पेट में कोई बात नहीं पचती
अपने आसपास बहुधा लोगों को यह कहते सुना जाता है कि तुम्हारे पेट में कोई बात पचती भी है क्या? इसके उत्तर में उनका कथन होता है कि क्या करें हम बात को पचा ही नहीं सकते। यदि सुनी हुई बात किसी को न बताएँ तो पेट में दर्द होने लगता है अथवा पेट में अफ़ारा हो जाता है। जब तक सुनी हुई बात वे किसी को सुना न लें तब तक कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जब तक सुनी हुई बात को वे किसी दूसरे को सुना न लें तब तक उन्हें बेचैनी होती रहती है। इस कारण वे सारा समय बहुत ही असहज महसूस करते हैं। उनका मन किसी भी काम में नहीं लगता। वे प्रतीक्षा करते रहते हैं कि कब कोई ऐसा व्यक्ति सामने आ जाएगा और वे उसे वह बात सुनकर अपने मन का बोझ उतार सकेंगे। दूसरे को वह बात सुनाकर वे स्वयं को हल्का कर लेते हैं। यानी उनके मन पर पड़ा हुआ वह बोझ समाप्त हो जाता है और सहज हो जाते हैं। उस समय उन्हें ऐसा लगता है कि मानो उन्होंने कोई जंग जीत ली हो।
यहाँ मैं एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ कि बात न पचने पर चुगली की आदत बढ़ती है। जो लोग किसी की बात को अपने मन में नहीं रख सकते, वे शीघ्र ही उसे दूसरे को सुनाकर अपने तनाव से मुक्त होना चाहते हैं। इस तरह चुगली करने की आदत पनपने लगती है। ऐसे लोग किसी को भी पसन्द नहीं आते। उनकी बात को चटखारे लेकर सुनने वाले उनके साथी उन्हीं पर विश्वास नहीं करते। उनके साथ वे ऐसी किसी भी चर्चा से परहेज करते हैं, जिसका वे ढिंढोरा पीट सकें और उन्हें कभी भी अपमानित कर सकें।
इससे भी बढ़कर समस्या तब उत्पन्न होती है जब रहस्य न पचने पर खतरा बढ़ जाता है। हर व्यक्ति के जीवन में कुछ रहस्य होते हैं। उन्हैं वे कभी दूसरों के समक्ष उद्घाटित नहीं करना चाहते। इससे उन्हें अपनी बदनामी का डर बना रहता है। वे अपने रहस्यों को सार्वजनिक करने वालों को कभी क्षमा नहीं मर पाते, उनसे शीघ्र ही किनारा कर लेते हैं। इस प्रकार उन लोगों में शत्रुता का बिज पनपने लगता है, जिसका फल बहुत कष्टदायी होता है।
इन लोगों को चुगलखोर कहकार सदा ही अपमानित किया जाता है। मजे की बात यह है कि जानते-बूझते हुए भी ये लोग अपना रास्ता नहीं छोड़ते। इन लोगों पर कोई असर नहीं होता। चिकने घड़े की तरह के ये लोग अपनी आदत से मजबूर रहते हैं। इन्हें ऐसे ऊल-जलूल कार्यों को करने में ही आनन्द आता है। सर्वत्र अपना उपहास करवाते हैं।
ऐसे चुगलखोर व्यक्ति को समाज में सम्मान नहीं मिलता। इन लोगों को सब छिछोरा कहते हैं। इनसे सम्पर्क सदा ही कष्टप्रद होता है। काम पड़ने पर इनकी सहायता तो ली जा सकती है पर सदा के लिए दोस्ती नहीं की जा सकती। एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि जिसकी बात को उसकी पीठ पीछे नमक-मिर्च लगाकर, चटखारे लेकर सुनाई जाती है, वह घूम-फिरकर, तोड़-मरोड़कर उस व्यक्ति तक पहुँच ही जाती है। फिर उसका परिणाम कभी सुखद नहीं होता।
ईश्वर ने दो कान और एक मुँह दिया है। इसका अर्थ है सुनो अधिक और बोलो कम। कम बोलने का अर्थ है नाप-तौलकर मुँह से शब्द निकालो। अपने आचरण से किसी के मन को पीड़ित न करो। मनुष्य को सागर की तरह गम्भीर होना चाहिए। जिस प्रकार सागर में अथाह खजाना छिपा रहता है, अनेक नदियाँ उसमें आकर मिल जाती हैं। उसी तरह मनुष्य को भी सभी के रहस्य अपने में समाकर रखने चाहिए। उसे किसी भी परिस्थिति में सामने वाले विश्वास नहीं तोडना चाहिए। कोई व्यक्ति यदि उसे अपना समझता है तभी तो अपने रहस्य उसके साथ साझा करता है। अपने ओछेपन के कारण अपनी साख मिटटी में नहीं मिलनी चाहिए। उसके स्थान पर अपनी विशाल हृदयता का परिचय देते हुए सबका विश्वास जीतने का प्रयास करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद