हिंसा मान्य नहीं
हिंसा किसी भी प्रकार की हो, सभ्य समाज में कदापि, किसी भी शर्त पर मान्य नहीं हो सकती, फिर वह चाहे किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्धित हो अथवा राजनीति से ही प्रेरित क्यों न हो। अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति के लिए जन साधारण अथवा अपने देश के बहुमूल्य जान और माल को हानि पहुँचाना किसी भी तरह से बहादुरी का काम नहीं कहा जा सकता। ऐसे कार्य मानसिक विकृति वाले लोग ही कर सकते हैं। कोई भी विवेकी व्यक्ति ऐसे निन्दनीय कार्य करने से डरता है।
घर-परिवार में एक-एक वस्तु को जोड़ते-जोड़ते वर्षों बीत जाते हैं। उसके लिए न जाने अपने कितने अरमानों का गाला घोंटा जाता है। दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह मनुष्य खटता रहता है, अपना आराम भी त्याग देता है, तब जाकर अपनी मनचाही सुख-सुविधाएँ बटोर पाने में वह समर्थ हो पाता है। उसकी गाढ़ी कमाई पल भर में कुछ मुठ्ठी भर सनकी लोग बरबाद कर देते हैं।
सरकारी सम्पत्ति यानी सरकारी कार्यालय, बस, रेल या वाहनों आदि को आग के हवाले कर देने से कभी समस्या नहीं सुलझ सकती। इस तरह से जो भी करोड़ों रुपयों की बरबादी होती है, वह धन हम सभी इनकम टेक्स देने वालों के खून-पसीने की कमाई का होता है। इस तरह यह नुकसान हमारा ही तो होता है। इससे भी अधिक जिन असुविधाओं से आम जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वह भी इसी हिंसक प्रवृत्ति का ही एक हिस्सा होता है।
जितना समय हिंसक गतिविधियों होती रहती हैं, उतने समय तक स्कूल, कालेज, सरकारी अथवा गैर सरकारी सभी कार्यालय, बाजार आदि सावधानी वश बन्द कर दिए जाते हैं। शहरों में कर्फ्यू लगा दिया जाता है। किसी को भी घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जाती। बच्चे और बड़े सभी घरों में कैद होकर मानसिक कष्ट भोगते हैं।
इस विकट स्थिति में बच्चों की पढ़ाई में बाधा आती है। कार्यालयों के बन्द हो जाने से बहुत हानि होती है। बाजारों के बन्द हो जाने दैनन्दिन आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असुविधा होती है। सबसे अधिक कठिनाई उन लोगों को आती है जो प्रतिदिन कुँआ खोदते हैं और पानी पीते हैं। अर्थात् जो रोज कमाते हैं तभी उनके घर चूल्हा जलता है।
रोगी व्यक्ति जिसे उस समय एमरजेंसी में चिकित्सा की आवश्यकता हो जाती है, उसे अस्पताल ले जाना असंभव-सा हो जाता है। कभी-कभी ऐसे रोगियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ जाता है। बाजार बन्द हो जाने के कारण बीमारी की अवस्था में दवा नहीं मिल सकती। इसे रोग बढ़ जाता है। अस्पताल न पहुँच पाने के कारण बहुत बार प्रसूता माताओं को अपने नवजात शिशुओं से वञ्चित रह जाना पड़ता है।
रेल, बस आदि के जलाए जाने से यातायात प्रभावित होता है। एक स्थान से दूसरे स्थान जाना नहीं हो पाता। लोगों के सभी आवश्यक कार्य धरे रह जाते हैं। ऐसे माहौल में बहुत बार लोगों को अपने बच्चों के विवाह आदि के आवश्यक कार्य स्थगित करने पड़ जाते हैं। जिन युवाओं को अपने इन्टरव्यूह या परीक्षा के जाना होता है, वे नहीं जा पाते। इसलिए उनके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
इन सब परेशानियों से भी बढ़कर अपने देश की छवि विश्व में धूमिल होती है। इससे पर्यटन पर भी प्रभाव पड़ता है। देश में आने वाले धन की हानि होती है। देश की अर्थव्यवस्था पर इन सबका बहुत प्रभाव पड़ता है। यदि देश की आर्थिक स्थिति ख़राब होती है तो देश की प्रगति भी बाधित होती है। उसका हम सबके जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
अपने और अपनों की सुख और सुविधा के लिए और अपने देश की भलाई के लिए हिंसा, आगजनी आदि दुष्कृत्यों को अन्जाम देने से पहले एक बार, दो बार नहीं हजार बार सोचना चहिए। अपना विरोध प्रकट करने के कई अन्य उपाय हैं, उनका सहारा लिया जा सकता है। जापान के देशवासियों की तरह काली पट्टी बांधकर कार्य किया जा सकता है। अपनी बात को मनवाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद