पीटर ड्रकर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मार्केटिंग गुरु माने जाते हैं. उन्होंने एक मंत्र दिया - "बिक्री बढ़ानी है तो सीधे ग्राहक से जुड़िये." कैडबरी इंडिया ने इस मंत्र को पूरी तरह अपनाया. वह अपने ग्राहकों से सीधे जुडी,उनके ख़ुशी के पलों को उनके साथ मिलकर सेलिब्रेट किया,लोगों के दिल में जगह बनायीं... और बाजार में बड़ी भागीदारी अपने नाम पर ली. वह भी तब जबकि पारम्परिक मिष्ठान की वजह से बाजार में उसका दखल लगातार कमज़ोर पड़ रहा था .
बंगाल में मिष्ठी एक ऐसी मिठाई है, जिसे शादी-ब्याह या ऐसे ही समारोहों में कभी भी कोई खाने की लिस्ट से बहार नहीं कर सकता. ऐसे में आप क्या करते ....??? पुरानी कहावत है -"अगर आप किसी से जीत नहीं सकते,तो उससे हाथ मिला लीजिये." कैडबरी ने भी बिलकुल वही किया. उसने मिष्ठी से गठबंधन कर लिया. बंगाल में कंपनी की ओर से इस जनवरी में एक अभियान चलाया गया. इसकी टैगलाइन थी -'कैडबरी -मिष्टी,शेरा सृष्टि.' पूरे शहर और उपनगर की अधिकांश दुकानों को इससे जोड़ा गया. आज कोलकता में शायद ही कोई ऐसा समारोह होता हो,जहाँ कैडबरी की गिफ्ट ट्रे नज़र न आये. महज़ चार महीने के अंदर कैडबरी मिष्टी बंगाली शादी समारोहों के दौरान या उससे पहले होने वाले भोज आयोजनों का हिस्सा बन चुकी है. हालांकि पारम्परिक चॉकलेट मिष्टी भी बाजार में बनी हुई है,लेकिन पूरे कोलकाता की दुकानों पर कैडबरी मिष्टी की मांग में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है.
बंगाल में समारोहों के दौरान दी जाने वाली उपहार ट्रे को 'टटवा' कहा जाता है. पहले इसमें काले रंग की कोई मिठाई नहीं होती थी ;लेकिन चार महीने में ही "ब्लैक सन्देश " इसमें जगह बना चुका है. यह बड़ी संख्या में लोगों का पसंदीदा बन चुका है. कुछ और लोकप्रिय किस्में भी हैं ;मसलन -कैडमिश,चोको लावा, चॉकलेट तलशाश् और चॉकलेट रुई माच .....; कैडबरी के प्रेमियों के लिए इस तरह के ढेरों विकल्प हैं. लोग मिष्टी की इन नई नई किस्मों को हाथो-हाथ ले रहे हैं. कोलकाता की सबसे बड़ी मिठाई की दुकानों में से एक है- दास एंड संस. यहां आजकल कैडबरी मिष्टी सबसे ज्यादा बिकने वाले आइटमों में से एक है. खासकर वह,जिस पर बंगाली में लिखा हो - "शुभो बिबाहो ; यानी 'शुभ विवाह '. क्या बड़े,क्या बूढ़े, आधुनिक और परम्परागत मिश्रण वाला यह आइटम हर किसी को पसंद आ रहा है.
पिछले साल इसी समय कैडबरी बाजार में चॉकलेट रसगुल्ला लेकर आई थी. आज वह भी पसंदीदा उपहार बन चुका है. कंपनी ने सबसे चतुराई वाला यह किया की स्थानीय दुकानदारों से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं की,बल्कि उनके साथ ही घुल मिल गई.उन्ही के उत्पादों में चॉकलेट मिलवाकर नई नई डिश तैयार करायी. चॉकलेट मिलने से मिठाइयों का रंग कुछ डार्क जरूर हो गया,जो पहले नहीं होता था.लेकिन इस प्रयोग ने कैडबरी को एक रूढ़िवादी बाजार में जगह बनाने और स्वीकार्यता दिलाने में काफी मदद की,जहां पहले यह न के बराबर ही थी.
चॉकलेट को हर समारोह की मिठाई का दर्ज़ा दिलाने के लिए पहले भी देशव्यापी अभियान चलाये गए.लेकिन दुकानदारों ने इसे अपनी अलमारियों में जगह नहीं दी.वे तो चॉकलेट फ्लेवर वाली मिठाइयां बेचने से भी कतराते थे. बेचते भी तो अपना उत्पाद बताकर. इनमे से कंपनी को कुछ कमीशन ही देते थे, न की लाभ में हिस्सा . लेकिन बंगाल के प्रयोग ने चॉकलेट को हर बंगाली समारोह का हिस्सा बना दिया है, वह भी स्वीकार्यता के साथ .
"फंडा यह है की अगर आम समुदाय का हिस्सा बनते हैं, उसकी परम्पराओं में घुल- मिल जाते हैं तो
अपने उत्पाद को मुश्किल,परम्परागत और रूढ़िवादी बाजार में भी आसानी से पहुंचा सकते हैं."