मैं स्वप्न-लोक में एक के बाद एक, कई-कई जगहों के कई-कई दृश्य देख रहा था। पहला दृश्य: झमाझम बरसात, न कम और न ज्यादा। दूसरा: हरे-भरे खेत पूर्ण यौवन पर। तीसरा: बालियों से लदे धान के खेत झूमते हुए।सरकारी विज्ञापनों में दिखाया जाने वाला रंगीन पगड़ीधारी किसान नए-नवेले ट्रैक्टर के बगल में खड़ा मुस्कराता हुआ। दूर से आती बनारसी साड़ी पहने उसकी पत्नी के हाथ में बिजली के कनेक्शन वाला टिफिन कैरियर। अब हर समय बिजली है। बिजली से देर रात भी हमारा पिछड़ा शहर पैरिस की तरह जगमगा रहा है।एक और दृश्य: कल-कारखानों में धड़ाधड़ खादी का उत्पादन हो रहा है। वही खादी, जिसे गज-दो गज तैयार करने के लिए बापू और उनके शिष्य दिन भर चरखे पर पिले पड़े रहते थे। जगह-जगह युवा सरकार की तरह सूट-बूट धारण किए घूम रहे हैं। कई लोग विदेशों से लाए हिस्से-पुर्जों को असेंबल करके बनाई गई मेक इन इंडिया कारों में चमकती सीधी-सपाट सड़कों पर डेढ़ सौ किलोमीटर की स्पीड से भागे जा रहे हैं। विदेशी निवेशक बोरों में भरकर डॉलर और यूरो भारत में निवेश करने ला रह हैं, पर सरकार कह रही है-बहुत आ चुका। चाहें तो रख जाएं, जरूरत हुई तो इस्तेमाल कर लेंगे। वे बहुत दुखी हैं, माथा पकड़ के बैठे हैं कि हाय हमने इस महान देश की महान अर्थव्यवस्था में निवेश करने का स्वर्णिम अवसर गंवा दिया। उधर खातेधारियों के पास बैंकों से एसएमएस चले आ रहे हैं कि आपके खातों में पंद्रह-पंद्रह लाख रुपए डाल दिए हैं।सपने में दोस्त भी आ टपका, ‘क्या देख रहे हो?’ फिर उसने खुद ही उत्तर दिया, ‘यह सब डिजिटल इंडिया का कमाल है। तुम्हें छोड़ कर आजकल हरेक के पास एकदम नए ढंग के स्मार्टफोन हैं। उनमें एक खास नंबर डिजिटल इंडिया का है जो बड़े शहरों में बनाए गए ‘वॉर रूम्स’ से जुड़ा है, जिनका संबंध युद्ध स्तर पर देश की प्रगति से है। किसान स्मार्टफोन का डिजिटल इंडिया नंबर दबाता है तो वॉर रूम से तेज लेकिन अदृश्य किरण निकलती है और किसान का खेत लहलहा उठता है। इसी डिजिटल इंडिया से फैक्ट्रियों में खादी का धड़ाधड़ उत्पादन होने लगता है। इसी से स्मार्ट सिटी बन जाती हैं, विदेशी निवेशक खिंचे चले आते हैं और यही विदेशों में छिपा काला धन ले आता है। यह दरअसल डिजिटल क्रांति है जिसे अमेरिका की सिलिकन वैली में बैठे भारतीय कंप्यूटर विशेषज्ञों ने अंजाम दिया है।’यह सुन मैं चौंका तो मेरा सपना टूट गया। दोस्त गायब। मैंने मुंह धोने के लिए नल खोला। नल में पानी गायब। मैंने बाल्टी में रखे थोड़े से पानी में से चुल्लू भर लेकर मुंह धोया। वही चुल्लू भर पानी जिसमें कुछ लोग डूब मरते हैं। फिर हॉकर का डाला अखबार उठाया। पहले ही पेज पर फसल चौपट हो जाने से पांच किसानों की आत्महत्या की खबर। उसी के नीचे एक कपड़ा मिल के बंद होने और बेरोजगारों में मिल-मजदूरों के भी शामिल हो जाने का समाचार। एक और खबर कि लोगों ने बैंकों में खाते तो खोल लिए हैं, पर सत्तर फीसदी खातों में कोई पैसा नहीं। डिजिटल इंडिया के मेरे सुहाने सपने को चकनाचूर करने और पहले ही पेज को नकारात्मक खबरों से भर देने के लिए मैंने अखबार वालों को शाकाहारी गाली दी। तभी पांच कॉलम में प्रकाशित एक समाचार पर नज़र पड़ी। एक युवा नेता कह रहा है कि और सब छोड़ो, पहले ‘मेक इंडिया’ बनाओ। यह भी कोई बात है भला? कहां डिजिटल क्रांति हो रही है जिसे मैंने सपने में साक्षात देखा और कहां ‘मेक इंडिया’ का ये उबाऊ आइडिया। अरे भाई ‘मेक इंडिया’ के पीछे तो लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, बुनियादी जरूरतों आदि की ही बात है, पर मैंने सपने में सिलिकन वैली से आई जिस ‘डिजिटल क्रांति’ को देखा, उससे तो पूरे देश की कायापलट हुई जा रही है। सपना भी एकदम सुबह का था। बुजुर्ग कह गए हैं कि सुबह की वेला का सपना कभी गलत नहीं होता, पर विध्न-बाघा डालने से प्रसन्न होने वाले लोग उसे गलत सिद्ध करने में जुटे हैं।