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अब आदाब करके

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मेरे गुनाहों को अब नजर अंदाज करके बनाओ तुम मुझे, खुद को खराब करके ||किस कदर टूट चुका है अब वो देखरात गुजारता है, जिस्म को शराब करके ||अपने हिस्से की चाहत चाहता हर कोईचैन कहाँ है ,मोहब्बत बे- हिसाब करके ||उजड़ा हुआ है यहाँ हर साख का मंजरसोचा चमन से गुजरेगा सब पराग करके ||ये शहर बड़ी जल्दी इतना बड़ा हो ग

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