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स्त्री का चरणस्पर्श

1 अगस्त 2021

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स्त्री का चरणस्पर्श तपस्वी, साधकों अथवा धर्म गुरुओं को स्त्रियों से दूर रहने के लिए शास्त्र कहते हैं। उसी प्रकार स्त्री साधकों को भी पुरुषों से दूर रहने का आदेश शास्त्र देते हैं। स्त्रियों के लिए अपने पति के अतिरिक्त किसी भी अन्य पुरुष का चरण स्पर्श करना वर्जित माना गया है। इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी विधान है कि वे किसी महिला साधु का चरण स्पर्श न करे।         इसके पीछे जो तर्क मुझे समझ आता है, वह यह है कि समाज में किसी प्रकार का अनाचार और कदाचार न फैलने पाए। इस तरह यदि व्यभिचार फैलेगा तो सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी। इसका कारण है कि स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध आग और घी का माना जाता है। इसलिए उनका संयोग कष्टदायी होग। यही कारण है कि हमारे दूरदर्शी महान ऋषियों ने एक सुदृढ़ विवाह संस्था की परिकल्पना की। इससे सामाजिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है और समाज में किसी प्रकार के दुराचरण की कोई गुँजाइश ही न रहे।           इस विषय पर मैं बहुत प्रसिद्ध दो उदाहरण आपके समक्ष रखना चाहती हूँ। महर्षि विश्वामित्र उच्चकोटि के परम तपस्वी थे। देवलोक की अप्रतिम सुन्दरी अप्सरा मेनका के जाल में फंसकर पथभ्रष्ट हो गए। जब उन्हें होश आया, तब तक वे अपना तपोबल नष्ट कर चुके थे। बहुत वर्षों की कठोर तपस्या के पश्चात् उन्होंने पुनः अपना स्थान ऋषियों में बनाया।           दूसरे गुरु मछन्दरनाथ जी हैं जो अपनी तपस्या भूलकर गृहस्थी के चक्कर में पड़कर अपने गुरुपद से च्युत हो गए। यह उनका सौभाग्य था कि गुरु गोरखनाथ जी जैसा शिष्य उन्हें मिला था। गोरखनाथ जी उन्हें उस संसार से वापिस साधना के पथ पर वापिस लेकर गए।           इन दोनों उद्धरणों को लिखने का उद्देश्य यही है कि स्त्री और पुरुष दोनों दो ध्रुवों की भाँति हैं। विपरीत लिंगी होने का आकर्षण इन दोनों के मध्य रहता है। इसीलिए शास्त्र स्पष्ट निर्देश देते हैं कि पिता और पुत्री को अथवा भाई और बहन को भी एक कमरे में अकेले नहीं बैठना चाहिए। इस कथन का यह अर्थ कदापि नहीं है कि सभी पुरुष कुकर्मी या बलात्कारी होते हैं। इसका अर्थ यह लगाना चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों से बचाना चाहिए, जिसमे कोई भी पक्ष अपना संयम खो बैठे।         नकारात्मक विचार रखने वाले किसी महानुभाव ने 'नारी नरक का द्वार है' कहकर अपनी नाकामयाबी को प्रकट किया है। नारी यदि नरक का द्वार है तो पुरुष को क्या कहा जाए?         यह कहना कि सारा दोष स्त्री का है उचित नहीं है। यदि नारी अपने हावभाव से पुरुष को रिझाती रहती है, तो पुरुष भी कोई दूध का धुल हुआ नहीं है। वह भी स्त्री को अपने वश में करने के लिए तरह तरह के जाल बिछाता रहता है। कभी प्यार से और कभी बलपूर्वक उसे पाना चाहता है। उसे सब्जबाग दिखाता है। फिर अपना स्वार्थ निकल जाने पर दूध में पड़ी हुई मक्खी की तरह बाहर फैंक देता है।           मनीषी हमें समझाते हैं - 'मातृवत् परदारेषु' यानी दूसरे की या पराई स्त्री को माता के सामान मानो। यह कहकर शास्त्र ने पुरुषों के लिए मर्यादा की एक सीमारेखा खींची है। गुरु को पिता की श्रेणी में रखकर गुरु को शासित किया है। उसका दायित्व बनता है क़ि वह अपने पास आने वाले भक्तों या शिष्यों को अपनी सन्तान की तरह ही माने।           इस विवरण से हमें यही समझना चाहिए कि चाहे धर्मगुरु हो या साधु-सन्त, सबको अपनी-अपनी मर्यादा में ही रहना चाहिए। तभी समाज का सन्तुलन बना रहता है। स्त्रियों से भी अनुरोध है कि यदि वे किसी धार्मिक स्थान, किसी सभा या दर्शन किए हुए गुरु के पास कभी अकेले न जाएँ।  अपने मित्रों, पारिवारिक सदस्यों या अपने पति के साथ ही जाएँ। इस प्रकार तथाकथित ढोंगी साधुओं, तांत्रिकों, मांत्रिकों के चंगुल से बचा जा सकता है। चन्द्र प्रभा सूद

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विद्वानों में शत्रुता

1 जुलाई 2021
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विद्वानों में शत्रुताविद्वानों में परस्पर शत्रुता का भाव बहुत अधिक देखने को मिलता है। हर व्यक्ति स्वयं को दूसरों से कहीं अधिक बुद्धिमान समझता है। वह किसी दूसरे को सहन नहीं कर सकता। जो भी उससे आगे बढ़ता है अथवा उससे अधिक यश कमाता है, वह दूसरों की आँख की किरकिरी बन जाता है। हर कोई उसे पटकनी देने की फिर

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तर्क की कसौटी पर कसना

2 जुलाई 2021
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तर्क की कसौटी पर कसनाअपनी मान्यताओं में फँसा मनुष्य शेष सब भूल जाता है। उसे अच्छाई और बुराई का भान भी नहीं रहता। यद्यपि अपनी रूढ़ियों में जकड़ा मनुष्य अपने सुविचारों अथवा कुविचारों का उत्तरदायी स्वयं होता है। जो भी सुनो अथवा पढ़ो, उसे पहले अपनी तर्क की कसौटी पर कसना चाहिए। यदि वह विचार खरा उतरे और अपना

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विद्वानों में शत्रुता

3 जुलाई 2021
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विद्वानों में शत्रुताविद्वानों में परस्पर शत्रुता का भाव बहुत अधिक देखने को मिलता है। हर व्यक्ति स्वयं को दूसरों से कहीं अधिक बुद्धिमान समझता है। वह किसी दूसरे को सहन नहीं कर सकता। जो भी उससे आगे बढ़ता है अथवा उससे अधिक यश कमाता है, वह दूसरों की आँख की किरकिरी बन जाता है। हर कोई उसे पटकनी देने की फिर

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समस्या कन्या शिक्षा की

4 जुलाई 2021
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समस्या कन्या शिक्षा कीशिक्षा की समस्या आज हमारे भारत में बहुत ही विकट रूप धारण किए हुए है। यहाँ अशिक्षा का प्रतिशत बहुत अधिक है। फिर उस पर लड़कियों की शिक्षा? बड़े शहरों में भी इस समस्या से हम इन्कार नहीं कर सकते तो फिर छोटे शहरों, गाँवों व कस्बों में इसकी स्थिति और भी चौंकाने वाली है। गरीबी रेखा के न

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मन्दबुद्धि व्यक्ति

5 जुलाई 2021
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मन्दबुद्धि व्यक्तिमनुष्य का बुद्धिहीन अथवा मन्दबुद्धि होना अलग बात है और मूर्ख होना अलग विषय है। बुद्धिहीन मनुष्य तो दुर्भाग्यशाली होता है, तभी मानव का तन पाकर भी वह अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं कर पाता। परन्तु मूर्ख वह कहलाता है जो अपनी बुद्धि होते हुए भी उसका प्रय

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आधुनिकीकरण से सुविधाएँ0

6 जुलाई 2021
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आधुनिकीकरण से सुविधाएँकुछ दशक पूर्व हमारे देश में सभी गृहणियाँ बैठकर खाना पकाया करती थीं। जमीन पर चूल्हा बनाया जाता था, उसमें लकड़ी जलाकर भोजन बनाने की प्रथा थी। फिर अँगीठी का प्रयोग होने लगा जिसे कोयले और लकड़ी से सुलगाया जाता था। अभी भी गाँवों आदि में यह चूल्हा प्रचलन में है। प्रात: का खाना पकाने के

