उदास रातों को सँवारा था सिसकियो से गोविन्द!
अब आँखों पे सुखे आँसु देख, हँसते है लोग!!
कभी गुलजार थी हँसी शबनम की बुँदो से!
कतरा कतरा उडते देख, हँसते है लोग !!
उँचा था मुकाम आरजुओ का,अहसासो से!
सहज ही टूटे सपनों पर, आज हँसते है लोग!!
क्यों अतीत दिखता है आईने की दिवारो से!
टूटे जज्बातो की तस्वीरों पे,आज हँसते है लोग!!
मचल उठे थे अरमाँ उनसे रूबरू होने से!
कफन सजी ख्वाहिशो पे, आज ह्सते है लोग!!
जिन्दा हैं सख्त जमी पे बेदम उठने से!
टूटे पँख, बिखरे हौसले पे,आज ह्ँसते है लोग!!
एक चाहत मे ठोकर खाई है दर दर से,दोस्तो!
दरवाजे पर उसका सितम देख,हँसते है लोग!!
*******गोविन्द भागावड