डर लगता है उन बातों से,
जो सच्चाई पचा नहीं पाते हैं।
जिसके खिलाफ बोल दिया,
जो लोगों को धमकाते है।।
साजिश क्यों रचते हो सत्य पर,
सत्य सुनने की हिम्मत रखना।
प्रमाण अगर तुम रखते हो,
अपने पथ से क्या रूकना।।
विचार अभिव्यक्ति का,
जन-जन का अधिकार है।
क्यों बौखलाते हो तुम लोगों पर,
यह तेरा अंहकार है।।
जुबान खोलने से डर लगता,
जीवन दुष्कर हो जायेगा।
अगर किसी के अस्तित्व पर तन,
तू उंगली उठायेगा।।
कट्टरता का ताज पहनकर,
जो पर्दे पीछे छुप वार करें।
अपना पराया कर घृणा फैलाते,
मानवता पर प्रहार करे।।
डर लगता है उन बाणों से,
जो छुपकर छोड़ रहे दुनिया में।
पहने चोला मानवता का,
दैत्य छुपा है उसके मन में।।
हर तरफ अंधेरा छाया,
लोगों को जो उकसाते हैं।
जो अपने को ज्ञानी साबित करने,
घृणा के बीज उगाते हैं।।