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सहृदयता का व्यवहार

7 जुलाई 2021
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सहृदयता का व्यवहारकिसी जीव के साथ दुर्व्यवहार करने की आज्ञा ईश्वर किसी भी मनुष्य को नहीं देता। वह चाहता है कि हर मनुष्य अन्य सभी के साथ सहृदयता का व्यवहार करे। उसे इतनी समझ होनी चाहिए कि यह सृष्टि किसी जीव विशेष के लिए नहीं बनाई गई है बल्कि हर जीव को उसने यहाँ पर बराबर का अधिकार दिया है। इसलिए अपने

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ईश्वरीय बैंक

8 जुलाई 2021
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ईश्वरीय बैंकमनुष्य जो भी सत्कर्म अथवा दुष्कर्म करता है, वे सभी उसके बैंक खाते में जमा हो जाते हैं। यह ईश्वर द्वारा खोला गया बैंक है। हम सभी बैंकिंग प्रक्रिया से भली भाँति परिचित हैं। हमने अपने अकाउण्ट कई बैंकों में खोले हुए हैं। जितना धन हम जमा करवाते हैं वह हमें ब्याज जोड़कर यानी अधिक होकर मिलता है।

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इन्सानी खोपड़ी

9 जुलाई 2021
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इन्सानी खोपड़ीइन्सानी खोपड़ी को प्रायः शैतानी खोपड़ी कहा जाता है क्योंकि यह सदा खुराफातें करती रहती है। जब मनुष्य देश, धर्म, परिवार या समाज के नियमों के विपरीत कार्य करता है तब उसे उल्टी खोपड़ी वाला कहा जाता है। जब तक यह मनुष्य जीवित रहता है उसकी खोपड़ी उल्टी-सीधी चालें चलकर अपना मनोरथ सिद्ध करती रहती ह

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कुछ पाने के लिए मूल्य चुकाना

10 जुलाई 2021
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कुछ पाने के लिए मूल्य चुकानाबारम्बार दुखों और कष्टों के आने पर भी जो मनुष्य गिरगिट की तरह अपना रंग नहीं बदलता अर्थात् अपने अपने जीवन मूल्यों का त्याग नहीं करता, ऐसे ही खरे सोने जैसे मनुष्य का समाज में मूल्य बढ़ता है। लोग उसे महत्त्व देते हैं, उसका सम्मान भी करते हैं। ऐसे उस महात्मा मनुष्य के सद् गुण

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मानव मस्तिष्क

11 जुलाई 2021
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मानव मस्तिष्कमानव मस्तिष्क का कोई सानी नहीं है। इस छोटे से अवयव में न जाने क्या क्या रहस्य छिपे रहते हैं, ईश्वर के सिवा किसी ओर को इसका ज्ञान नहीं रहता। इसी के बल पर वैज्ञानिकों ने विश्व में अनेक चमत्कार किए हैं। उन्होंने मनुष्य की आवश्यकता के लिए सभी प्रकार के सुख-सुविधा के साधन तैयार किए है। उनके

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सफलता की कामना

12 जुलाई 2021
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सफलता की कामनाअपने जीवन में सफलता की कामना करने वालों को हर कदम फूँक-फूँककर रखना चाहिए। स्वयं की सफलता के लिए प्रयत्न करने से पूर्व यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि जो भी व्यक्ति आगे बढ़ने के लिए कदम उठा रहा है, उसकी टाँग पीछे खींचने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण है कि जो दूसरों की उन्नति

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पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कार

13 जुलाई 2021
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पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कारसंस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित किए जाते रहते हैं। उनसे ही मनुष्य के कुल या परिवार की एक पहचान बनती है। मनुष्य अपने संस्कारों की बदौलत अस्तित्व में आता है। उसके संस्कार ही इस समाज में उसे महान बनाते हैं और एक सुनिश्चित स्थान भी देते हैं। संस्कारों से बढ़कर अन्य कोई और दौलत मनुष्य

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लोकप्रिय होने के लिए

14 जुलाई 2021
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लोकप्रिय होने के लिएजीवनकाल में लोकप्रिय होने वाले व्यक्ति को सदा विनम्र होना चाहिए। उसे अपने ज्ञान, धन-वैभव, सौन्दर्य, यौवन, शक्ति, कुल आदि का घमण्ड नहीं करना चाहिए। अपने लिए अभिमानसूचक शब्दों का प्रयोग करने से भी बचना चाहिए। इसी कड़ी में स्वयं के लिए यथासम्भव ‘हम’ शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस

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जीते जी की माया

15 जुलाई 2021
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जीते जी की माया'सब जीते जी की माया है' या 'मुँह देखे की माया है' ऐसी उक्तियाँ हमें प्रायः सुनने को मिल जाती हैं। इनके पीछे छिपा सार बहुत ही गम्भीर और मन को कष्ट देने वाला होता है। अपनों से जाने-अनजाने दूरी बन जाती है परन्तु सामने पड़ जाने पर ऐसे प्रदर्शित किया जाता है कि उस व्यक्ति विशेष से बढ़कर इस द

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जीते जी की माया

15 जुलाई 2021
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जीते जी की माया'सब जीते जी की माया है' या 'मुँह देखे की माया है' ऐसी उक्तियाँ हमें प्रायः सुनने को मिल जाती हैं। इनके पीछे छिपा सार बहुत ही गम्भीर और मन को कष्ट देने वाला होता है। अपनों से जाने-अनजाने दूरी बन जाती है परन्तु सामने पड़ जाने पर ऐसे प्रदर्शित किया जाता है कि उस व्यक्ति विशेष से बढ़कर इस द

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हावी होते स्वार्थ

16 जुलाई 2021
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हावी होते स्वार्थबहुत दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक समय में अन्य जीवन मूल्यों की भाँति ही लोगों के हृदय में मित्रता के प्रति भी सन्देह का भाव कुछ अधिक बढ़ने लगा है। उनके विचार में हर मित्रता के पीछे कोई-न-कोई स्वार्थ छिपा होता हैं। उनका मानना यही है कि ऐसी कोई भी मित्रता इस संसार में नहीं हो सकती जि

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धन का सदुपयोग

17 जुलाई 2021
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धन का सदुपयोगअपने परिश्रम या खून-पसीने से कमाए गए धन का सदुपयोग करना प्रत्येक मनुष्य को सीखना चाहिए। यानी घर-परिवार, देश, धर्म और समाज के लिए अपने धन को व्यय करना चाहिए। धन को मनुष्य का सहायक या रक्षक बनना चाहिए न कि उसे अपने पैर की बेड़ी बनने देना चाहिए। यदि कोई मनुष्य धन के आगमन पर नकचढ़ा बन जाएगा य

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सफलता महत्त्वपूर्ण

18 जुलाई 2021
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सफलता महत्त्वपूर्णइन्सान को हर परिस्थिति में सदैव प्रसन्न रहने का प्रयास करना चाहिए। सफलता मिले अथवा असफलता, हर परिस्थिति से शिक्षा लेकर या सबक लेकर उसे आगे बढ़ने का अभ्यास करना चाहिए। यहाँ मैं यही कहना चाहती हूँ कि अपनी सफलता की प्राप्ति पर उसे खुश अवश्य होना चाहिए और अपनी ख़ुशी अपने बन्धु-बान्धवों क

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स्वर्गिक सुख

19 जुलाई 2021
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स्वर्गिक सुखजन्म और मरण के बन्धनों से मुक्त होकर प्रत्येक मनुष्य तथाकथित स्वर्गिक सुखों का भोग करना चाहता है। इसलिए मोक्ष या मुक्ति किस प्रकार सम्भव हो सकती है, इस विषय को लेकर उसके मन में सदा ही जिज्ञासा बनी रहती है। इस विषय पर वह समय-समय पर चर्चाएँ करता रहता है और स्वर्ग के सुखों की कल्पना में खोय

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शुभाशुभ कर्मों का भुगतान

20 जुलाई 2021
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शुभाशुभ कर्मों का भुगतानअपने हिस्से के दुःख और कष्ट मनुष्य को स्वयं अकेले ही झेलने पड़ते हैं। आप कह सकते हैं कि हमारा भरा-पूरा परिवार है, हम सदा अपने बन्धु-बान्धवों से घिरे रहते हैं। सभी हमारी परवाह भी करते हैं। फिर यह कथन तो उपयुक्त प्रतीत नहीं हो रहा है। मेरा यह कथन अपने-आपमें एक बहुत गहरा अर्थ समे

