✍🏻मेरे मुताबिक✍🏻
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शराब-मायाजाल/आन्दोलन
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हमारे राज्य में 2010 से 2016 के बीच शराब का अवैध -वैध खपत का कारोबार 180% बढ़ा है ।इससे शराब की समस्या की गंभीरता को समझा जा सकता है।सरकार को करीब 1135 करोड़ ₹ का राजस्व प्राप्त होता है।आबकारी विभाग सरकार का कमाऊँ विभाग है।पुलिस विभाग को भी प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से मंथली रूपये और शराब मिलती है।
शराब से सामाजिक ढांचा कमजोर पड़ता है,पारिवारिक सम्बंधों में बिखराव और नैतिकता भंग होती है।
राजशाही का शौक रही शराब ,जरायम पैशा व निम्न कमीण कारू जातियों का मुख्य पेय रहा है।किसी भी अपराध को अंजाम देने का दुःस्साहस नशे में ही संभव रहा है।
जहांगीर कहता था-
एक सेर कबाब मुझको,आधा सेर शराब।
सारी सल्तनत नूरजहां की,खूब हो चाहे हो खराब।।
आज यह एक सामाजिक पेय है।मध्यम ,पिछड़े व अनुसूचित जाति ,जन जातियाँ विशेष प्रभावित है।
शराब बन्दी के आंदोलन में महिला वर्ग ही आगे है ,क्योंकि शराबी पति,पुत्र या पिता से सबसे ज्यादा प्रभावित भी यही होती है।घरेलू हिंसा का मुख्य कारण शराब और दुसरा कारण अवैध सम्बंध है।
शराबी पुरूष चाहे नौकरी पैशा हो या मजदूर -शाम होते ही जूगाड़ की तलाश में भटकता मिल जाता है।एक जिले के शराबी एक साल में लगभग 60 करोड़ ₹ की शराब पी जाते है तो गरीबी व अपराधों में कमी लाना सिर्फ "जुमला"है।
बेशर्मी से आन्दोलन में जाना,रैली करना और शाम को फिर जूगाड़ मे लग जाना?भीड़ का भाव पैदा होना अच्छी बात है।भीड़ बनकर शराबी बने रहना अलग बात है।आन्दोलन अच्छी सोच है पर शराबी के प्रति,शराब के प्रति घृणा भाव पैदा करना ज्यादा जरूरी है।शराब के विरोध में जागरूकता जरूरी है।एक सर्वे के मुताबिक समाज में 40% पुरूष "अल्कोहलिक्स डिपेडेंस" तथा 20% महिलाएँ शराब का सेवन करती है जिसका सीधा प्रभाव परिवार पर पड़ता है।80% पुरूष भागिदारी आन्दोलन में हो जाऐगी उस दिन समाज बहुत सुधर जाऐगा।इस मामले में राजनैताओं के भरोसे ना रहे।
अन्त में-किसी का शेर है कि
"हमारे समाज के इन्सान है जहीन बहुत।
जमीर बेच कर,शोहरत खरीद लेते है।।"
गोविन्द सिंह चौहान