महाराजा हरि सिंह: भारत की कश्मीर समस्या के 'खलनायक'?
Firstpost Hindi 26 Apr. 2017 10:20
महाराजा हरि सिंह को आज की कश्मीर की समस्या का जनक कहा जाए, तो गलत नहीं होगा.
इतिहास में कुछ किरदारों की भूमिका कुछ ही देर की होती है. वो आते हैं कहानी में अपना हिस्सा पूरा करते हैं और गायब हो जाते हैं.
कश्मीर के आखिरी महाराजा हरि सिंह को भी इसी तरह का एक किरदार मान सकते हैं, जिनके बारे में हम पढ़ते हैं कि वो आखिरी समय में हिंदुस्तान के साथ विलय पत्र पर साइन करने के लिए राजी हुए. जिसके बाद भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी कबाइलियों को खदेड़ा और पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक फैसले के कारण कश्मीर हिंदुस्तान-पाकिस्तान के इतिहास और भूगोल के लिए एक नासूर बन गया.
मगर हरि सिंह की जिंदगी का कैनवास इससे कहीं बड़ा है. उनकी जिंदगी और उनकी विरासत की कहानी में भी कश्मीर की तरह तमाम किस्से और विडंबनाएं हैं. उदाहरण के लिए दुनिया जानती है कि हरि सिंह जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला से बुरी तरह खार खाते थे.
उन्हीं हरि सिंह के इकलौते बेटे युवराज कर्ण सिंह नेहरू के साथ हुए और कांग्रेसी बन गए और कर्ण सिंह के बेटे अजातशत्रु सिंह अपने दादा के दुश्मन (राजशाही के नजरिए से यही शब्द सही लगता है) शेख अब्दुल्ला के बेटे फारुख अब्दुल्ला की सरकार में मंत्री बने.
रूलर इन वेटिंग
13 साल के हरि सिंह को अजमेर के मेयो कॉलेज में 1908 में पढ़ने भेजा गया. 1909 में उनके पिता अमर सिंह की मौत हो गई. अमर सिंह के बड़े भाई और कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह के कोई औलाद नहीं थी इसलिए हरि सिंह अपने आप गद्दी के अगले वारिस हो गए.
अंग्रेजों को हिंदुस्तान के एक महाराजा को अपने हिसाब से तालीम देने का मौका मिल गया. उस दौर में रूलर इन वेटिंग हरि सिंह का खास ख्याल रखने के लिए मेजर एच के बरार को गार्जियन बनाया गया. हरि सिंह मेयो कॉलेज के बाद देहरादून की इंपीरियल कैडेट कॉर्प्स में गए. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद हरि सिंह को उनके चाचा प्रताप सिंह ने कश्मीर का कमांडर इन चीफ बना दिया.
1925 में प्रताप सिंह की मौत हो गई और हरि सिंह महाराजा बने. महाराजा बनने के बाद हर साल उनकी उपाधियां बढ़ती गईं. 1947 में उनका पद था.
'ल्यूटिनेंट-जनरल हिज़ हाइनेस श्रीमान राजराजेश्वर महाराजाधिराज श्री सर हरि सिंह इंदर महेंद्र बहादुर, सिपारे सल्तनत जम्मू कश्मीर के महाराजा, जीसीएसआई, जीसीवीओ, जीसीआईई' (आखिरी तीनों यूरोपीय सम्मान हैं)
प्रॉस्टिट्यूट की ब्लैकमेलिंग और मिस्टर ए
हरि सिंह उस समय के किसी भी दूसरे हिंदुस्तानी शासक की तरह ही थे. अय्याशी से भरी जिंदगी, औरतें शराब, शबाब, शेर का शिकार, रॉल्स रॉयस के लिए दीवानगी और यूरोप की महंगी यात्राएं.
हरि सिंह ने 1926 में अपनी ताजपोशी के ऊपर तब 25 लाख रुपए से ज़्यादा खर्च किए थे. अमेरिकन मोशन पिक्चर को वीडियोग्राफी के लिए बुलाया गया. महाराजा के हाथी और घोड़े को हीरे जवाहरातों से सजाया गया. इसी दौर में एक ऐसा स्कैंडल हुआ जिसने हरि सिंह और हिंदुस्तान दोनों की छवि पर धब्बा लगाया.
1921 में हरि सिंह 40 लाख डॉलर के बराबर की रकम के साथ यूरोप के दौरे पर गए. वहां वो अपने अनाप-शनाप खर्चों के लिए कुख्यात हो गए. 1924 की टाइम मैग्ज़ीन में एक रिपोर्ट छपी जिसमें बताया गया था. कि हरि सिंह की नजदीकी माउडी रॉबिंसन नाम की औरत के साथ बढ़ी.
रॉबिंसन ने हरि सिंह को एक साजिश में फंसाया. हरी सिंह रॉबिंसन के साथ पेरिस के एक होटल के कमरे में थे जब एक आदमी अंदर घुस आया. उसने खुद को रॉबिंसन का पति बताया और हरि सिंह को ब्लैकमेल करते हुए साढ़े सात लाख डॉलर के दो चेक ले लिए. हरि सिंह ने बाद में किसी तरह एक चेक का पेमेंट रुकवा दिया मगर एक चेक कैश हो गया.
