अप्सरा
लेखक--शक्ति सिंह नेगी
निकल जाओ रूपा। देवराज इंद्र ने रूपा को श्राप देते हुए कहा। तुम्हारा मन स्वर्ग के कार्यों में नहीं लगता। जाओ तुम पृथ्वी लोक में रहोगी।
देवराज इंद्र मुझे क्षमा कर दीजिए - रूपा ने अनुनय करते हुए कहा। इंद्र थोड़ा पसीजे। बोले ठीक है लेकिन 1000 वर्षों तक तुम पृथ्वी पर रहोगी। रूपा ने राहत की सांस ली।
रूपा स्वर्ग लोक की रूपवती गुणवती अप्सरा थी। क्षण भर में ही रूपा सादे पृथ्वीवासियों जैसे कपड़ों में पृथ्वी के सुजानपुर नामक गांव में थी।
गांव के ठाकुर रणवीर अपनी जीप में वहां से गुजर रहे थे। वे रूपा से बोले तुम कौन हो और यहां क्या कर रही हो। रूपा बोली मैं रूपा हूं। मुझे काम की तलाश है। मेरे मां-बाप भाई-बहन कोई नहीं हैं।
ठाकुर बोले तुम क्या-क्या कार्य जानती हो। रूपा बोली मैंने गणित से एमएससी किया है। इसके अलावा मैं घर के सभी कार्यों में निपुण हूं। ठाकुर बोले ठीक है मैं तुम्हें अपना पी.ए. नियुक्त करता हूं और तुम्हारी सैलरी ₹5लाख प्रतिमाह होगी। रहना, खाना हमारे साथ ही होगा।
रणवीर का चरित्र व स्वास्थ्य चंद्रमा व सूरज की तरह निर्मल व सबल था।