जब से मिले है तुमसे जीने की वजह मिल गयी।
आज़ाद होने वाला हूँ मैं भी खत्म सजा हो गयी।।1।।
जिसने भी काटी थी राहे खुदा में अपनी जिंदगी।
उन सभी को जन्नत में देखो तो जगह मिल गयी।।2।।
अहसान मानतें है तुम्हारा जो यूँ रोशनी देते रहे।
अब चले जाओ जुगुनुओं शब की सुबह हो गयी।।3।।
जब से दूर गया है तू मैं यहाँ-वहाँ घुमा करता हूँ।
मेरी ज़िंदगी बंजारे की ज़िंदगी की तरह हो गयी।।4।।
कई दिनों से वो नाराज़ थीं मेरी मसरूफियत पे।
सोचा था आज मनायेंगे रात में पर वह सो गयी।।5।।
किसी के पास ना वक्त है अपनें रिश्तों के लिए।
सभी के लिए ज़िंदगी मे बस दौलत ही रह गयी।।6।।
बड़ा परेशां हूँ ज़िन्दगी की भाग दौड़ में कब से।
अभी तो मेरी आंखे लगी थी देखो सहर हो गयी।।7।।
एक वक्त था लोग उनकी मिसालें दिया करते थे।
कैसे उनके दिलों में मोहब्बत अब जहर हो गयी।।8।।
आजकल लगा रहता हूँ मोहब्बत को जानने में।
यूँ बातो ही बातों में इश्क पाने की शर्त लग गयी।।9।।
वैसे तो वह पत्थर दिल कभी यूँ तो रोता नहीं है।
आज जाने क्यूँ उसकी नज़र अश्क से भर गयी।।10।।
वह जितना भी कमाता है कम ही पड़ जाता है।
दुनियाँ में अब ज़िंदगी जीने की लागत बढ़ गयी।।11।।
उसको ना दो कोई काम उसका मन लगता नहीं।
उसके दिल में बस सनम पाने की लगन रह गयी।।12।।
यूँ हमने उसको ज़रा सा भी ना अहसास कराया।
उसको ना पता उसकी बातें हमें जिगर कर गयी।।13।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