सहृदयता का व्यवहार
किसी जीव के साथ दुर्व्यवहार करने की आज्ञा ईश्वर किसी भी मनुष्य को नहीं देता। वह चाहता है कि हर मनुष्य अन्य सभी के साथ सहृदयता का व्यवहार करे। उसे इतनी समझ होनी चाहिए कि यह सृष्टि किसी जीव विशेष के लिए नहीं बनाई गई है बल्कि हर जीव को उसने यहाँ पर बराबर का अधिकार दिया है। इसलिए अपने को श्रेष्ठ समझना और दूसरों को स्वयं से हीन मानकर उनकी अवमानना करना उसे कभी नहीं भाता।
मनुष्यों को समझना चाहिए कि वह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है। उसका यह दायित्व बनता है कि वह सभी जीवों को संरक्षण दे और उनका ध्यान रखे। हर जीव को उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के ही अनुसार ही यहाँ उसके भाग्य के अनुसार ही सब कुछ प्राप्त होता है। चाहे वे सुख और दुःख हों, समृद्धि हो, रंग-रूप हो, विद्वत्ता हो अथवा अन्य कोई भी भौतिक उपलब्धि हो।
एक सुप्रसिद्ध कथा के माध्यम से हम इस सार तत्त्व को समझने का प्रयास करते हैं। चौदह वर्ष के वनवास की अवधि पूर्ण करके भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे थे। उस समय बहुत ही धूम-धाम से उनका राजतिलक किया गया और सम्मान के साथ उन्हें अयोध्या की राजगद्दी पर बिठा दिया गया। राजा बनने के उपरान्त उन्होंने अपने अनुज लक्ष्मण को आदेश दिया - 'प्रतिदिन भोजन करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना कि हमारे द्वार पर कोई व्यक्ति भूखा न रह जाए।'
प्रतिदिन की तरह एक दिन लक्ष्मण जी ने राम जी से आकर कहा - 'मैं अभी आवाज लगाकर आया हूँ, कोई भी भूखा नहीं है।'
भगवान ने कहा - 'पुनः जाकर आवाज लगाओ शायद कोई भूखा रह गया हो।'
भाई के आदेश पालन करते हुए वे फिर बाहर गए और उन्होंने जोर से आवाज लगाई। किसी आदमी ने जवाब नहीं दिया परन्तु वहाँ एक कुत्ता रो रहा था।
उन्होंने आकर बताया - 'बाहर कोई व्यक्ति तो भूखा नहीं है किन्तु एक कुत्ता रो रहा है।'
राम जी ने उस कुत्ते से जाकर पूछा - 'तुम रो क्यों रहे हो?'
कुत्ते ने उत्तर दिया - 'एक ब्राह्मण ने मुझे डण्डे से मारा है।'
उन्होंने तत्काल ब्राह्मण को बुलवाया और उससे पूछा - 'क्या यह कुत्ता सच कह रहा है?'
ब्राह्मण ने उत्तर में कहा - 'यह मेरे रास्ते में सो रहा था इसलिए मैंने इसे डण्डा मारा है। ये कुत्ते जहाँ-तहाँ लेट जाते हैं, इन्हें डण्डे से ही मारना चाहिए।'
प्रभु समझ गए कि गलती ब्राह्मण की है। ब्राह्मण को वे क्या कहें उन्हें समझ नहीं आ रहा था। इसलिए उन्होंने कुत्ते से ही पूछा - 'इस ब्राह्मण ने तुम्हें डण्डे से मारा, इसे तुम क्या सजा देना चाहोगे?'
कुत्ते ने उनसे प्रार्थना की - 'भगवन! इस ब्राह्मण को मठाधीश बना दीजिए।'
कुत्ते की बात सुनकर भगवान ने मुस्कराते हुए कुत्ते से पूछा - 'इस ब्राह्मण ने तुम्हें डण्डा मारा और बदले में तुम इसे मठाधीश बनाना चाहते हो। मठाधीश बनने पर इसके बहुत से चेले बन जाएँगे और इसकी सेवा करेंगे। इससे तुम्हेँ क्या लाभ होगा।'
इस पर कुत्ते ने कहा - 'महाराज, पिछले जन्म में मैं भी मठाधीश था। मुझ से ऐसे दुष्कर्म हो गया था। इसलिए आज मैं कुत्ते की योनि में हूँ और लोगों के डण्डे खा रहा हूँ। जब यह मठाधीश बनेगा और कुत्ते की योनि में जन्म लेगा तब इसे लोग डण्डे मरेंगे। तभी इसकी सजा पूरी होगी।'
इस कथा से हम यही शिक्षा ले सकते हैं कि मनुष्य को अपने कर्म करते समय बहुत ही सावधान रहना चाहिए। जैसे कर्म वह करता है, उसे उनका अच्छा या बुरा फल भोगना ही पड़ता है। उस समय बहुत कष्ट होता है और मनुष्य को यह समझ ही नहीं आता कि किस कर्म की उसे सजा मिल रही है। इसलिए अपने आगामी जीवनों को सुखमय बनाना चाहते हैं तो अभी से ही जाग जाना होगा। अन्यथा चौरासी लाख योनियों के फेर में फँसा मनुष्य हर जन्म में दुखों को ही भोगता रहेगा।
चन्द्र प्रभा सूद