गोहत्या, मांसाहार और तर्क
डॉ. वेदप्रताप वैदिक(साभार)
गोहत्या के लिए अपने कई प्रांतों में कड़ी सजा का प्रावधान है लेकिन गुजरात विधानसभा ने उम्र-कैद का कानून बनाकर अन्य राज्यों के लिए भी रास्ता खोल दिया है। गुजरात के साथ-साथ उत्तरप्रदेश में बूचड़खानों को लेकर जो बवाल मचा है, उसे देखकर यह माना जा रहा है कि भाजपा के मुख्यमंत्री लोग अपनेवाली पर उतर आए हैं। वे हिंदुस्तान पर अपना हिंदुत्व का एजेंडा थोपने लगे हैं। यदि आप इन खबरों के शीर्षक पढ़ें और टीवी चैनलों को चलते-चलते सुनें तो आपका भी यह विचार बन जाएगा कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के मुसलमानों को तबाह करने पर उतारु हो गए हैं। लेकिन मैं समझता हूं कि ऐसा नहीं है। उप्र में बूचड़खानों पर सिर्फ यह सख्ती की गई थी कि जिन पर लायसेंस नहीं हैं, उन्हें चेतावनी दी गई थी। बिना लायसेंस के चलनेवाले बूचड़खाने और दुकानें अक्सर भयंकर गंदगी, बदबू और कीटाणुओं के अड्डे बन जाते हैं, चाहे उनके मालिक हिंदू हों या मुसलमान! हिंदुस्तान में जितने मुसलमान मांसाहारी हैं, उससे दुगुने-तिगुने हिंदू, सिख और ईसाई मांसाहारी हैं। देश की सभी प्रांतीय सरकारें यदि इसी सख्ती से पेश आएं तो सबसे स्वच्छ आहार मिल सकेगा।
गुजरात में गोरक्षा का कड़ा कानून सराहनीय है, क्योंकि गाय को देश के हिंदुओं में माता के समान मानते हैं। शास्त्र भी कहते हैं- गावो विश्वस्य मातरः। आखिर, मुगल बादशाहों ने भी गोवध पर प्रतिबंध क्यों लगा रखा था? सिर्फ गुजरात ही नहीं, हिंदुओं ही नहीं, सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि सारे संसार के लिए गाय ऐसा पशु है, जो मरने तक और मरने के बाद भी मानव-जाति का फायदा ही करता है। कोलकाता में गोबर गैस से बसें चल रही हैं। एक रुपए की मेथिन गैस से बसें 17 किमी तक चलती हैं। हरयाणा के ग्रामीण घरों में गोबर गैस के चूल्हे दनदना रहे हैं। जो गाएं दूध नहीं देतीं, उनके गोबर, मूत्र और गैस से ही लाखों रुपए की आमदनी होती है। जबकि गाय के मांस, खून, चमड़े, सींग वगैरह से सिर्फ पांच-सात हजार रुपए ही कमाए जा सकते हैं। मैं तो कहता हूं कि किसी भी दुधारु पशु गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि की हत्या नहीं की जानी चाहिए। यदि उनका सदुपयोग किया जाए तो भारत में आर्थिक क्रांति की जा सकती है। मैं तो चाहता हूं कि सारा विश्व ही निरामिष हो जाए, शाकाहारी बन जाए लेकिन यह बिल्कुल अनुचित होगा कि आप मांसाहार पर कानूनी प्रतिबंध लगा दें या मांसाहारियों का अपमान करें। यह भी ठीक नहीं कि आप पशु की रक्षा के लिए मनुष्य को मारने के लिए तैयार हो जाएं। यदि हम सारी दुनिया को शाकाहारी बना हुआ देखता चाहते हैं तो इस मुद्दे को हमें कानून की तलवार से नहीं, तर्क की तुला पर तोलकर प्रेम से परोसना होगा।