कर्नल टाड-ऐतिहासिक टाडगढ़
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अरावली का ताज,वीरता-स्वभिमान व स्वतंत्रता का परिचायक,तंग सर्पिलाकार सड़के,प्राकृतिक सोंदर्य व वन्य जीवन से आच्छादित रावली अभ्यारण्य।सामाजिक एकता ऐसी कि मंदिर -मस्जिद-चर्च की अलौकिक ध्वनियाँ में सभी को एकता का संदेश देती है।समुद्रतल से 3282 फीट की ऊँचाई पर बसा एक छोटा सा कस्बा टाडगढ।
अजमेर जिले के पश्चिमी कोने में स्थित ,सरकारी कर्मचारी इसे कालापानी कहते है।
रावत समुदाय बहुल क्षेत्र का यह कस्बा पूर्व में बरसावाड़ा के नाम से जाना जाता था।बरसा नामक गुर्जर ने अपने मवेशियों को यहाँ के चारागाह में चराने के उद्देश्य 1520 ई. में इस गाँव की नींव रखी।बरसावाड़ा कब टाडगढ हुआ ,सामान्यतया इतिहास की पुस्तकों में कस्बे के टाडगढ नामकरण पर कोई लिखित तथ्य उपलब्ध नही है। ब्रिटिश शासन के कर्नल जेम्स टाड 1819 ई. को यहाँ आऐ,उनके आगमगन के बाद इसे टाडगढ कहा जाने लगा।इन्होनें यहाँ एक भव्य बंगला बनवाया ।स्थानिय लोग डाकबंगले के रुप में जानते है।यही डाकबंगला वर्तमान में जैन समुदाय द्वारा भव्य रूप में विकसित कर प्रज्ञा शिखर साहित्य संस्थान के नाम से जाना जाता है।तत्कालिन भारत के राष्ट्पति ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा इसका लोकार्पण किया गया।
1883 ई. में ईसाई पादरी विलियम राब ने यहाँ गिरजाघर बनवाया।ब्रिटिशकाल में यहाँ 1863 ई. यहाँ डाक व तार घर बना तथा ब्यावर ब्रिटिश सेना मुख्यालय की तहसील बनी ,यह अब सी. सेकन्डरी स्कूल है।इसी विकास क्रम में 1924 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुऐ 124 क्षेत्रीय रावत राजपूत जवानों की याद में भारत का पहला Victory Memorial Dharamshala(Erected 1924) यादगार फतह जंग अजीम बनी।यहाँ लगे एक शिलालेख में अंकित है कि-From This Tehsil 2597 men went to the great war 1914-1919 of this 124 gave up their lives.
शहीदों की सूची इंडिया गेट दिल्ली पर खुदित है।
1929 ई. में मेहन्सागर टाडगढ में महादेव का भव्य मंदिर बनवाया गया था।
जेम्स टाड
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जेम्स टाड का जन्म इंग्लेण्ड के इस्लिंगटन नगर में 20 मार्च 1782 ई. को एक उच्च कुल में हुआ था।1788 ई. में वह ईस्ट इंडिया कम्पनी में सिपाही के पद से सैनिक के रूप में कुलविच नगर के राजकिय सैनिक treining सेन्टर से प्रविष्ठ हुऐ।1799 ई. में बंगाल (भारत) आऐ।कुछ समय बाद 1813 ई. कप्तान पद पर तैनात हुऐ।भारत में 24 वर्षों के लम्बे प्रवास में भारत के हर क्षेत्र में रहे।
भारत के प्राचीन व गौरवमयी इतिहास का समावेश आदि के साथ यहाँ की संस्कृति ,परम्परा,कला आदि में रूचि रखकर गहराई से अध्ययन करने वाले विदेशी विद्धानों में कर्नल जेम्स टाड का महत्वपूर्ण स्थान है।उनकी शोधक बुद्धी बहुत तीव्र थी।उन्होनें करीब 11 बड़े ग्रंथ लिखे।टाडगढ में रहकर शोध पत्रों को व्यवस्थित किया।कुछ शारीरिक अस्वस्थता ,कुछ देशी राजाओं(उदयपुर राज्य के पोलिटिकल ऐजेंट) से स्नेह रखने से, अंग्रेज सरकार द्वारा उनपर शक किये जाने से रूष्ट हो नौकरी छोड़ दी।राजपूताने की भारी शोध सामग्री लेकर उन्होनें स्वदेश के लिऐ 1 जून 1822 ई. को उदयपुर से प्रस्थान किया।पश्चिमी भारत की यात्रा नामक ग्रंथ को प्रकाशित कराने के लिऐ 14 नवम्बर 1835 ई. को लन्दन गए और वहीं मिर्गी का दौरा पड़ने से 72 घण्टे मूर्छित रहने के बाद 17 नव. को 53 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
लेखक-गोविन्द सिंह "सुरेन्द्र