मेरे गुनाहों को अब नजर अंदाज करके
बनाओ तुम मुझे, खुद को खराब करके ||
किस कदर टूट चुका है अब वो देख
रात गुजारता है, जिस्म को शराब करके ||
अपने हिस्से की चाहत चाहता हर कोई
चैन कहाँ है ,मोहब्बत बे- हिसाब करके ||
उजड़ा हुआ है यहाँ हर साख का मंजर
सोचा चमन से गुजरेगा सब पराग करके ||
ये शहर बड़ी जल्दी इतना बड़ा हो गया
मिलता नहीं गले कोई अब आदाब करके ||
तेरी हर राह में रोशनी तभी आयी है
माँ-बाप ने जलाया खुद को चराग़ करके ||