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असफलताओं से निराश नहीं

21 जुलाई 2021
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असफलताओं से निराश नहीं प्रत्येक मनुष्य जन्म से महान या गुणवान नहीं होता। उसके लिए उन्हें निरन्तर अभ्यास करना पड़ता है। कई प्रकार की परीक्षाओं में भी उन्हें उत्तीर्ण होना होता है। तभी वे योग्य बन करके समाज में अपना एक  महत्त्वपूर्ण स्थान बना पाते हैं। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें हम गॉड गिफ्टेड कहत

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मूर्खों की मूर्खता

22 जुलाई 2021
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  मूर्खों की मूर्खतामनीषी मनुष्य को उसके आचार और व्यवहार से परखते हैं कि वह कितने पानी में है अर्थात् वह बुद्धिमान है अथवा मूर्ख है। विद्वत्ता विद्वानों का निकष होती है और दूसरी ओर मूर्खों की मूर्खता उन्हें सबसे अलग कर देती है। उनके हाव-भाव, उनकी छिछली बातें उनकी मूर्खता का प्रत्यक्ष प्रमाण बनती हैं

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सरल हृदय की इच्छा अवश्य पूर्ण

23 जुलाई 2021
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सरल हृदय की इच्छा अवश्य पूर्णसरल हृदय लोगों के सभी इच्छित कार्य देर-सवेर अवश्य पूर्ण होते हैं। इसमें कोई सन्देह है नहीं कि उनकी सरलता ही उनकी महानता का परिचायक होती है। उनकी सच्चाई और ईमानदारी उनका मान होती है। निश्छल हृदय ये लोग सभी को अपना समझते हैं। अपने-पराए के फेर में नहीं पड़ते यानी ये किसी भी

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अन्धेरे से डर

24 जुलाई 2021
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अन्धेरे से डरअन्धकार से बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी डर लगता है। कहने और सुनने में भले ही हमें विचित्र लगे परन्तु यह सच्चाई भी है और वास्तविकता भी। बचपन से ही मनुष्य अन्धेरे से डरने लगता है। बच्चे को यदि अन्धेरे में जाने के लिए कहा जाए तो वह साफ इन्कार कर देता है। यदि गलती से कहीं अन्धेरे का उसे साम

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पेट में कोई बात नहीं पचती

25 जुलाई 2021
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पेट में कोई बात नहीं पचतीअपने आसपास बहुधा लोगों को यह कहते सुना जाता है कि तुम्हारे पेट में कोई बात पचती भी है क्या? इसके उत्तर में उनका कथन होता है कि क्या करें हम बात को पचा ही नहीं सकते। यदि सुनी हुई बात किसी को न बताएँ तो पेट में दर्द होने लगता है अथवा पेट में अफ़ारा हो जाता है। जब तक सुनी हुई बा

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पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर

26 जुलाई 2021
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पानी में रहकर मगरमच्छ से बैरकहते हैं पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करना चाहिए। इस उक्ति को सरल भाषा में हम कह सकते हैं कि जिस स्थान पर मनुष्य रहता है अथवा जहाँ वह कार्य करता है, वहाँ के बॉस से या समर्थ कहे जाने वाले व्यक्तियों से शत्रुता मोल नहीं लेनी चाहिए। उनका विरोध करने का अर्थ होता है अपनी

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तथाकथित धर्मगुरुओं से किनारा

27 जुलाई 2021
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तथाकथित धर्मगुरुओं से किनाराबहुत आश्चर्य होता है यह देखकर कि लोग इतने अधिक असभ्य और असहिष्णु कैसे हो सकते हैं? जिनकी कोई गलती नहीं है, ऐसे निर्दोष लोगों को हानि कैसे पहुँचा सकते हैं? उनका मन प्रायश्चित करने के स्थान पर हिंसा के लिए कैसे उतारू हो जाता है? उनका हृदय आगजनी करने और तोड़फोड़ करने की गवाही

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मनुष्य बनो

28 जुलाई 2021
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मनुष्य बनोवेद हम मनुष्यों को निर्देश देते हैं - ‘मनुर्भव’ अर्थात मनुष्य बनो। आप कह सकते हैं कि हम अच्छे भले मनुष्य हैं, इन्सान हैं। हमारे पास दो आँखें, दो कान, दो हाथ, दो पैर, सुन्दर-सा चेहरा हैं और फिर यह इन्सानी शरीर भी है। हम किसी भी तरह से पशुओं की भाँति नहीं दिखाई देते हैं, हम उनसे सर्वथा अलग ह

