जो अपने आप को शेर समझ रहे हैं, व्यर्थ मद के चक्कर में।
क्यों छुपकर हमला करते हैं,आ जाओ सीधे टक्कर में।
वे गुणहीन कंगाल है, दुनिया के इस मेले में।
वे नफरत मुफ्त में बेच रहे,नाकामी के ठेले में।
संस्कारों की परछाई नहीं मानवता के तरू सूख गये।
पतझड़ हो गई आत्मा,वे दुनिया में सूखे ठूंठ भये।
पैर फूल रहे देख सफलता, भयभीत हुआ तू क्यों डर में।।
तेरे जीवन के आदर्श है क्या, क्या तेरी मंजिल प्राणि।
क्यों लाभ देख रहा दुनिया का,अपने घर की समझ हानि।
झांक देख अपने अंदर, क्यों चेहरे देख रहा दुनिया के।
दर्पण के सम्मुख प्रस्तुत होकर , कुछ देख चरित्र तेरे चेहरे के।
क्यों अपना तन मन धन खोता है,दूजे को गिराने के चक्कर में।
ताकतवर मत समझ खुद को,तेरी जीत चुप्पी है उसकी।
जिस दिन अपनी पर आया वह ,हो जायेगा तेरे लिए रिस्की।
मानवता के बल वह जीत रहा,तेरी आंखों की पट्टी खोल।
जब सीमा उल्लंघन हो जायेगा,तब दिखा देगा वह अपना रोल।
मत ले इम्तिहान सब्र उसका,मिल जाये ना कहीं मिट्टी में।।
डर समझ जिसको तू,उसके सिर पर नाच रहा है।
अपने पैर कुल्हाड़ी मारकर,अपना वक्त गुजार रहा है।
नीचा दिखाना फितरत तेरी, इंसान बनकर झेल रहा है।
क्यों अपनी अंहकार के बल पर आग से मानव खेल रहा है।
तू कर्म कर रहा पशु सम,लक्षण नहीं होते यह नर में।।