मेरा गाँव
मेरा गाँव है यह!देखता रहा हूँ मैं ,कि यहा्ंघटाएं आती है-उमड़ती,घुमड़ती,बरसती हैपर्वत,वन प्रान्तरचिड़ियों की चहचाहट से,मोरों की 'टिहूक' औरकोयलों की 'कूहू' सेगुँजरित रहते है।फूल हँसते ,भौंरे गाते भ्रूँ भ्रूँ !और देखता हूँ जहाँ मैंपीपल,नीम की छाह तलेभारत की नंगधड़ंग ,भावीहोनहार पीढ़ी कोखेलते,गुनगुनाते!यों ब