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हिंसा मान्य नहीं

29 जुलाई 2021
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हिंसा मान्य नहींहिंसा किसी भी प्रकार की हो, सभ्य समाज में कदापि, किसी भी शर्त पर मान्य नहीं हो सकती, फिर वह चाहे किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्धित हो अथवा राजनीति से ही प्रेरित क्यों न हो। अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति के लिए जन साधारण अथवा अपने देश के बहुमूल्य जान और माल को हानि पहुँचाना किसी भी त

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पारिवारिक विघटन

30 जुलाई 2021
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परिवारिक विघटनपरिवारों का विघटन या टूटकर बिखरना बहुत ही दुखदाई है। भारतीय संस्कृति में परिवार एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण इकाई हे। कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि इसमें कभी ऐसी स्थिति बन सकती है। इसका कारण चाहे कोई भी हो सकता है, पर इसका परिणाम  वास्तव में चिन्तनीय है। परिवार के हर सदस्य को चाहे-अनच

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 पर्दे की समृद्धि छलावा

31 जुलाई 2021
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 पर्दे की समृद्धि छलावाटी वी सीरियल्स, सिनेमा आदि में दिखाई जाने वाली चकाचौंध, अमीरी, पात्रों का रौबदाब, रुतबा आदि देखकर आज युवा दिग्भ्रमित हो रहे हैं। वे सपने लेते रहते हैं कि वे भी इसी तरह का साम्राज्य अपने लिए जुटा लेंगे। इसलिए वे जिन्दगी की सच्चाइयों से दूर अपने लिए, अपने चारों ओर एक छद्म संसार

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स्त्री का चरणस्पर्श

1 अगस्त 2021
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स्त्री का चरणस्पर्शतपस्वी, साधकों अथवा धर्म गुरुओं को स्त्रियों से दूर रहने के लिए शास्त्र कहते हैं। उसी प्रकार स्त्री साधकों को भी पुरुषों से दूर रहने का आदेश शास्त्र देते हैं। स्त्रियों के लिए अपने पति के अतिरिक्त किसी भी अन्य पुरुष का चरण स्पर्श करना वर्जित माना गया है। इसी प्रकार पुरुषों के लिए

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स्त्री का चरणस्पर्श

1 अगस्त 2021
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स्त्री का चरणस्पर्शतपस्वी, साधकों अथवा धर्म गुरुओं को स्त्रियों से दूर रहने के लिए शास्त्र कहते हैं। उसी प्रकार स्त्री साधकों को भी पुरुषों से दूर रहने का आदेश शास्त्र देते हैं। स्त्रियों के लिए अपने पति के अतिरिक्त किसी भी अन्य पुरुष का चरण स्पर्श करना वर्जित माना गया है। इसी प्रकार पुरुषों के लिए

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अच्छाई और बुराई की जंग

2 अगस्त 2021
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अच्छाई और बुराई की जंगअपने इर्दगिर्द चारों ओर बुराई को फलते-फूलते देखकर और अच्छाई को हैरान-परेशान देखते हुए लोग बहुत घबरा जाते हैं। ऐसा लगने लगता है कि जब बुराई का ही बोलबाला होना है तो फिर अच्छा बनाने का कोई लाभ नहीं, बुरा बनाना ही ज्यादा अच्छा है। परन्तु यह सोच सर्वथा गलत है। मनुष्य को बुराई से लड़

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मानवयोनि कर्मयोनि

3 अगस्त 2021
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मानवयोनि कर्मयोनिमनुष्य ईश्वर द्वारा बनाई गई इस सृष्टि की एक अप्रतिम रचना है। एक वही जीव है जो कमाता है और शेष सभी जीवों का पालन करता है। उसे संसार में अपने इस महत्त्वपूर्ण अवतरण पर गर्व होना चाहिए। साथ ही उसे ईश्वर का धन्यवाद भी करना चाहिए कि उसने मनुष्य को इस योग्य बनाया है कि वह अन्य सभी जीवों के

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सपनों को साकार करना

4 अगस्त 2021
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सपनों को साकार करनामनुष्य के अधिकार क्षेत्र में है कि वह अपने भावी जीवन के लिए सपने देख सके। फिर अपने देखे हुए उन सभी सपनों को साकार करने के लिए वह दिन-रात एक कर देता है। अथक परिश्रम करता हुआ स्वयं को वह सफल लोगों को कतार में सम्मिलित करना चाहता है। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि वह अपने जीवनकाल

