समस्या कन्या शिक्षा की
शिक्षा की समस्या आज हमारे भारत में बहुत ही विकट रूप धारण किए हुए है। यहाँ अशिक्षा का प्रतिशत बहुत अधिक है। फिर उस पर लड़कियों की शिक्षा? बड़े शहरों में भी इस समस्या से हम इन्कार नहीं कर सकते तो फिर छोटे शहरों, गाँवों व कस्बों में इसकी स्थिति और भी चौंकाने वाली है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग सोचते हैं कि जितने बच्चे होंगे, उतना कमाएँगे। वे यह भी सोचते हैं कि लड़की यदि पढ़ने चली जाएगी तो घर का काम कौन करेगा? छोटे भाई-बहनों का ध्यान कौन रखेगा?
नारी शिक्षा की चर्चा करना वास्तव में बहुत आवश्यक है। लड़कियों को शिक्षित करना यानी आधी आबादी को शिक्षित करना है। उनकी शिक्षा को इसलिए भी आवश्यक माना जाता है कि वे समाज व परिवार की धुरी होती हैं। उनके पढ़े होने से वे पूरी पीढ़ी को शिक्षित कर सकती हैं। बहुत से लोग लड़कियों को भी लड़कों की भाँति अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। लड़कियाँ योग्य बनकर आज पुरुषों के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चल रही हैं। वे उच्च पदासीन होकर अपने माता-पिता का सिर गर्व से ऊँचा कर रही हैं।
फिर भी आज के बहुत से परिवार ऐसे हैं जहाँ उन्हें शिक्षा से वञ्चित रखा जाता है। कुछ लोगों की संकुचित सोच है कि लड़की तो शादी करके पराए घर चली जाएगी। इसलिए उसे पढ़ाने में अपना पैसा क्यों बरबाद किया जाए? लड़का अपने पास घर में रहेगा, बुढ़ापे की लाठी बनेगा। इसलिए उसे पढ़ाने के लिए पैसे खर्चने का लाभ होगा।
प्रातः स्मरणीय स्वामी दयानन्द सरस्वती और राजाराम मोहन राय जैसे महापुरुषों ने स्त्री शिक्षा पर बहुत अधिक बल दिया। अशिक्षा के अन्धकार से उन्हें निकलने के लिए यह मुहिम चलाई कि लड़कियों को शिक्षित किया जाए। उन्हें भी लड़कों की तरह विद्या ग्रहण करने का अधिकार है।
वैदिक काल में गार्गी, सुलभा, मैत्रयी, कात्यायनी आदि सुशिक्षित स्त्रियाँ थीं जो ऋषि-मुनियों की शंकाओं का समाधान भी करती थीं। विदुषी मैत्रेयी और महर्षि याज्ञवल्क्य का संवाद बहुत महत्त्वपूर्ण है। उस समय स्त्रियाँ राजसभा और समितियों में भी अपना पूर्ण योगदान देती थीं।
अपनी विद्वता के बल पर विदुषी भारती ने आदी शंकराचार्य को परास्त कर दिया था। परम विदुषी विद्योत्तमा ने अपने समय के अनेक विद्वानों को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया था। तब उन तथाकथित विद्वानों ने ईर्ष्यावश एक महामूर्ख से उसका विवाह धोखे से करवा दिया था। उसने अपने पति को घर से बाहर निकल दिया था। अपने अपमान से दुखी परम विद्वान बनकर उन्होंने संस्कृत भाषा के मूर्धन्य कवियों में स्थान बनाया। उन्हें हम आज महाकवि कालिदास के नाम से जानते हैं।
राजा अर्थात सरकार का यह कर्त्तव्य है कि वह शिक्षा के लिए सजग रहे। देश में कोई भी बच्चा चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की विद्या से रहित नहीँ रहना चाहिए। ऋग्वेद ६/४४/१८ का भाष्य करते हुए स्वामी दयानन्द सरस्वती लिखते हैं कि राजा ऐसा यत्न करें जिससे उनके राज्य में सभी बालक और बालिकाएँ ब्रह्मचर्य से विद्यायुक्त होकर समृद्धि को प्राप्त हों। वे सभी सत्य, न्याय और धर्म का निरन्तर सेवन कर सकें।
इसी प्रकार यजुर्वेद १०/७ में भी कहा है कि प्रत्येक राजा का दायित्व बनता है कि वह अपने राज्य में प्रयत्नपूर्वक सब स्त्रियों को विदुषी बनाए।
इसके अतिरिक्त विद्वानों से भी ऋग्वेद ३/१/२३ में कहा गया है कि सब कुमार और कुमारियों को पुन्दित बनावे, जिससे सब विद्या के फल को प्राप्त होकर सुमति बन सकें।
एवंविध विदुषियों के लिए भी ऋग्वेद २/४१/१६ में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि जितनी कुमारी हैं वे विदुषियों से विद्या अध्ययन करें।
हम इस बात से कदापि इन्कार नहीं कर सकते कि प्राचीन भारत में स्त्रियाँ शिक्षित होती थीं। वे अध्ययन-अध्यापन का कार्य भी किया करती थीं। किसी भी क्षेत्र में वे पिछड़ी हुई नहीं थीं।
स्त्रियों की अशिक्षा की समस्या की जड़ मुगल काल है जहाँ लड़कियों को शिक्षा से वञ्चित रहने पर विवश कर दिया गया। उस समय सुन्दर लड़कियों का मुग़ल जबरदस्ती अपहरण कर लेते थे। इसलिए लड़कियों को अकेले घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी। परन्तु आज हम परतन्त्रता की बेड़ियों को तोड़कर स्वतन्त्रतापूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं। अब हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम समाज से इस कुरीति को जड़ से उखाड़ फैंके दें और प्राचीन गौरव के अनुरूप ही अपनी बेटियों को शिक्षा के अधिकार से कभी वञ्चित न रखें।
चन्द्र प्रभा सूद