता है। इस ऐप के जरिए एक छोटा प्लांट बडी आपके फोन स्क्रीन पर पानी का रि

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स्मार्टफोन, कंप्यूटर और फेसबुक के साइड इफेक्ट

30 दिसम्बर 2015
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"बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं"

1 जनवरी 2016
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बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से।बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है, जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में।बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैं,जो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल में।बेटियाँ पतंगें होती हैंजो कट जाया करती ह

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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक : कुँअर बेचैन

3 जनवरी 2016
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक,चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक /प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर,ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक /प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली,कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक /घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी,ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं

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वर्ना रो पड़ोगे :-

4 जनवरी 2016
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बंद होंठों में छुपा लोये हँसी के फूलवर्ना रो पड़ोगे।हैं हवा के पासअनगिन आरियाँकटखने तूफान कीतैयारियाँकर न देना आँधियों कोरोकने की भूलवर्ना रो पड़ोगे।हर नदी परअब प्रलय के खेल हैंहर लहर के ढंग भीबेमेल हैंफेंक मत देना नदी परनिज व्यथा की धूलवर्ना रो पड़ोगे।बंद होंठों में छुपा लोये हँसी के फूलवर्ना रो पड

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मोदी जी , आपको अपने घर में लगी आग बुझाने का ख़याल नहीं आता ?

5 जनवरी 2016
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'बेकसूर लोग मारे गए और राजनेता तुच्छ बयानबाजी में उलझे रहे.' 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद एक अंग्रेजी अखबार ने इन्हीं शब्दों में देश के हालात बयां किए थे. साल बदले, सत्ता बदली लेकिन हालात बिल्कुल वैसे ही हैं. देश में आतंकी हमला होता है. जवान शहीद होते हैं. घायल होते हैं. उनका परिवार बिलखता है. देश

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"तनावमुक्ति के उपाय"

7 जनवरी 2016
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   आधुनिक जीवन में तनाव न हो यह संभव नहीं है. जीवन मिला है तो रोजमर्रा की परेशानियां भी मिली हैं. गरीब, मध्यवर्गीय, धनी, धनकुबेर – सभी किसी-न-किसी कारण से चिंतित रहते हैं और तनाव उनके शरीर को खोखला करता रहता है. समस्याओं की प्रतिक्रिया करने से तनाव उपजता है. तनाव जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है. हांला

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10 विचार जो आपको देंगे हर हालत में जीतने का जज्बा

10 जनवरी 2016
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मंजिल पर पहुंचने से पहले का रास्ता थकाने और हिम्मत तोड़ने वाला होता है. ऐसे में कोई भी हार कर बैठ सकता है. लेकिन जो अपने जज्बे को बनाए रखते हैं, वे बाद में किस्मत के धनी कहलाते हैं. अगर आप भी इस श्रेणी में आना चाहते हैं तो दुनिया की कुछ बड़ी हस्तियों की इन 10 बातों को जरूर याद रखें -1. सत्य से बड़ा

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रामजन्मभूमि मुद्दे पर सेमिनार के आयोजन को लेकर "दिल्ली विश्वविद्यालय" सियासी अखाड़े में बदल गया है. क्या एक शैक्षिक संस्थान को विवादों में लाना उचित है ?

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मनुबेन की डायरी के अंश: दुनिया जो कहती है वह कहती रहे....

11 जनवरी 2016
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महात्मा गांधी की अंतरंग सहयात्री की हाल ही में मिली डायरी बताती है कि ब्रह्मचर्य को लेकर किए गए उनके प्रयोग ने मनुबेन के जीवन को कैसे बदल डाला. वह भारतीय इतिहास का एक जाना-पहचाना चेहरा है जो आखिरी दो साल में ‘सहारा’ बनकर साये की तरह महात्मा गांधी के साथ रही. फिर भी यह चेहरा लोगों के लिए एक पहेली है.

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ऊँची इमारतों से मकान मेरा घिर गया,कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा हुआजाती रही वो स्पर्श की नरमी,बुरा हुआ।कौन सा शेर सुनाऊँ मैं तुम्हे, सोचता हूँ,नया उलझा है बहुत, और पुराना मुश्किल।सब का ख़ुशी से फासला एक कदम है,हर घर में बस एक ही कमरा कम है।अपनी वज्हे-बर्बादी स

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