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कर्म से भाग्य बदलता

5 अगस्त 2021
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कर्म से भाग्य बदलतामनीषी मनुष्य को सदा ही कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। वे यह समझाते हैं कि केवल भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर निठ्ठले बैठने वाले मनुष्य का भाग्य उससे रूठ जाता है। उस समय मनुष्य जो भी कामना करता है, वह पूर्ण नहीं हो पाती। उस व्यक्ति को उसके अपने प्रियजनों से भी अपमान सहना पड़ता है क

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शुभकर्मों की ओर ध्यान

6 अगस्त 2021
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शुभकर्मों की ओर ध्यानमनुष्य बच्चे के रूप में इस संसार में जन्म लेता है, धीरे-धीरे बड़ा होता है, युवा होता है, फिर अशक्त होता हुआ वृद्ध हो जाता है। इसी क्रम में एक दिन उसे यह दुनिया छोड़कर परलोक सिधार जाना पड़ता है। प्रतिदिन उसकी आयु घटती जाती है। इससे बेखबर वह अपने तानेबाने बुनता रहता है। अपने भावी जीव

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हिन्दी का दुर्भाग्य

7 अगस्त 2021
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हिन्दी का दुर्भाग्यहिन्दी भाषा का दुर्भाग्य है कि उसके नाम पर केवल राजनीतिक रोटियाँ ही सेकी जाती है। हिन्दी के नाम पर बस एक-दूसरे पर छींटाकशी चलती रहती है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि तथाकथित हिन्दी प्रेमी केवल भाषणों का आदान-प्रदान करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। उससे ही उनका हि

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छिद्रान्वेषण नहीं

8 अगस्त 2021
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  छिद्रान्वेषण नहींदूसरों की कमियाँ खोजने में हम सभी लोग बहुत निपुण होते हैं। बुरे लोग तो अनायास ही हमे दिखाई दे जाती हैं। दूसरों पर टीका-टिप्पणी करना या आलोचना करने का अधिकार हम स्वतः ही ले लेते हैं। ऐसा करते समय रस ले लेकर दूसरे को अपमानित करने कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। जो श्रोता सामने बैठता

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स्वर्ग और नरक की परिकल्पना

9 अगस्त 2021
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स्वर्ग और नरक की परिकल्पनास्वर्ग और नरक दोनों ही मनुष्य इसी संसार मे अपने कर्मों के फलस्वरूप भोगता है। शुभकर्मों की अधिकता होने पर उसे सुख-समृद्धि, अच्छा स्वस्थ, आज्ञाकारी सन्तान, मान देने वाले बन्धु-बान्धव, परवाह करने वाले परिवारी जन मिलते हैं। इनके सानिध्य में मनुष्य स्वर्ग के समान सुख भोगता है। ऐ

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चिन्ताओं का मकड़जाल

10 अगस्त 2021
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चिन्ताओं का मकड़जाल मनीषी समझाते हैं चिन्ता मत करो। सांसारिक मनुष्यों के लिए यह कदापि सम्भव नहीं हो पाता। जीते जी मनुष्य को घर-परिवार, बच्चों की शिक्षा, उन्हें सेटल करना, उनके शादी-ब्याह, स्वास्थ्य, धन, लेनदेन, नौकरी-व्यापार आदि कई प्रकार की चिन्ताएँ हैं, जो उसे सताती रहती हैं। चिन्ताओं का मकड़जाल उसे

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जल्दबाजी अच्छी नहीं

11 अगस्त 2021
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जल्दबाजी अच्छी नहींप्रत्येक कार्य को योग्यतापूर्वक करना चाहिए। उसके सभी पक्षों पर मनन करके ही उसे सम्पन्न करना चाहिए। आवश्यक नहीं है कि हड़बड़ाहट में अपने कार्य को बिगाड़ दिया जाए। हर कार्य को करने का एक उचित समय होता है। एक उदाहरण लेते हैं। बच्चा नौ मास माता के गर्भ में रहकर इस संसार मे जन्म लेता है।

