*इस धरा धाम पर जन्म लेने के पहले मनुष्य के जीवन एवं मृत्यु का निर्धारण हो जाता है | परमात्मा ने एक निश्चित आयु देकर सभी जीवो को इस धरा धाम पर भेजा है | कलयुग में मनुष्य की आयु १०० वर्ष की निर्धारित की गई है परंतु जब इसके पहले मनुष्य की मृत्यु हो जाती है तो उसे अकाल मृ
*इस विशाल सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई , इसका पालन भगवान श्री हरि नारायण करते हैं और संहार करने का भार भगवान शिव के ऊपर है | सनातन धर्म में उत्पत्ति अर्थात सृजन कर्ता , पालक एवं संहारक त्रिदेव को माना जाता है | सृजन एवं संहार के बीच में पालन करने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भगवान विष्णु
*इस समस्त सृष्टि में ईश्वर कण कण में समाया हुआ है | कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां ईश्वर की उपस्थिति ना हो | संसार में समस्त जड़ चेतन की रचना ईश्वर ने ही की है | ईश्वर के लिए सभी समान है इसीलिए भी ईश्वर को समदर्शी कहा गया है | ईश्वर कभी भी भेदभाव नहीं करता बल्कि सबको समान रूप से वायु , सूर्य का प्रक
*इस धराधाम पर आकर मनुष्य का परम उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति ही होता है | *ईश्वर को प्राप्त करने के लिए मनुष्य अनेकों प्रकार के साधन करता है , भिन्न-भिन्न उपाय करके वह भगवान को रिझाना चाहता है | *भगवान को प्राप्त करने के चार मुख्य साधन हमारे शास्त्रों में बताए गए हैं जिन्हें "साधन चतुष्टय" कहा जाता है
*आदिकाल से इस धरा धाम पर प्रतिष्ठित होने वाला एकमात्र धर्म सनातन धर्म मानव मात्र का धर्म है क्योंकि सनातन धर्म ही ऐसा दिव्य है जो मानव मात्र के कल्याण की कामना करते हुए एक दूसरे को पर्व त्योहारों के माध्यम से समीप लाने का कार्य करता है | सनातन धर्म में वर्ष के प्रत्येक माह में कुछ ना कुछ पर्व ऐसे मन
*सनातन धर्म का प्रत्येक कार्य शुभ कर्म करके तब प्रारंभ करने की परंपरा रही है | विगत चार महीनों से सभी शुभ कार्य चातुर्मास्य के कारण बंद पड़े थे , आज देवोत्थानी एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के जागृत होने पर सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे | शुभ कार्य प्रारंभ होने से पहले मनुष्य के द्वारा कुछ अ
*सनातन धर्म की प्रत्येक मान्यता स्वयं में गौरवशाली है | सृष्टि का संयोजन एवं इसकी गतिशीलता यद्यपि ईश्वर के हाथों में है परंतु मानव मात्र की सहायता के लिए हमारे विद्वानों ने वर्ष , मास एवं दिन , बारह राशियों , २७ नक्षत्रों एवं सूर्य चंद्रमा के आधार पर काल विभाग किया है | समस्त संसार को प्राण एवं ऊर्ज
*सनातन धर्म में प्रत्येक माह के प्रत्येक दिन या प्रत्येक तिथि को कोई न कोई पर्व या त्यौहार मनाया जाता रहा है , यह सनातन धर्म की दिव्यता है कि वर्ष भर नित्य नवीन पर्व मनाने का विधान बनाया गया है | इसी क्रम में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को एक विशेष पर्व मनाने का विधान हमारे सर ग्रंथों में वर्णित