त्याग और सेवा की मूर्ति
जो मानवता के लिए शहीद हो गए।
जो थके नहीं तनिक काम करते
कोरोना के वक्त में बलिदान हो गए।।
स्पर्श से डर लगता था,
अछूत की बीमारी थी।
घर से निकलने से डर लगता,
सुनसान सड़क सारी थी।।
जो भयंकर संकट में,
रूके नहीं सेवा करते रहे।
जान की परवाह नहीं की,
कोरोना वीर बन काम करते रहे।।
कभी ना परवाह की अपनी जान की,
हौसला बनाये रखें हर मनुष्य का।
अपनी जिंदगी दांव पर लगाई,
कभी ना सोचा अपने भविष्य का।।
ये हकीकत थी उन वीरों की गाथाएं,
जो देते रहे सड़क,थाने, अस्पताल और रेलों की सेवाएं।
कभी ना सोचा अंजाम क्या होगा?
खो बैठे अपनी जिंदगी रूकी ना सेवाएं।।
बिलखते बच्चे,बूढ़े , जवानों के आंसूओं को रोका,
उनके चेहरे पर मुस्कान लाये थे।
भूखे लोगों को खाना खिलाकर,
उन्होंने सेवा के परचम लहराये थे।।
उस वक्त पता लगा इंसानियत बची है ,
अभी भी जन में।
कुछ स्वार्थी लोगों की हीनता देखी,
तनिक इंसानियत नहीं थी उनके मन में।।
अपने जो अपनों को भुलाकर ,
जान बचाने के स्वार्थी बन गए।
छोड़ दिया तड़पते उन्हें अकेले तम में,
जो कोरोना से पीड़ित बन गये।