पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर
कहते हैं पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करना चाहिए। इस उक्ति को सरल भाषा में हम कह सकते हैं कि जिस स्थान पर मनुष्य रहता है अथवा जहाँ वह कार्य करता है, वहाँ के बॉस से या समर्थ कहे जाने वाले व्यक्तियों से शत्रुता मोल नहीं लेनी चाहिए। उनका विरोध करने का अर्थ होता है अपनी स्वयं की मानसिक शान्ति भंग करना। अपने जी का जंजाल पाल लेना होता है।
यदि कभी ऐसी स्थिति बन जाती है कि उनका विरोध करना पड़ जाए तब सारा समय मनुष्य उनके द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। जिन लोगों को गलत कार्य करने से रोका जाएगा, उनकी नाराजगी तो हर हाल में झेलनी ही पड़ेगी। गलत कार्य करने वाले भी कहाँ मानते हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया है। वे स्वयं को पाक-साफ बताने के लिए सौ तर्क ढूँढ लेते हैं। अपने विरोधी को परेशान करने के लिए, वे उसके विरूद्ध तरह-तरह के षड्यन्त्र करते हैं। वे दुष्ट लोग उस मनुष्य का जीना हराम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
वास्तविकता यह है कि दूसरों से ईमानदारी और सच्चाई की अपेक्षा करने वाला मनुष्य स्वयं कितना भी भ्रष्ट आचरण क्यों न करे करें, संस्था को हानि पहुँचाएँ, नियम के विरुद्ध कार्य करें, फिर भी वे नहीं चाहते कि उनका अधीनस्थ कोई भी कर्मचारी कभी उस पर अँगुली उठाए, उन पर आक्षेप लगाए या उनका प्रतिवाद करे। इसिलए वे भड़क उठते हैं। अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए वे और भी गलत काम करने लगते हैं। स्वयं वे सुधारना नहीं चाहते और जो उन्हें अपनी गलती सुधारने का अवसर देना चाहते हैं, उन्हीं के पीछे वे हाथ धोकर पड़ जाते हैं।
ईमानदारी और सच्चाई से कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति अपनी संस्था को इस प्रकार लूटते हुए, बरबाद होते हुए नहीं देख सकता। उसका अन्तर्मन उस अन्याय को देखकर उसे कचोटता रहता है। इसीलिए वह उन घाघ लोगों के विरुद्ध जंग छेड़ देता है।ऐसे भ्रष्ट लोग ऊपर तक अपने ही जैसे साथियों को जी-जान खुश रखने का प्रयास करते हैं। वे खुद भी मौज करते हैं और उन्हें भी मौज करवाते हैं।
इस तरह नीचे से ऊपर तक उन एक जैसे कुमार्गामी लोगों की चेन-सी बन जाती है। ये लोग एक-दूसरे के बचाव में इसलिए खड़े हो जाते हैं क्योंकि कल को उन्हें भी ऐसी विकट स्थितियो का सामने करना पड़ सकता है। इन लोगों के लिए ये मुहावरे सटीक है-
चोर-चोर मौसेरे भाई तथा हमाम में सब नंगे
ये मुहावरे स्पष्ट करते हैं कि दुष्ट अपने दुष्ट मित्रों का साथ पसन्द करते हैं। ईमानदारी, सच्चाई आदि शब्द उनके शब्दकोश में नहीं होते।
सबसे मजे की बात तो यह है कि दुर्जनों की मित्रता स्वार्थ की होती है। एक-दूसरे के रहस्य इन्हें ज्ञात होते हैं। एक-दूसरे की ढाल बनकर ये परस्पर खड़े हो जाते हैं। जब अवसर आता है, तब अपनी जान बचाने के लिए दूसरे को धत्ता दिखा देते हैं। तब उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता। सरकारी गवाह बनकर ये लोग एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। उस समय उनमें भाईचारा गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाता है। उस समय ये दूसरों को ग़ाली देते हैं, उन्हें देख लेने तक की धमकी देते हैं।
सच्चाई और ईमानदारी ये ऐसे गुण हैं, जिनका मूल्य इस संसार में कोई नहीं लगा सकता। इन गुणों से युक्त व्यक्ति की आँखों में आँखे डालकर बात करना बहुत कठिन होता है। यह भी सच है कि बुराई बेशक पनपती हुई दिखाई देती है, परन्तु जीत अन्ततः सच्चाई की ही होती है। जो भी गलत रास्ते पर चलता है, एक-न-एक दिन उसका दुष्परिणाम उसे भुगतना पड़ता है। अपने धन-वैभव या उच्च पद के कारण वह कुछ समय तक बच सकता है, पर सदा के लिए नहीं। ईश्वर जब न्याय करता है, तब उसकी सजा भोगने में बहुत कष्ट होता है। अपने सदगुणों का त्याग मनुष्य को कभी भी, किसी शर्त पर नहीं करना चाहिए। अन्याय के विरुद्ध में आवाज उठाते रहना चाहिए। देर-सवेर उसका असर अवश्य होता है।
चन्द्र प्रभा सूद