मूर्खों की मूर्खता
मनीषी मनुष्य को उसके आचार और व्यवहार से परखते हैं कि वह कितने पानी में है अर्थात् वह बुद्धिमान है अथवा मूर्ख है। विद्वत्ता विद्वानों का निकष होती है और दूसरी ओर मूर्खों की मूर्खता उन्हें सबसे अलग कर देती है। उनके हाव-भाव, उनकी छिछली बातें उनकी मूर्खता का प्रत्यक्ष प्रमाण बनती हैं।
आज हम इस विषय पर विचार करते हैं कि समाज कुछ लोगों को मूर्ख क्यों कहता है? उनमें ऐसी क्या बुराई होती है, जिसके कारण उन्हें मूर्ख कहकर तिरस्कृत किया जाता है? वे भी हमारी तरह ही मनुष्य होते हैं, फिर उनके लिए पशुओं जैसे सम्बोधनों का प्रयोग किसलिए किया जाता है?
किसी मनीषी ने मूर्ख मनुष्यों के पांच लक्षण बताए हैं, जिनसे इनकी पहचान करना सरल हो जाता है -
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥
अर्थात् मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व करना, अपशब्द बोलना, क्रोध करना, हठी होना और दूसरों की बातों का अनादर करना।
सबसे बड़ी समझने वाली बात यह है कि मनुष्य जनता है कि वह सफलता की सीढ़ियाँ कितनी भी चढ़ता जाए उसे कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए। वैसे भी रूप, कुल, जाति, विद्वत्ता का गर्व मनुष्य को डुबा देता है। दूसरों का यथायोग्य सम्मान करना चाहिए।स्वप्न में भी अनावश्यक ही किसी का अपमान करने के विषय में सोचना ही नहीं चाहिए।
बात-बात पर आग बबूल होना, भड़क जाना, दूसरों को भला-बुरा कहना अच्छा नहीं माना जाता। ऐसा मनुष्य सबकी नजरों से गिमर जाता है। अपने ही उसे अनदेखा करने लगते हैं, तो फिर दूसरे भी तो मूँह मोड़ेंगे ही। हर बात पर अड़ जाना या हाथ करना भी समझदारी नहीं कहलाती। जो अपनी-अपनी ही कहता जाए और दूसरों को महत्त्व न दे उससे किनारा कर लेना ही श्रेयस्कर होता है। जबकि दूसरों की बातों को सुनना, उन पर विचार करना और उन्हें मान लेने से कोई हानि नहीं होती। अपने भले के लिए कही गई बातों को को भी जो न माने, ऐसा हठी इन्सान अन्ततः सबकी उपेक्षा का ही पात्र बनता है।
इन अवगुणों से युक्त मनुष्य मूर्ख ही कहलाएगा। ऐसे लोग अपने आसपास मिल ही जाते हैं। उन्हें चिराग लेकर ढूँढने की आवश्यकता नहीं होती। किसी विद्वान ने मूर्ख मनुष्य की परिभाषा लिखते हुए कहा है -
अनाहूत: प्रविशति अपॄष्टो बहु भाषते।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधम:॥
अर्थात् मूढ़ चित्त वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही सभा में प्रवेश करता है , बिना पूछे ही बहुत बोलता है तथा अविश्वसनीय व्यक्ति पर विश्वास करता है।
इसका अर्थ है कि मूढ़ व्यक्ति बिना बुलाए कहीं भी चला जाता है। वहाँ जाने के पश्चात् आयोजकों से बिना स्वीकृति लिए बोलने लगता है। जब बोलता है तो बोलता ही चला जाता है। ऐसे मनुष्य को भला कैसे और कौन पसन्द करेगा। इसलिए लोग उसे अनदेखा करते हैं, तिरस्कृत करते हैं। सबसे बड़ी खराबी इनकी यह है कि ये ऐसे लोगो पर भरोसा करते हैं जिन पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता।
इस तरह के मनुष्यों में जिस अवगुण की अधिकता होती है, उनकी उसी गुण से मिलते-जुलते पशु के साथ तुलना की जाती है। इसका सीधा-सा यही अर्थ होता है कि उस पशु विशेष से तुलना करके उस मूर्ख मनुष्य का अपमान किया जाता है।
इन मूर्खों को समझदारों की कही बातें बिल्कुल पसन्द नहीं आतीं। उन्हें तो अपने जैसे लोग आसानी से मिल जाते हैं। इसीलिए कहते हैं कि -
मूर्खा: मूर्खै: सह विचरन्ति।
यानी मूर्खों को अपने जैसे मूर्ख ही अच्छे लगते हैं। इसलिए ये उन्हीं की संगति में रहकर प्रसन्न होते हैं। इनकी मूर्खताओं को सहन कारणे के स्थान पर इन्हें समझदार बनाने का प्रयास कर सकें तो अच्छा है।
चन्द्र प्रभा सूद