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जीवन भरपूर जीना

12 अगस्त 2021
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जीवन भरपूर जीनामानव का यह शरीर मनुष्य को एक ही बार मिलता है। इसलिए इस सुअवसर को यूँ ही नष्ट नहीं करना चाहिए। अपने जीवनकाल में इसे भरपूर जीना चाहिए और अपने सभी दायित्वों का पूर्णरूपेण से पालन करना चाहिए ताकि इस संसार से विदा लेते समय मन में यह मलाल न रहने पाए कि उसने यह जीवन बरबाद कर दिया है। काश हम

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सन्त समाज का दायित्व

13 अगस्त 2021
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सन्त समाज का दायित्वसाधु-सन्तों का देश, धर्म और समाज के प्रति महान दायित्व होता है। जब देश, धर्म और समाज पर कष्ट का समय आता है अथवा बाहरी शक्तियाँ उसकी अस्मिता को चुनौती देती  हैं तब साधु समाज हाथ पर हाथ रखकर कदापि नहीं बैठ सकता। वह उस परीक्षा की घड़ी में आपसी मनमुटाव का त्याग करके देश, धर्म और समाज

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बच्चों के साथ दुर्व्यवहार

14 अगस्त 2021
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बच्चों के साथ दुर्व्यवहारस्कूल में बच्चों  के साथ किसी-न-किसी तरह की दुर्व्यवहार की घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा बदलता हुआ पारिवारिक ढाँचा। आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चे अनावश्यक लाड-प्यार पाकर असहिष्णु बनते जा रहे हैं। प्रायः घरों में एक या दो बच्चे होते हैं। संयुक्त प

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स्कूल बस कितनी सुरक्षित

15 अगस्त 2021
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हमारे देश मे सड़क दुर्घटनाएँ बहुत होती हैं। इन दुर्घटनाओं में अनेक लोगों की मौत हो जाती है, वे तो चले जाते हैं पर पीछे वालों को सदा के लिए दुख दे जाते हैं। कुछ लोग अपाहिज भी ही जाते हैं और फिर जीवनभर कष्ट भोगते हैं। अपने लाडलों को स्कूल बस में या वैन में स्कूल खुशी-खुशी भेजने वाले माता-पिता निश्चिन्त

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तान्त्रिकों-मान्त्रिकों से सावधान

16 अगस्त 2021
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तान्त्रिकों अथवा मान्त्रिकों के फेर में मनुष्य न ही पड़े तो अच्छा है। उनके चक्कर में पड़कर मनुष्य बरबाद हो जाता है। ये लोग अनावश्यक रूप से लोगों को बरगलाते हैं। उन्हें मन्त्रमुग्ध करके उनके सोचने की शक्ति को प्रभावित कर देते हैं। उस समय मनुष्य उनके कथनानुसार कार्य करने के लिए विवश हो जाता है। केवल गाँ

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खतरनाक खेल

17 अगस्त 2021
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कुछ दिन पूर्व जी टी वी पर ब्लू व्हेल खेल के विषय में चर्चा हो रही थी जिसे मैंने सुना। इस चर्चा में वह बच्चा भी शामिल था, उसका नाम ध्यान नहीं, जिसने इस खेल को तीन-चार लेवल तक खेल था। बाद में उसे यह ध्यान आया कि वह अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान है। उसके चले जाने के बाद उनका क्या होगा? यह बच्चा तो सम

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जीवनदायिनी शक्ति

18 अगस्त 2021
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आत्मिक शान्ति मनुष्य की जीवनदायिनी शक्ति कहलाती है। जो मनुष्य इस शक्ति को प्राप्त कर लेता है, वह प्रसन्न रहता है व उत्साहित रहता है। यदि मनुष्य का मन प्रसन्न रहेगा तो उसके अन्तस में उत्साह बना रहता है। उस समय वह किसी भी शर्त पर खाली नहीं बैठ सकता। उसके पैर नहीं टिकते और वह कहता हैं मेरा काम करने का

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किसी से शिकायत नहीं

19 अगस्त 2021
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जीवन में जितने कदम भी कोई अपने साथ चले उतना ही उसका आभार मानना चाहिए। अतः किसी से शिकवा-शिकायत नहीं करनी चाहिए। इससे मनुष्य को स्वयं को ही कष्ट होता है। यदि मनुष्य यह सोच ले कि वह भी तो किसी एक का हाथ सारी आयु नहीं थामता बल्कि एक को छोड़कर दूसरों का हाथ थाम लेता है। तब उसके मन में किसी के प्रति विद्व

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