मैं चंचलता मन में रखती थी
हंसते मुस्कुराते चेहरे के साथ
मैं किसी के आंगन की चिड़िया थी
उड़ती थी सपनों की उड़ानों के साथ।।
हे मनुष्य क्या हो गया है
तेरी इस हीन सोच को
वासनाओं के वशीभूत हो
बदल चुका गंदी सोच को।।
मुझे मेरे मां बाप और समाज ने
डरना नहीं सिखाया।
दरिंदगी का दरिया बहता,
मुझे कभी नहीं बताया।।
मैं विश्वास की सीमाओं में ,
हमेशा निडर, निर्भीक होकर चलती थी।
मुझे पता नहीं था ,
यहां मानवता महंगी इज्जत सस्ती थी।।
जो करते हैं दुष्कर्म,
उनके यहां मां बहिन बेटी नहीं है।
निगाहों में दोष क्यों है इतना
उनकी भावनाएं आंसूओं से भिगोती नहीं है।
अगर बहिन बेटी मां है तो,
दिल उनके पास नहीं है।
संस्कार और संस्कृति नहीं
सद्गुण और सद्चरित्र की परछाईं नहीं है।
क्यों दम भरते हैं दैत्य,
निर्दोष को यहां न्याय नहीं मिलता।
हवसी बसते है दुनिया में,
सत्य के साथ दंड नहीं मिलता।।