इस पेमेंट में मिसेज रॉबिंसन को पैसा नहीं मिला तो उन्होंने कोर्ट में धोखा-धड़ी का मुकदमा कर दिया. केस चला और हरि सिंह को अदालती कार्यवाही में मिस्टर ए के कोड नेम से बुलवाया जाता था. पैसों का सेटलमेंट होने के बाद हरि सिंह कश्मीर लौटे और उनको महाराजा प्रताप सिंह का गुस्सा झेलना पड़ा. हरि सिंह को सजा के तौर पर अपनी मूंछें कटवानी पड़ीं.
राजा बनने के बाद हरि सिंह ने राज्य में कई सुधार भी किए. बाल विवाह, बेगार जैसी चीजों पर रोक लगी. प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य किया गया. 1934 में 75 मेंबर की प्रजा सभा का गठन भी हुआ. मगर इसके कुछ ही साल बाद वो समय आ गया जिसके लिए हरि सिंह को इतिहास में याद किया जाता है. मतलब भारत का विभाजन.
विभाजन, शेख अब्दुल्ला और नेहरू
# पहले कुछ एक तथ्य जान लीजिए. 1846 में अमृतसर की संधि में अंग्रेज़ों ने डोगरा जागीरदार गुलाब सिंह को 75 लाख रुपए में पंजाब रियासत का कश्मीर वाला हिस्सा देकर जम्मू और कश्मीर रियासत बनाई.
# आजादी के वक्त कश्मीर की आवाम में मुसलिम आबादी ज़्यादा थी और शासक हिंदू थे. उस दौर में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए शेख अब्दुल्ला राजतंत्र के विरोध का झंडा हुए उठाए थे.
# मई 1946 में भारत छोड़ो आंदोलन को कश्मीर में शुरू करने के कारण शेख अब्दुल्ला को 9 साल जेल की सजा दी गई. सितंबर 1947 में वो रिहा हुए.
# जवाहर लाल नेहरू का समर्थन शेख अब्दुल्ला को था. अब्दुल्ला की मांग थी कि कश्मीर की जनता ये तय करे कि वो किसके साथ जाएगी. जबकि महाराजा कश्मीर को आज़ाद रखना चाहते थे. इसी के चलते वो विलय को जितना हो सके टालते रहे.
18 जून को हरि सिंह ने एक अंग्रेज़ अधिकारी को लिखा, 'आपने कश्मीर समस्या पर बहुत कुछ पढ़ा होगा मगर ये समस्या का हज़ारवां हिस्सा भी नहीं है. समस्या एक स्थानीय आंदोलनकारी अब्दुल्ला के कारण शुरू हुई है जो राज्य विरोधी और कम्युनिस्ट है. गिरफ्तारी के समय अब्दुल्ला अपने गुरू जवाहरलाल से मिलने जा रहा था. इसलिए जवाहरलाल के व्यक्तिगत अहम को इससे काफी चोट पहुंची कि उनके शिष्य को उनकी शरण में आते समय गिरफ्तार कर लिया गया. जवाहरलाल नेहरू, जैसे कि वो हैं, अपने आपे से बाहर हो गए.'
इस बीच एक ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस और शेख अब्दुल्ला ये तथ्य लोगों के बीच में बार रखते रहे कि अंग्रेज़ों ने कश्मीर को डोगरा राजाओं को थोक में बेच दिया था. हरि सिंह के इकलौते युवा लड़के टाइगर (करण सिंह) को भी नेहरू में भविष्य दिख रहा था. दूसरी तरफ पाकिस्तान ने हथियारबंद कबायलियों को कश्मीर में भेजना शुरू कर दिया.
24 अक्टूबर को श्रीनगर का इकलौता पावर स्टेशन जला दिया गया. श्रीनगर में राजपरिवार की हालत बंधक जैसी हो गई. हरि सिंह ने 85 कारों और 8 ट्रकों में अपने परिवार के साथ-साथ सारा खजाना जम्मू शिफ्ट किया. जल्दी-जल्दी में 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर दस्तखत किए गए.
बताया जाता है कि हरि सिंह ने अपने सचिव से कहा था कि अगर अगले दिन मदद को आए भारतीय वायुसेना के हवाई जहाज़ों की आवाज न सुनाई दे तो उन्हें गोली मार दें.
इसके बाद भारत की सेना ने कश्मीर में कमांड लेकर कबायलियों को खदेड़ना शुरू किया. मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद होकर पहला मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने वाले भारतीय अफसर बने. जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में रिफरेंडम की घोषणा कर दी. सरदार पटेल ने कहा, 'जवाहर पछताएगा.' शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री (तब के कश्मीर में प्रधानमंत्री) और कर्ण सिंह सदर-ए-रियासत (राज्यपाल या राज्याध्यक्ष) बने.
बताया जाता है कि उस समय कश्मीर के कुछ अमीर हिंदु खानदानों ने हरि सिंह को कश्मीर वापस लाने की मांग भी उठाई. मगर जवाहरलाल नेहरू ने ही उसे सिरे से खारिज कर दिया. कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने कश्मीर का सोने से बना राजसिंहासन भारत सरकार को तोहफे में देने की बात की. भारत सरकार ने उस समय मना कर दिया. बाद में कई साल बाद ये प्रस्ताव फिर आया तब प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई उसे रिसीव करने खुद गए.
इसके बाद हरि सिंह मुंबई चले गए. अकेले, टूटे और सबसे अलग (अपनी चौथी पत्नी से अलग हो गए थे). 26 अप्रैल 1961 हरि सिंह की मुंबई में मौत हो गई.