होटल (कहानी)
------------------
बात कालेज के दिनों की है।पढ़ना,घुमना,खाना पीना और मौज करना। दोस्त के घर पढ़ने की कह कर दोस्तों के साथ पार्टी सार्टी करना।
एक दिन किसी बात पर पापा ने दो थप्पड़ मेरे गाल पर मार दिये।
मैनें सोचा,-' यह तो कोई बात नही हुई।अब में घर में नही रहूँगा।खुद कमाऊँगा और पढ़ुंगा ,खर्च करूंगा।'और फिर घर से भाग कर शहर के बाहर एक होटल में चला गया।काम मांगा तो वेटर की नौकरी मिली ।तनख्वाह 2000₹ प्रतिमाह ,काम 12 घण्टे प्रतिदिन,छुट्टी रखी तो पैसे कटेंगे।
दिन भर काम करके शाम को जब रेस्ट करने बैसमेन्ट की ओर बढ़ा तो सामने हमारी ही कालेज का सबसे ब्रिलियन्ट स्टूडेंट ,छात्र संघ का अध्यक्ष वेटर की पोशाक में सामने नजर आया।हम दोनों को काटो तो खुन नही।शर्म और डर ऐसा कि मुँह से एक शब्द नही निकल रहा।
कुछ देर आमने सामने रहे फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और नीचे ले गया।पहला सवाल-"आप इतने अच्छे घर के ,खाता पीता परिवार,होटल में नौकरी करने क्यूँ आये??
मैनें पापा के द्वारा दो थप्पड़ मारने की बात उसे बताई।एक लम्बी सांस लेकर दुःख भरे लहजे में बोला,'काश!मेरे पापा होते ,दो की जगह दस मारते।मै उफ तक नही करता।मेरी विधवा माँ,एक छोटा भाई और दो छोटी बहनों की जिम्मेदारी मुझ पर है।दिन भर पढ़ाई ,दोस्तों के साथ मस्ती करता हूँ परन्तु पिछले तीन साल से इस होटल में रात को रूम सर्विस और वेटर की नौकरी करता हूँ।
यह सब जानकर बहुत आत्मग्लानी हुई।दुसरे सुबह "होटल" से वापस घर आया एक नये सबक के साथ।फिर कभी पापा से शिकायत नही की।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
गोविन्द