जीवन भरपूर जीना
मानव का यह शरीर मनुष्य को एक ही बार मिलता है। इसलिए इस सुअवसर को यूँ ही नष्ट नहीं करना चाहिए। अपने जीवनकाल में इसे भरपूर जीना चाहिए और अपने सभी दायित्वों का पूर्णरूपेण से पालन करना चाहिए ताकि इस संसार से विदा लेते समय मन में यह मलाल न रहने पाए कि उसने यह जीवन बरबाद कर दिया है। काश हम जीवन को अपनी इच्छा से भरपूर भोग सकते, अपनी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण कर पाते।
निम्न श्लोक में कवि मनुष्य को चेतावनी देते हुए कहा रहा है कि धन-सम्पत्ति,राज्य आदि उसे बारबार मिल सकते हैं, परन्तु यह शरीर नहीं -
पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।
एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः।।
अर्थात् यद्यपि धन, सम्पति, मित्र, स्त्री, राज्य मनुष्य को बार-बार मिल सकते हैं। लेकिन मनुष्य का यह शरीर केवल एक ही बार प्राप्त होता है। एक बार नष्ट हो जाने के बाद इसे पुनः प्राप्त करना असम्भव होता है।
धन को मनुष्य अथक मेहनत करके कमाता है। दिन-रात एक करके वह कोल्हू का बैल बनने से भी नहीं हिचकिचाता। उसके लिए अपनी आयु के कई वर्ष व्यतीत करता है, तब कहीं जाकर पाई-पाई करके वह धन का संचय कर पाता है। दुर्भायवश यदि उस धन की हानि ही जाती है तो पुनः प्रयास करके धन को वह फिर कमा लेता है। मनुष्य बारबार धन को व्यय भी करता है और कमाता भी है। इसी प्रकार वह अपने लिए सम्पत्ति बनाता है। किसी कारणवश यदि वह सम्पत्ति उससे छिन जाती है अथवा किसी अनिवार्य परिस्थिति में उसे बेचनी पड़ जाती है तो फिर से मनुष्य परिश्रम करके अपनी सम्पत्ति बना लेता है।
जीवनकाल में अच्छे और सच्चे मित्रों का चुनाव मनुष्य करता है। यदि मित्र किसी दूर स्थान चला जाए या उसका साथ छूट जाए तो पुनः मित्र बनाया जा सकता है। इसी प्रकार स्त्री से यदि वियोग हो जाए अथवा उनमें परस्पर मत वैभिन्य के कारण अलगाव हो जाए तो दुनिया वहीं समाप्त नहीं हो जाती। मनुष्य पुनः विवाह करके अपनी गृहस्थी बस लेता है। इस तरह निस्संदेह उसे अपना नया जीवनसाथी मिल जाता है।
किसी राजा के शत्रु यदि उसके राज्य पर आक्रमण करके उसे राज्य से च्युत कर देते हैं तो वह हारा हुआ राजा अपनी सैन्य शक्ति का पुनः विस्तार करके या अन्य मित्र राजाओं की सहायता से अपने राज्य को पुनः प्राप्त कर सकता हैं। इस प्रकार वह राजा अपना हारा हुआ राज्य पुनः प्राप्त कर सकता है।
श्लोक के अन्त में कवि चेतावनी देते हुए कह रहा है कि मनुष्य का यह जन्म एक बार समाप्त हो जाए तो पुनः नहीं मिल सकता। यदि पुण्य कर्मों की अधिकता हो तो उसका अगला जन्म मनुष्य का हो सकता है परन्तु वह शरीर इस जन्म में मिला हुआ शरीर नहीं होगा। इसके अतिरिक्त यह भी कह सकते हैं कि एक जन्म में अपने कर्मों के अनुसार मिली हुई निश्चित अवधि के पश्चात मानुष उस जन्म को भूलकर अगली यात्रा के लिए चल पड़ता है। इसलिए मनीषी कहते हैं कि एक बार इस भौतिक शरीर के भस्म हो जाने पर वह किसी भी शर्त पर मनुष्य पुनः नहीं मिल सकता, उसके लिए चाहे वह कितने भी यत्न क्यों न कर ले।
अतः बड़ी कठिनाइयों अर्थात् चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात मिले हुए इस अनमोल मानव देह को व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। मनुष्य को शुभकर्म करके इस देह का सदुपयोग करना चाहिए। वास्तव में उसी मनुष्य का ही जीवन सफल होता है जो प्रत्येक दिन अपने सत्कर्मों की पूँजी में यत्नपूर्वक वृद्धि करता है।
चन्द्र प्रभा सूद