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दम तोड़ती संवेदनाएं …

18 दिसम्बर 2015

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     बारिश का मौसम था, गली में पानी भरा था, सरकारी स्कूलों की छुट्टी हुई थी . गली में कुछ बच्चे हुर्दंग मचाते एक -दूसरे पर पानी के छींटे मारते जा रहे थे . मैं अपने छोटे से बेटे के साथ घर की बालकनी पर खड़ा ये नज़ारा देख रहा था . तभी मैंने एक अजीब सा हाद्सा देखा . खेलते- खेलते एक बच्चा अचानक बेसुध सा होकर सड़क पर गिर गया . मुझे लगा बच्चा शायद कुछ नाटक कर रहा होगा . बच्चे के दोस्त मदद के लिए चिल्ला रहे थे , लेकिन मैं अपने बेटे के साथ बालकनी में खड़ा सिर्फ ये ही सोच रहा था की ये हो क्या रहा है ……?

       अचानक चाचा जी मेरे पास दौड़े आये और मुझे जोर की फटकार लगायी और कहा की तेरे अंदर इतनी भी इंसानियत नहीं है की एक बच्चा सड़क पर पड़ा है और तू यही से खड़े होकर सिर्फ यह जानने की कोशिश कर रहा है की आखिर हुआ क्या है ….??? मुझे खुद पर शर्मिन्दगी महसूस हुई और मैं तुरंत नीचे गया और बेसुध बच्चे को पास अस्पताल में लेकर पहुंचा . साथ ही बच्चे के माँ - बाप का पता निकाल्कर् उनको फोन करके बुलाया . दरसल , बच्चे को गली की तरफ खिदकी में लगे कूलर से करंट लग गया था . एकलौते बच्चे के माँ - बाप ने मुझे धन्यबाद सहित लाखों दुआएं दी .

        इस घटना के बाद से चाचा जी की फटकार एक पवित्र संस्कार की तरह दिमाग में घूम रही है . हाल ही में दिल्ली में कुछ कार सवार शख्स को सिर्फ इस बात पर पीट - पीट कर मार डाला , की उसकी बाइक मामूली रूप से कार से टच हो गयी थी . हैरानी की बात यह है की भीड़ तमाशबीन बनी रही और उनकी आँखों के सामने ही उस शक्स् को मौत के घाट उतार दिया गया .

         आखिर जब बाइक सवार को बेरहमी से पीटा जा रहा था तब क्यों भीड़ से निकालकर कोई व्यक्ति सामने नहीं आया ..../ क्यों किसी ने इस लड़ाई में बीच - बचाव नहीं किया ....??? क्या हम किसी घटना के बाद होने वाली बयानबाजी का हिस्सा मात्र हैं ?   क्यों हम ऐसे विवादों में सिर्फ तमाशबीन बने रहते हैं ।् जबकि हम जानते हैं की हमारा थोड़ा सा साहस किसी अनहोनी को ताल सकता है .

          दरसल , हम डरते हैं की किसी पचड़े में न फंस जाएँ . हम ' सभ्य '् और ' साफ़ - सुथरे '् लोग हैं . हमें बचपन से ही यह सिखाया जाता है की किसी के पचड़े में न फंसा जाये , लड़ाई में किसी का बीच - बचाव न किया जाये . काम के बाद सीधे घर आ्ए्ं . कोई कुछ भी करे हमें कोई मतलब नहीं रखना चाहिए . 

         हम डरते हैं की कहीं हम किसी का निशाना न बन जाएँ . हम गंभीर असुरक्षा के बीच जी रहे हैं . हम भीतर से बहुत डरे -सहमे हुए हैं . हम लोगों से मिलते हैं , बात करते हैं , विचार समाचार देखते हैं , संवेदनशील होने का नाटक करते हैं , साहसी होने का दुम्भ् भरते हैं , पूर्वजो की वीर कहानियों को सर पर लिए घुमते हैं ,  दादा जी के इंसानियत के के किस्सों को ढोते हैं , दूसरों के दुखों पर आंसू बहाने का नाटक करते हैं ,  खुद को इंसान बताते हैं पर जब साबित करने का मौका आता है तब भाग जाते हैं . 

          लेकिन दोस्तों पीड़ा किसी की भी हो , मर्त्यु किसी की भी हो , हमें इंसान होने के नाते दर्द होना चाहिए . आज जो हाद्सा किसी और के साथ हुआ है ....., कल हमारे साथ भी हो सकता है …/ काश / हम सब वाकई जाग्रुक्  हो पाएं . आज का वक़्त चिंतन करने का है , संघर्ष करने का है , न्याय् पाने का है . आओ हम सब मिलकर हाथ बढ़ाएं ……।.

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sachin sharma's Knowledge Tonic

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3 जनवरी 2016
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक,चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक /प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर,ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक /प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली,कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक /घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी,ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं

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वर्ना रो पड़ोगे :-

4 जनवरी 2016
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मोदी जी , आपको अपने घर में लगी आग बुझाने का ख़याल नहीं आता ?

5 जनवरी 2016
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'बेकसूर लोग मारे गए और राजनेता तुच्छ बयानबाजी में उलझे रहे.' 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद एक अंग्रेजी अखबार ने इन्हीं शब्दों में देश के हालात बयां किए थे. साल बदले, सत्ता बदली लेकिन हालात बिल्कुल वैसे ही हैं. देश में आतंकी हमला होता है. जवान शहीद होते हैं. घायल होते हैं. उनका परिवार बिलखता है. देश

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"तनावमुक्ति के उपाय"

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10 विचार जो आपको देंगे हर हालत में जीतने का जज्बा

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रामजन्मभूमि मुद्दे पर सेमिनार के आयोजन को लेकर "दिल्ली विश्वविद्यालय" सियासी अखाड़े में बदल गया है. क्या एक शैक्षिक संस्थान को विवादों में लाना उचित है ?

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